सुप्रीम कोर्ट के दो जजों का संविधान संशोधन से Secular और Socialist शब्दों को सही ठहराने का निर्णय Judicial Terrorism है; यदि 370 अंबेडकर के संविधान के विरुद्ध था तो ये शब्द भी उनके नहीं थे

सुभाष चन्द्र

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपातकाल में संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्दो को नासूर बताया है और दूसरी तरफ चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि संयुक्त भारत के लिए एक संविधान की विचारधारा के खिलाफ था अनुच्छेद 370।  देश को एकजुट रखने के लिए अंबेडकर ने जिस संविधान की कल्पना की थी, 370 उसमे शामिल नहीं था। 

सच तो यह भी है कि अंबेडकर को यदि “secular और Socialist” शब्द पसंद होते तो वे संविधान की मूल प्रस्तावना में उन्हें शामिल करते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया 25 नवंबर 2024 को CJI संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने 1976 के 42वें संशोधन में जोड़े गए दोनों शब्दों “secular और Socialist” के खिलाफ याचिकाएं ख़ारिज कर दी और कहा कि ये अब संविधान के basic structure में शामिल हो चुके हैं (यानी पहले नहीं थे)। 

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निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट जवाब दे कि जब विपक्ष को जेल में डाल संविधान में “secular और Socialist” जोड़कर संविधान का मजाक बनाया जा सकता है, फिर संसद द्वारा ही इन शब्दों को निकाल संविधान को उसके मूल रूप में लाना अनुचित क्यों?   

मेरी सबसे पहली आपत्ति यह है कि संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन की वैधता को परखने की शक्ति सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों के पास कैसे हो सकती है? उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद को है और यह शक्ति मूल प्रस्तावना को भी बदल सकती है।  याचिकाओं को स्वीकार करके इतने वर्षो के बाद संशोधन को रद्द नहीं किया जा सकता। 

सबसे बड़ा क्लेश तो संविधान के Basic Structure का है हर कोई जज अपनी मर्जी से किसी भी प्रावधान को Basic Structure बना देता है बेंच का यह कहना कि ये शब्द अब Basic Structure में शामिल हो चुके है साबित करता है कि पहले ये उसमे शामिल नहीं थे और 1973 के केशवानंद भारती मामले के अनुसार Basic Structure को बदला नहीं जा सकता लेकिन उसमे ये शब्द शामिल करके इंदिरा गांधी ने Basic Structure को बदला, उसे कैसे सही कह सकते है कोर्ट के केवल 2 जज और इसके लिए कम से कम 7 जजों की संविधान पीठ को निर्णय करना चाहिए 

जब दो जजों को अधिकार ही नहीं है तो उनका निर्णय किसी Judicial Terrorism से कम नहीं है क्योंकि terrorism किया ही तब जाता है जब कोई अधिकार नहीं होता दो जजों का निर्णय जबरन देश पर थोपा गया निर्णय है

बेंच ने कहा संसद को शक्ति है मूल प्रस्तावना को भी बदलने की लेकिन CJI खन्ना, वो संसद कौन सी और कैसी होनी चाहिए क्या समूचे विपक्ष को जेल में डाल कर संसद के कोई मायने रह जाते हैं और क्या ऐसी संसद से पारित किसी भी विधेयक को आपको वैध कहते हुए शर्म नहीं आनी चाहिए 

आपने प्रश्न उठाया कि इतने वर्षों के बाद यह याचिका दायर क्यों की गई? 

यदि संविधान की मूल प्रस्तावना में 25 साल बाद विपक्ष को जेल में डाल कर बदलाव किया जा सकता है तो 50 साल बाद सुप्रीम कोर्ट उसे अवैध भी कह सकता है आज की संसद यदि समूचे विपक्ष को ससपेंड करके ये दोनों शब्द संविधान से हटा देती है तो सुप्रीम कोर्ट ही तांडव कर देगा कि विपक्ष को मार्ग से हटा कर संशोधन क्यों कर दिया?

चीफ जस्टिस खन्ना ने “secular और Socialist” की वकालत करते हुए कहा कि समाज के लिए सभी धर्मो के लिए एक जैसा बर्ताव और सभी नागरिकों के समानता जरूरी है लेकिन संविधान में “अल्पसंख्यकों” के लिए अनुच्छेद डाल कर secular character तो पहले ही दिन से ख़त्म कर दिया और क्या सुप्रीम कोर्ट स्वयं अपने निर्णयों में ईमानदारी से Secular रहा है, कदापि नहीं 

socialism की बात करने वाली इंदिरा गांधी ने 1971 से ही “गरीबी हटाओ” का नारा दिया था क्या कांग्रेस और इंदिरा गांधी socialism देश को दे सकी? socialism के नाम पर हमें मिली कांग्रेस, RJD और समाजवादी पार्टी जिनका समाजवाद से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं है

डॉ स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और विष्णु शंकर जैन से अनुरोध है कि वे  “secular और Socialist” को हटाने के लिए संविधान पीठ की मांग करें

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