कर्नाटक कांग्रेस में नाटक: ढाई साल के फॉर्मूले पर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार आमने-सामने, उधर बेटे को मुख्यमंत्री बनाने को खरगे का ‘मास्टर प्लान’


कर्नाटक में कांग्रेस का नाटक राजस्थान की राह पर चल निकला है। सरकार के खिलाफ कांग्रेस के विधायकों में ही असंतोष लगातार बढ़ रहा है। विधायक दो धड़ों में बंट गए हैं और इसके चलते जनता के काम नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल, गहलोत-पायलट की तरह कर्नाटक में भी ढाई साल के फार्मूले को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी 
मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार आमने-सामने आ गए हैं। इस राजनीतिक संग्राम का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि राजस्थान में जहां मल्लिकार्जुन खरगे लड़ाई को खत्म कराने के लिए हाईकमान के दूत बनकर आए थे, वहीं कर्नाटक में उनकी तमन्ना है कि कांग्रेसियों के बीच की यह लड़ाई और तेज हो जाए। सियासत की यह अदावत इतनी बढ़ जाए कि उसमें खरगे के पुत्र को मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता निकल आए। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि खरगे अपने बेटे प्रियांक खरगे को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में लाना चाहते हैं, इसलिए वो सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच लड़ाई को अपरोक्ष रूप से बढ़ाए रखना चाहते हैं।

विवाद की जड़ कांग्रेस हाईकमान का ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला

बेंगलुरु के नंदी हिल्स में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जुलाई के शुरू में बयान देकर सरकार के अंदर चल रहे तूफान को शांत करने की असफल कोशिश थी। सीएम को सार्वजनिक तौर पर सफाई इसलिए देनी पड़ी, क्योंकि कर्नाटक की सियासत में पिछले कई दिनों से चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस दो खेमों में बंट गई है। इस बंटवारे का सेंटर पॉइंट कोई और नहीं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ही हैं। दोनों पार्टी लीडर्स के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान चल रही है। विवाद की जड़ ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला बताया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये कहकर दोनों खेमों को शांत कर दिया है कि फैसला हाईकमान करेंगे। 

बिहार में चुनाव का डर, मुख्यंमंत्री बदला तो पार्टी में कलह बढ़ेगी
कर्नाटक के सियासी हलकों में इसकी भी पुरजोर चर्चा है कि ढाई साल नवंबर में पूरे हो रहे हैं। उसी वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव है। कांग्रेस को डर है कि मुख्यमंत्री बदलने से पार्टी में कलह बढ़ सकती है। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान शायद ही इतना बड़ा फैसला ले। लेकिन अगर मुख्यमंत्री नहीं बदला गया तो भी पार्टी में मतभेद सड़क पर आ सकते हैं। शिवकुमार का गुट दबाव बना रहा है, इसलिए कांग्रेस की स्थिति इधर गिरे तो कुआं, उधर गिरे से खाई वाली हो रही है। दरअसल, काफी समय से कई नेता सिद्धारमैया के खिलाफ बयान दे रहे हैं। ये बयानबाजी नवंबर में होने वाले कैबिनेट फेरबदल को लेकर है। नाराज विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने की कोशिश हो रही है। कई विधायक आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं। वे मंत्री बनना चाहते हैं। इसलिए बयानबाजी कर मंत्रियों को निशाना बना रहे हैं।‘

चुनाव के बाद भी हुई थी सिद्धारमैया और डीके के बीच मुख्यमंत्री बनने की जंग

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या कर्नाटक की राजनीति में सब कुछ ठीक चल रहा है? पार्टी के बड़े लीडर अलग-अलग राह पर हैं? क्या ढाई साल का फॉर्मूला असल में लागू होगा? इन सवालों का जवाब जानने के लिए सबसे पहले समझते हैं कि विवाद कहां से शुरू हुआ। दरअसल, जो ढाई साल का फॉर्मूला कभी समाधान बना था, वही अब कांग्रेस हाईकमान के लिए चुनौती बनता जा रहा है। मई 2023 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 में से 135 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। इससे देशभर में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को कुछ ऑक्सीजन मिली थी। जीत के बाद सरकार बनाने की बारी आई तो स्थिति राजस्थान जैसी बन गई। यहां भी दो प्रमुख नेता मुख्यमंत्री पद के रूप में सामने आए। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री बनने की जंग चली। लेकिन राहुल गांधी ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बना दिया। वे पहले भी 5 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके थे। डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बनाए गए। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं। संगठन में उनकी पकड़ और चुनाव प्रचार में भूमिका को जीत की बड़ी वजह माना गया।

अशोक गहलोत की तरह सिद्धारमैया के भी अड़ने से पेंच फंसा

यह माना जाता है कि 2023 में सरकार बनने के वक्त कांग्रेस आलाकमान, सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सहमति बनी थी। पहले ढाई साल मुख्यमंत्री सिद्धारमैया रहेंगे। इसके बाद ये कुर्सी डीके शिवकुमार संभालेंगे। शुरुआत में सब कुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ ही महीनों बाद सरकार में मतभेद उभरने लगे। अब दोनों के समर्थक खुलकर सामने आने लगे हैं, क्योंकि अब ये ढाई साल की समय सीमा नजदीक है। लिहाज दोनों नेताओं के बीच शीत-युद्ध के साथ -साथ समर्थक विधायक के आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो चुके हैं। हालांकि, इस फॉर्मूले को लेकर कभी कोई ऑफिशियल ऐलान नहीं हुआ। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने कभी भी इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं। माना गया कि यह फार्मूला राजस्थान का है, वहां लागू नहीं हुआ, लेकिन कर्नाटक में कराएंगे। लेकिन गहलोत की तरह सिद्धारमैया के अड़ने से पेंच फंस गया है।

सीएम बदलने के वादे से मुकरने के लिए मशहूर है कांग्रेस हाईकमान

अब डिप्टी मुख्यमंत्री शिवकुमार का खेमा इस फॉर्मूले को पक्का वादा मान रहा है। उनका कहना है कि अब नेतृत्व परिवर्तन होना ही चाहिए। दरअसल, कांग्रेस ने जब कर्नाटक में सरकार बनाई, तब सिद्धारमैया ने उम्र का हवाला देकर पहले दो साल की मांग की थी। शिवकुमार ने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का उदाहरण दिया, जहां ऐसे वादे पूरे नहीं हुए। शिवकुमार चाहते थे कि उन्हें पहला कार्यकाल मिले, चाहे वो दो साल का हो या तीन साल का। वहीं सिद्धारमैया के समर्थक इसे तब की सिर्फ एक राजनीतिक जरूरत बताते हैं, जो अब बदल चुकी है। दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर फैसले जटिल होते हैं। राहुल गांधी की लीडरशिप में केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका अहम होती है। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को ही देख लीजिए। इन्हें वादा तो मिला, लेकिन पद नहीं। अब ये फॉर्मूला सिर्फ समझौता नहीं, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव बन गया है। वे कहते हैं, ‘शिवकुमार के समर्थक इसे वादे की पूर्ति मानते हैं, न कि बगावत। इससे आलाकमान पर दबाव बढ़ गया है। एक पक्ष का समर्थन करने पर दूसरा नाराज हो सकता है। 

कांग्रेस के विधायकों ने अपनी ही सरकार में बताया भ्रष्टाचार-कुशासन
कर्नाटक के रामनगर से विधायक इकबाल हुसैन ने सबसे पहले नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि अगले दो-तीन महीने में डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बन सकते हैं। उन्होंने ये भी दावा किया कि 138 में से 100 से ज्यादा विधायक शिवकुमार के साथ हैं। ये मांग किसी की निजी महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि कांग्रेस के भविष्य और संगठन की मजबूती के लिए है। हुसैन ने कहा कि 2023 की जीत शिवकुमार की मेहनत और रणनीति का नतीजा थी। अब उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस बयान से सिद्धारमैया खेमे में हलचल मच गई। इसी बीच कांग्रेस विधायक बीआर पाटिल का एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ। वे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर तीखा हमला करते हुए कहते हैं, सिद्धारमैया किस्मत से मुख्यमंत्री बने हैं। मैंने ही उन्हें सोनिया गांधी से मिलवाया था। उनके ग्रह अच्छे थे, इसलिए सीएम बन गए। पार्टी में उनका कोई गॉडफादर नहीं है। इतना ही नहीं पाटिल ने कांग्रेस सरकार के आवास विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकारी आवास उन्हीं को मिले, जिन्होंने मोटी घूस दी।

सिद्धारमैया की लकी लॉटरी निकली, शिवकुमार की सेफ स्ट्रैटजी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस विधायक बीआर पाटिल ने कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला से मिलकर सिद्धारमैया के खिलाफ सबूत भी सौंपे हैं। कई अन्य विधायकों ने भी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए हैं। कागवाड के विधायक राजू कागे ने विकास कार्यों में देरी और फंड न मिलने पर नाराजगी जताई। उन्होंने यहां तक आरोप लगाए कि कुछ मंत्रियों में इतना घमंड है कि वो मिलने तक को तैयार नहीं होते। वोटर्स को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने विधायक पद से इस्तीफे की चेतावनी भी दी है। सिद्धारमैया ने इन आरोपों पर बोलती बंद है। उन्होंने डिफेंसिव रुख अपनाया है। बीआर पाटिल के ‘लकी लॉटरी’ वाले बयान पर तंज कसते हुए बोले- हां, मैं मुख्यमंत्री हूं, इसलिए भाग्यशाली हूं। अगर उन्होंने ऐसा कहा है, तो मैं क्या करूं? उधर डी.के. शिवकुमार ने सेफ स्ट्रैटजी अपनाई। नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे विधायकों से शिवकुमार ने अनुशासन की बात कही। दरअसल, शिवकुमार का ये रुख कांग्रेस आलाकमान को संदेश देने की कोशिश है कि वो अनुशासित नेता हैं। वहीं, उनके समर्थक पर्दे के पीछे से उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में जुटे हैं।

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