फिर तो ED कार्यालय पर ताला लगवा दे सुप्रीम कोर्ट; जब हाई कोर्ट का जज “गुनाह” कर सकता है तो सुप्रीम कोर्ट का वकील क्यों नहीं? और नेताओं के परिवार वालों को जांच से छूट क्यों देना चाहते हैं?

सुभाष चन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने ED द्वारा सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को समन भेजने के मामले में कहा कि “सारी हदें पार कर रही है ED” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों और मुवक्किलों के बीच संवाद विशेषाधिकार प्राप्त होता है और उसे प्रकट करने से छूट होती है।  

पिछले दिनों जब ED ने वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेजा था तब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत संज्ञान लेकर इस पर नाराज़गी जताई थी तब ED ने समन वापस ले लिया और 21 जून को सर्कुलर जारी किया कि किसी भी वकील को डायरेक्टर की पूर्व इज़ाज़त के बगैर नोटिस या समन जारी न किया जाए इसी बीच 25 जून जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन के सिंह की पीठ ने गुजरात के एक मामले में मुवक्किल को सलाह देने वाले वकीलों को नोटिस देने पर चिंता व्यक्त की और मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने को कहा 

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मैं नहीं कहता कि चीफ जस्टिस गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन का नजरिया गलत है लेकिन मुवक्किल पर पहले से ED का केस चल रहा है तो उससे पूछताछ में कुछ ऐसा भी सामने आ सकता है जिससे वकील की या तो मामले में संलिप्तता नज़र आती हो या वकील वह जानकारी दे सकता हो जो मुवक्किल न दे रहा हो/छुपा रहा हो? ऐसे में वकील को कोई समन देने का मतलब यह नहीं है कि उसे आरोपी बना कर समन किया गया है 

वकील और मुवक्किल के बीच भी तो अपराध से जुड़ी कुछ खिचड़ी पक सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 30 बरस पहले कहा था कि किसी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ बिना चीफ जस्टिस की अनुमति के FIR दर्ज नहीं हो सकती अब एक आदेश जारी कर दीजिए कि किसी भी सुप्रीम कोर्ट के वकील को न कोई जांच एजेंसी नोटिस/समन करेगी और न कोई केस दर्ज करेगी

चीफ जस्टिस गवई के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आपके विचार से सहमत हूं लेकिन कुछ लोग लगातार जांच एजेंसी के खिलाफ धारणा बनाने में लगे हैं CJI ने कहा ऐसा नहीं है, पीठ अपने अनुभव के आधार पर कह रही है कितने केस देखे हैं जिनमें हाई कोर्ट का आदेश उचित होता है लेकिन फिर भी ED अपील दायर कर देती है

ED के खिलाफ खानविलकर के फैसले के बाद कुछ तो चल रहा है जो हर एक कोर्ट फटकार मारता है

मैं चीफ जस्टिस के विचार से सहमत नहीं हूं हाई कोर्ट का कोई निर्णय आपको सही लग सकता है लेकिन ED/CBI की नज़र में वह सही नहीं भी हो सकता जिस पर उनके विचार से अपील की जा सकती है चीफ जस्टिस गवई का अनुभव तो यह है कि उन्होंने ED के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा को हटा कर ही दम लिया जबकि संसद ने उन्हें 5 साल तक डायरेक्टर रहने की अनुमति दे दी थी उन्होंने तो दो दो अदालतों के फैसले दरकिनार करके राहुल गांधी को छोड़ दिया था

एक दूसरे केस में चीफ जस्टिस गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन ने हाई कोर्ट द्वारा सिद्धारमैया की पत्नी बी पार्वती और मंत्री बी एस सुरेश को जारी समन रद्द करने के फैसले को सही ठहराते हुए ED की अपील ख़ारिज कर दी। और कहा कि राजनीति के मामलों में ED को क्यों उपयोग किया जाए एक तरह राजनीतिज्ञों के परिवारजनों को भ्रष्टाचार करने की छूट दे दी गई क्योंकि उनके परिवार के लोगों का किसी अपराध में शामिल होना तो एक “राजनीतिक मामला” हो गया, उसे आपराधिक मामला कैसे माना जा सकता है

मतलब किसी भी मुख्यमंत्री की बीवी बच्चों को इज़ाज़त है, जी भर कर लूटो, ED/CBI तुम्हारा कुछ नहीं कर सकती 

प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं “भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस” होनी चाहिए और अगर ऐसे फैसले आएंगे तो भ्रष्टाचार कैसे कम होगा?

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