बिहार : ‘लालू के जंगलराज’ का हो गया शंखनाद ; गाँ$ में बाँस कर देंगे, भूरा बाल साफ करो… भू का मतलब भूमिहार, रा का मतलब राजपूत और बा का मतलब ब्राह्मण तथा ल का मतलब लाला (कायस्थ)

              RJD की हरकतों से बिहार में जंगलराज का डर लौट आया है (फोटो साभार: Tejaswi Yadav/FB)
जिस तरह बिहार बंद के दौरान RJD नेता ने "जंगलराज" का शंखनाद किया है उसे राज्यपाल से लेकर चुनाव आयोग को ही गंभीरता से नहीं लेना चाहिए बल्कि जनता को भी अपनी आंखे खोलनी चाहिए और "जंगल राज" लाने वालों को EVM को ढाल बनाकर दफ़न करना होगा। किसी मनभावन लालच से दूर रहना होगा। ऐसी मानसिकता वाले सत्ता के कुछ भी कर सकते हैं। अगर यही बात बीजेपी के किसी भी नेता ने कह दी होती विपक्ष ही नहीं विपक्ष का गुलाम सारा मीडिया चीख-पुकार कर आसमान को सर पर उठा लेते। क्या इसी तरह लोकतंत्र चलेगा और संविधान की रक्षा होगी?      

बिहार में विधानसभा चुनाव को कुछ ही महीने शेष हैं। 2025 का अंत होते-होते नई सरकार बिहार में बन चुकी होगी। इस चुनाव की तैयारियाँ राजनीतिक दलों के साथ ही चुनाव आयोग तेजी से कर रहा है। इसी कड़ी में चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को भी दुरुस्त कर रहा है।

विपक्षी पार्टियों को यह रास नहीं आया है। उन्होंने इसके विरोध में 9 जुलाई, 2025 को बिहार बंद बुलाया था। लेकिन चुनाव आयोग का यह विरोध RJD के गुंडाराज-जंगलराज की तैयारी और ‘भूरा बाल साफ़ करों’ जैसी धमकियों में बदल गया है।

बिहार में चुनाव आयोग की प्रक्रिया को राजद और कॉन्ग्रेस जैसी पार्टियों ने मुद्दा बनाया जबकि आमजन को कोई परेशानी नहीं थी। जब आम लोग चुनाव आयोग के खिलाफ नहीं हुए तो यह बीड़ा उन्होंने खुद ही उठा लिया और 9 जुलाई के बंद के दौरान हिंसा और धमकियों का दौर चालू कर दिया।

कहीं RJD कार्यकर्ताओं ने एम्बुलेंस रोकी तो कहीं खुले मंच से नरसंहार वाले नारों की धमकियाँ चालू कर दीं। राजद के गुंडों की यह हरकतें वापस जंगलराज की यादें ले आई और साथ ही वह डर भी ले आई, जिसने 40 सालों से बिहारियों के मन में घर बनाया हुआ है।

मंच से ऐलान- भूरा बाल साफ़ करो

इसी 9 जुलाई, 2025 को बिहार में गया जिले में वह नारा गूंजा, जिसने 1990 के दशक में जनता को भयाक्रांत रखा था। यह नारा है- भूरा बाल साफ़ करो। इसमें भू का मतलब भूमिहार, रा का मतलब राजपूत और बा का मतलब ब्राह्मण तथा ल का मतलब लाला (कायस्थ) था। इस नारे का अर्थ था कि इन जातियों के लोगों को खत्म कर दिया जाए।

बिहार के गया जिले में 9 जुलाई, 2025 को ही अतरी विधानसभा क्षेत्र में विधायक रंजीत यादव की मौजूदगी में मुनारिक यादव ने ‘भूरा बाल साफ़ करो’ का नारा बुलंद किया। मुनारिक यादव बोला, “शुरू में हमारे लालू जी बोले थे भूरा बाल साफ़ करो की बात किए थे।”

मुनारिक यादव ने इस नारे को दोहराने की बात की। इस दौरान मंच पर मौजूद नेता खीसें निपोरते रहे। यानी उन्हें इस नारे या उसके वापस आने से कोई दिक्कत नहीं थी। ना मुनारिक यादव को यह बोलने से रोका गया और ना ही इसका कोई खंडन किया गया। यानी कहीं ना कहीं वहाँ की जनता इस बात से राजी थी।

भूरा बाल साफ करो के इस नारे के मंच से ऐलान करना RJD कार्यकर्ताओं के बुलंद हौसलों और उनकी मनोस्थिति बताती है कि वह सत्ता पाकर क्या करना चाहते हैं।

एम्बुलेंस पर बोले- गा@ में बाँस कर देंगे

इसी 9 जुलाई के बंद में दरभंगा के धोई घाट में RJD कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम की और एक एम्बुलेंस का रास्ता ब्लॉक कर दिया। RJD के कार्यकर्ताओं की गुंडई इस दौरान तब चरम पर दिखी जब उन्होंने एम्बुलेंस जाने देने की विनती पर धमकियाँ चालू कर दीं।

RJD के गुंडों ने एम्बुलेंस जाने देने की धमकी पर लड़ाई-झगड़ा किया और कैमरे पर हाथ मारा। एक गुंडे ने कहा, “गाँ#@ में बाँस कर देंगे, 90 वाला लहर आएगा तो नीचे पटक देंगे।” यानी RJD कार्यकर्ताओं को चुनाव चालू होने से पहले ही जंगलराज वाली खुमारी वापस चढ़ गई।

जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझना और कुछ कहने पर धमकियाँ देना गुंडई की पहली निशानी है। RJD वालों ने यह साफ़ कर दिया कि उनकी सत्ता में लोगों का नीचे पटका जाना तय है। यह सब गुंडई चुनाव से महीनों पहले हो रही है और कैमरे के सामने हो रही है।

यानी RJD के लोग अगर साथ में हैं तो उन्हें ना क़ानून का डर है और ना ही उन्हें आमजन के साथ सिम्पथी है। अगर उनके राजनीतिक मास्टर ने एजेंडा दे दिया है तो चाहे एम्बुलेंस फँसे या फिर जातीय नरसंहार हो। उनका एजेंडा पूरा होना चाहिए।

मुहर्रम हिंसा भी इसी राजनीति का हिस्सा

बिहार में कटिहार, भागलपुर, दरभंगा समेत कई जगह पर मुहर्रम में हिंसा हुई। हिन्दू घरों और मंदिरों को निशाना बनाया गया। लेकिन यह हिंसा ऐसे समय में हुई जब लगभग 10 दिन पहले ही बिहार में एक रैली का आयोजन राजद और बाकी विपक्षी पार्टियों ने की थी। यह रैली वक्फ कानून का विरोध करने के नाम पर आयोजित की गई थी।

इस रैली में तेजस्वी यादव, पप्पू यादव समेत कॉन्ग्रेस और RJD के कई नेता शामिल हुए थे। इस रैली के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए थे। तेजस्वी यादव ने कहा था कि उनकी सरकार बनी तो वह वक्फ कानून कूड़े में फेंक देंगे और संसद, अदालत से लेकर सड़क तक मुस्लिमों के लिए उतरेंगे।

इस रैली के बहाने कवायद तो वोट बढ़ाने की थी लेकिन हौसलाअफजाई का रिजल्ट 10 दिन बाद ही दिखा और बिहार के कई जिले हिंसा की आग में झुलसे। इस पर भी राजद ने चुप्पी साध ली। ध्यान देने वाली बात है कि यह सब हिंसा चुनाव से ठीक पहले हो रही है।

ये गुंडई कोई खोखली हरकत नहीं

RJD के गुंडों की यह हरकतें कोई शक्ति प्रदर्शन भर नहीं है। भूरा बाल साफ़ करो का आह्वान दिखाता है कि वह भविष्य में क्या करने की इच्छा रखते हैं। इसी भूरा बाल साफ़ करो के नारे ने बिहार को 1980 और 1990 में जातीय हिंसा के नरक में झोक दिया था।

जब बिहार में 1980 और 1990 के दशक में भूरा बाल साफ़ करो का नारा गूंजा था तो बारां, डालेचक और सेनारी जैसे नरसंहार हुए थे। इन नरसंहारों में भूमिहार और राजपूत जातियों के 100 से अधिक लोग मार दिए गए थे। हत्यारे वो नक्सली थे जो कथित ‘सामाजिक न्याय’ चाहते थे।

तब ये सब कुछ भूरा बाल साफ़ करो के नाम पर हुआ था। आज वही नारा बिहार में वापस लगा है और कहा गया है कि ये वापस दुहराया जाएगा। भूरा बाल साफ़ करो के ऐलान और मुहर्रम में हुई हिंसा एक और बात बताती है। यह बताती है कि RJD के समीकरण का का कोर वोटर MY आजकल उत्तेजित है।

और इतिहास रहा है कि जब ये वोटर उत्तेजित हुआ है तो बिहार जंगलराज के दलदल में घुसा है। और जंगलराज अपने साथ पलायन, गरीबी और कुव्यवस्था का दौर लाता है।

भाजपा बोली- जनता हो जाए सावधान

ऑपइंडिया ने बिहार बंद के दौरान जातीय हिंसा के लिए लगाए जाने वाले नारों और जनता को परेशान करने की घटनाओं पर भाजपा OBC मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री निखिल आनंद से बात की। उन्होंने कहा, “आरजेडी का चाल- चरित्र- चेहरा जगजाहिर है। धार्मिक तुष्टिकरण की आड़ में घोर मुस्लिमपरस्ती और जातिवादी कुंठा की अभिव्यक्ति करना ही राजद का मूल राजनीतिक चरित्र है।”

उन्होंने कहा, “बिहार बंद की आड़ में राजद ने जो विभिन्न जगहों पर तांडव किया, महिलाओं को अपमानित किया, बीमार लोगों की आवाजाही पर रोक लगाई और जातिगत आधार पर लोगों के साथ दबंगई और मारपीट की घटना को अंजाम दिया, उससे बिहार की जनता को सावधान होने की जरूरत है।”

महामंत्री निखिल आनंद ने कहा कि जब राजद का सत्ता के बाहर यह हाल है तो अगर ऐसे लोगों के हाथ में सत्ता आएगी तो किस तरीके से कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर इनकी गुंडागर्दी चलेगी, यह समझा जा सकता है।

क्या चुनाव में ज्यादा हिंसा होगी इसका परिणाम?

बिहार ने 1990 से लेकर 2005 तक का वह दौर देखा है जब चुनाव का मतलब हिंसा हो गया था। तब बैलट बॉक्स लूटना, उसमे स्याही डाल देना, लाठी-डंडे और गोलियाँ चलना सामान्य बात सी हो गई थी। लालू प्रसाद यादव इसे ‘बोतल से जिन्न निकलने’ का नाम देते थे।

बिहार में चुनावी धांधली का यह हाल था कि 2005 आते-आते चुनाव आयोग को यहाँ शुचितापूर्ण चुनाव करवाने के लिए विशेष पर्यवेक्षक KJ राव को भेजना पड़ा था। इसके बाद चुनावी हिंसा पर लगाम लग पाई थी। और जैसे ही यह चुनावी हिंसा बंद हुई, वैसे ही बिहार में RJD का बोरिया बिस्तर भी बंध गया था।

तब से कुछ वर्ष को छोड़ दिया जाए तो RJD सत्ता में आने को तरस गई है। लोगों को वही भूरा बाल साफ़ करो और जंगलराज वाले दिन याद आते हैं। अब जब फिर से RJD नेताओं ने यही चालू किया है तो आगामी चुनाव में भी हिंसा के बादल मंडराने लगे हैं।

अवलोकन करें:- 

कर्नाटक : हिन्दुओं जागो और सेकुलरिज्म के नशे को छोड़ो ; जिस पीड़ित हिंदुओं को ही जेल में ठूँसने वा

संभवतः इस बार के चुनाव फिर से एक हिंसक हों। बूथ पर लोगों को जाने ना देने, उनमें डर फ़ैलाने से लेकर कई ऐसी हरकतें हो सकती हैं जो चुनाव प्रभावित करें। चुनाव आयोग को इस बार फिर सतर्क रहना होगा।

No comments: