चुनाव आयोग का काम तो नहीं रोका, मगर कुछ रायता तो फैला ही दिया सुप्रीम कोर्ट ने; संवैधानिक संस्थाओं में भी भेद करता है कोर्ट, यह साबित हो गया

सुभाष चन्द्र
चुनाव आयोग ने केवल बोगस मतदाताओं और विदेशियों को मतदाता सूची से निकालने के लिए 11 दस्तावेज़ों में से एक मांगा था, जिसे खारिज तो नहीं किया सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोगमाल्या बागची की पीठ ने और न आयोग के काम पर स्टे लगाया लेकिन आधार कार्ड, मतदान पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी शामिल करने पर आयोग को विचार करने को कह कर कुछ रायता तो फैला ही दिया 

हालांकि कोर्ट को आयोग ने बताया कि आधार और इपिक तो पहले से शामिल किए जा रहे है। 

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लेकिन सबसे बड़ा झोल आधार कार्ड में है जिसके लिए स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने कहा हुआ है कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है जबकि वोट देने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है, यह भी कोर्ट ने निर्णय दिया हुआ है
 आधार किस हद तक फर्जी बनाये गए हैं यह बात क्या सुप्रीम कोर्ट नहीं जानता? 

मीडिया की खबरे भी तो सुनते होंगे माननीय न्यायाधीश जिसमें बताया गया है बिहार के मुस्लिम बहुल जिलों में ये हाल है -

 किशनगंज: 68% मुस्लिम, 126% आधार

-कटिहार: 44% मुस्लिम, 123% आधार

- अररिया: 43% मुस्लिम, 123% आधार

- पूर्णिया: 38% मुस्लिम, 121% आधार

अभी बंगाल में यह गहन पुनरीक्षण होगा तब देखिए क्या बलवा मचेगा क्योंकि वह तो बांग्लादेश की सीमा से लगते हुए 14 जिलों में बांग्लादेशियों की भरमार है 

कोर्ट ने हालांकि यह कहा कि हमने इन तीन दस्तावेज़ों पर विचार करने को कहा है, कोई निर्देश नहीं दिया लेकिन आयोग का काम बढ़ जाएगा क्योंकि साथ ही यह भी कहा है कोर्ट ने कि यदि आयोग इनको अमान्य करार देता है तो कारण बता कर स्वीकार करने से मना कर सकता है

वैसे विपक्ष इतने को भी अपनी जीत बता रहा है कि यह लोकतंत्र के लिए राहत वाली बात है

आयोग का 50% काम पूरा हो चुका है जो कुछ हद तक फिर से शुरू करना पड़ सकता है

विपक्ष के वकीलों की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का अधिकार आयोग को संविधान से मिला हुआ है, वह नियम क़ानून के मुताबिक उसे कर सकता है हम किसी संवैधानिक को वह करने से नहीं रोक सकते, साथ ही हम उसे वह भी नहीं करने दे सकते जो जो उसे नहीं करना चाहिए 

जब अधिकार संविधान में दिए गए हैं तो नियम कानून भी बनाने का अधिकार भी आयोग को होना चाहिए उसमें सुप्रीम कोर्ट तो तब तक दखल नहीं देनी चाहिए जब तक किसी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो आयोग ने अगर विदेशियों को मतदाता सूची से बाहर करने के लिए नियम बनाए हैं तो उसमे कोर्ट को आधार, इपिक और राशन कार्ड पर विचार करने के लिए कहने से बचना चाहिए था 

दूसरा गंभीर विषय विपक्ष और कोर्ट ने भी उठाया कि इस पुनरीक्षण का समय बिहार चुनाव से पहले ही क्यों रखा गया और क्या इतनी जल्दी यह काम पूरा हो जायेगा चुनाव तो कहीं न कहीं चलते रहते हैं और एक राज्य की गतिविधियों का असर दूसरे चुनावी राज्य पर पड़ सकता है जहां तक काम पूरा होने का सवाल है, यह चुनाव आयोग को देखना है, वह कोई सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट की तरह वर्षों तक मुकदमों को लटका कर  नहीं रखता

कोर्ट ने कहा कि हम संवैधानिक संस्था के काम पर रोक नहीं लगा सकते लेकिन आप तो ऐसा करते आए हैं लोकपाल भी एक संवैधानिक संस्था है जिसने 2 जजों के भ्रष्टाचार का मामला चीफ जस्टिस को संज्ञान लेने के लिए भेजा था लेकिन जस्टिस गवई की बेंच ने उस पर रोक लगा दी वह भी कपिल सिब्बल के विधवा विलाप करने पर आपने तो संसद से पारित कृषि कानूनों पर रोक लगा दी थी NJAC और Electoral Bonds को रद्द कर दिया था मतलब आप भी अपनी सुविधा से चलते हैं

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