राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है। कब किसको कौन मात दे दे कुछ नहीं पता। सत्ता के गलियारों और सोशल मीडिया पर चर्चा बहुत गर्म है कि बिहार के अस्वस्थ मुख्यमंत्री नितीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाने के लिए स्वस्थ उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ को बीमारी का बहाना देकर इस्तीफा लिया गया है। हकीकत में सच क्या है यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। इस्तीफे का समाचार जंगल में लगी आग की फैलते ही अफवाहों का भी बाजार बहुत गरमा गया। अचानक इस्तीफे विपक्ष तक हैरान है।
भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने सोमवार (21 जुलाई 2025) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को त्याग पत्र भेजा। पत्र में इस्तीफे के कारण खराब स्वास्थ्य उल्लेख किया गया। इसके अलावा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कैबिनेट के बाकी मंत्रियों का शुक्रिया अदा किया।
उन्होंने पत्र में लिखा, “स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूँ। जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 67(ए) में प्रावधान है।” उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे पर लगातार कयास लग रहे हैं।
इस बीच उनकी साधारण किसान परिवार वाली पृष्ठभूमि और फिर सुप्रीम कोर्ट में वकालत से लेकर उनकी राजनीतिक पारी तक पर चर्चाएँ चल रही हैं। उनका सबसे प्रभावशाली कार्यकाल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और उपराष्ट्रपति के रूप में रहा है, जहाँ हर बार उन्हें लोकतंत्र के हित में खड़े देखा गया।
राजस्थान के जाट परिवार में जन्मे जगदीप धनखड़
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के किठाना गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गोकुलचंद किसान थे। किसान के बेटे ने जगदीप धनखड़ ने सैनिक स्कूल से पढ़ाई की। फिर राजस्थान विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी की डिग्री पूरी की।
साल 1979 में सुदेश धनखड़ से शादी की। उनकी एक बेटी है, जिसका नाम कामना है। साल 1990 में जगदीप धनखड़ ने राजस्थान हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट बने। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी वकालत की। वह राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
वर्षों की सक्रिय राजनीति के बाद उन्हें 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था। इस कार्यकाल में उनकी राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर कई मुद्दों से तनातनी देखी गई।
राज्यपाल रहते संवैधानिक मूल्यों पर मुखर रहे धनखड़
जगदीप धनखड़ राज्यपाल के रूप में लगातार संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करते रहे। जब वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे, तब ममता बनर्जी की सरकार से कई मुद्दों पर टकराव हुआ, लेकिन उन्होंने हमेशा संविधान के पक्ष में ही बात की।
बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर भी जगदीप धनखड़ ने आवाज उठाई। TMC के गुंडों ने जब हिंदुओं पर अत्याचार किया और महिलाओं का रेप से लेकर हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमा को तोड़ा, तब धनखड़ ने मामले में न्यायिक जाँच के निर्देश दिए।
यही नहीं, बंगाल चुनाव 2021 के बाद हुई हिंसा में भी जगदीप धनखड़ ने न्याय के लिए लड़ाई लड़ी और ममता सरकार की करतूतों को सामने रखा। बतौर राज्यपाल रहते उन्होंने ममता बनर्जी सरकार पर कई गंभीर प्रश्न उठाए।
जब चुनाव बाद की हिंसा पर रिपोर्ट तक नहीं भेजी गई, तब उन्होंने खुद सामने आकर आवाज उठाई। तबलीगी जमात के बांग्लादेशी नागरिकों को लेकर लुकआउट नोटिस जारी न होने पर भी उन्होंने सरकार की चुप्पी पर सवाल किया।
जब धनखड़ ममता सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे, तो TMC सांसदों ने उनके खिलाफ खूब हँगामा किया। लेकिन धनखड़ बंगाल की लड़ाई के लिए डटे रहे। कोरोना संकट में जब कई जगह शव सड़कों पर पड़े मिले, तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराज़गी जताई और सरकार की लापरवाही पर सवाल उठाया।
बंगाल की TMC सरकार ने हमेशा राज्यपाल का अपमान किया। TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने उन्हें ‘सड़ा हुआ सेब’ और ‘अंकल जी’ तक कहा, तब भी उन्होंने जवाब संयम और सच्चाई से दिया।
जया बच्चन की ‘बदतमीजी’ पर सिखाया सबक
जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में सभापति के तौर पर अनुशासन और गरिमा को सर्वोपिर रखा है, चाहे सामने कोई भी हो। समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने राज्यसभा में जब धनखड़ के लहजे पर आपत्ति जताई थी, तब भी उन्होंने सख्त और सटीक जवाब दिया था।
जगदीप धनखड़ ने कहा, “जया जी, आपने बहुत नाम कमाया है। आप जानती हैं कि एक अभिनेता निर्देशक के अधीन होता है। लेकिन हर दिन मैं खुद को दोहराना नहीं चाहता। हर दिन मैं स्कूली (आपसे) शिक्षा नहीं लेना चाहता। आप मेरे लहजे के बारे में बात कर रही हैं? बहुत हो गया। आप कोई भी हो सकते हैं, आपको मर्यादा को समझना होगा। आप एक सेलिब्रिटी हो सकते हैं, लेकिन मर्यादा को स्वीकार करें।”
‘न्यायिक दखल’ पर प्रश्न उठाते रहे धनखड़
जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के भीतर लगातार के दखल (Judicial Overreach) पर भी लगातार प्रश्न उठाए। उन्होंने इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति को आदेश देने वाले फैसले का भी विरोध किया था।
जब कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को लंबित विधेयकों पर 3 महीने में फैसला लेने का आदेश दिया था, तब धनखड़ ने साफ कहा कि अदालत राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदक को आदेश नहीं दे सकती। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ‘सुपर संसद’ बनने की कोशिश में है।
इतना ही नहीं, जगदीप धनखड़ ने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से करोड़ों रुपए मिलने वाले मामले में भी सुप्रीम कोर्ट को घेरा है। उन्होंने सवाल किया कि अगर इतनी नगदी किसी आम आदमी के घर मिलती, तो उसी दिन कार्रवाई हो जाती।
उपराष्ट्रपति रहते हुए जगदीप धनखड़ ने वर्ष 2022 में न्यायिक नियुक्ति बिल (NJAC) को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट पर प्रश्न उठाए थे। मोदी सरकार द्वारा पास किए गए कानून को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था। इसके जरिए न्यायिक नियुक्तियों की व्यवस्था की गई थी। जगदीप धनखड़ ने इसे संसद की संप्रुभता के साथ समझौता करार दिया था।
राज्यसभा के सभापति के तौर पर वह हमेशा ही सक्रिय रहे और प्रमुख मुद्दों पर अपनी राय रखने से नहीं चूके।
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