लेकिन हाई कोर्ट के जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अनीश दयाल का जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, याचिकाकर्ता को सरकार से संपर्क करने की अनुमति देकर फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाना निंदनीय और गैर कानूनी कदम था। मामला कोर्ट के समक्ष था और उसे कानून के अनुसार निर्णय देना चाहिए था, कोर्ट को याचिकाकर्ता से सरकार को Approach करने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं था और कोर्ट ने कानून के सामान्य नियमों का उल्लंघन किया था, क्योंकि सरकार को तो पहले ही याचिका में प्रतिवादी बनाया गया था।
किसी भी व्यक्ति के लिए कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले याचिका के विषय के निवारण के लिए सक्षम अधिकारी से संपर्क करना जरूरी होता है और जब वह अधिकारी निवारण नहीं करता, तब ही वह व्यक्ति कोर्ट जा सकता है। लेकिन हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी करने के बाद और निर्णय देने से पहले याचिकाकर्ता को सरकार के पास जाने के लिए कह कर एक तरह कानूनी अपराध किया था। इतना ही नहीं दोनों जजों ने फिल्म पर रोक लगा कर “सर से तन से जुदा” करने के आतंकवाद को खुला समर्थन दे दिया। असली मायने में हाई कोर्ट का यह Judicial Terrorism था जो हाई कोर्ट Terrorism के साथ खड़ा हो गया।
हाई कोर्ट ने याचिकर्ताओं को फिल्म दिखाने के लिए कहा था। कपिल सिब्बल ने फिल्म देखकर कहा कि वो फिल्म देख कर चकित थे और "This is not right for the country. This is not art. This is cinematic vandalism,"
मियां कपिल सिब्बल, आप इसे फ़िल्मी बर्बरता कह रहे हो और हाई कोर्ट ने सुन भी लिया लेकिन यह बताएं कि कन्हैया लाल का सर तन से जुदा करना बर्बरता न हो कर कौन सा पुण्य का काम था?
सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से मना करते हुए कहा था कि फिल्म को रिलीज़ होने दो। वकील मोहम्मद जावेद को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची ने कहा था कि कोर्ट की छुट्टियों के बाद रेगुलर बेंच के सामने मामले को उठाएं।लेखक
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जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि फिल्म को रिलीज़ होने दो, फिर दिल्ली हाई कोर्ट को फिल्म की रिलीज़ को स्टे करने का कोई अधिकार ही नहीं था। क्या हाई कोर्ट के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ भी जाने का अधिकार है? जरूर दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है।
अनेक फिल्म आई हैं जिन पर रोक लगाने से कोर्ट मना करता आया है, फिर “उदयपुर फाइल्स” में क्या समस्या है जिस पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट उतावला हो गया और अब पता नहीं सुप्रीम कोर्ट क्या गुल खिलाएगा। जब The Kashmir Files पर रोक नहीं लगाई गई तो उदयपुर फाइल्स पर रोक क्यों?
अवलोकन करें:-
अभी एक फिल्म इस्लाम में “धर्मांतरण फाइल्स” पर भी बनाई जानी चाहिए जिसका नंगा नाच देश में चल रहा है लव जिहाद के साथ।
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