चुनाव दर चुनाव जनता को भ्रष्टाचार दूर करने का लॉलीपॉप दिया जाता है। लेकिन भ्रष्टाचार है कि ख़त्म होने की बजाए नागफनी की तरह बढ़ता ही जा रहा है। कोई ऐसा विभाग नहीं जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला न हो, यह आरोप नहीं कटु सत्य है। कोई पार्टी इस कटु सत्य से इंकार नहीं कर सकता। बिना रिश्वत के आसान काम भी बोझिल बन जाता है, लेकिन रिश्वत देते ही सारी अड़चनें स्वतः उड़नछू हो जाती है। ललित भसोढ़ की वॉल पर इस बढ़ते भ्रष्टाचार की सीढ़ी का खुलासा पढ़कर सोंचा अपने ब्लॉग आदरणीय पाठकों के साझा करूँ।
दिल्ली में लगभग दो वर्ष पूर्व दिल्ली नगर निगम के चुनाव संपन्न हुए जिसमें एक निगम प्रत्याशी को अपने चुनाव प्रचार में अधिकतम आठ लाख ₹ खर्च करने की अनुमति चुनाव आयोग द्वारा दी गई थी, दिल्ली में इस बार दिल्ली ने कुल 250 पार्षद जनता के द्वारा चुनकर निगम मुख्यालय भेजें गये जीतने वाले उम्मीदवारों के साथ-साथ ही अन्य उम्मीदवारों द्वारा भी चुनाव प्रचार में जमकर खर्चा किया गया, हमारी एक आरटीआई के जवाब निगम मुख्यालय ने लिखित जवाब दिया की निगम पार्षद को निगम के द्वारा कोई मासिक वेतन नहीं दिया जाता है व ना ही निगम पार्षद के लिए कोई पेंशन का प्रावधान है एक निगम पार्षद को एक महीने में अधिकतम 10, बैठकों में जाना होता हैं जिसके लिए निगम द्वारा प्रत्येक पार्षद को एक बैठक में शामिल होने के लिए मात्र 300/ तीन सौ रुपए का भुगतान किया जाता हैं ठीक उसी कड़ी में एक निगम पार्षद को निगम की ओर से एक लैपटॉप एक चार्जर, एक बैट्री, एक मोबाइल सिम व स्टेशनरी के नाम पर दो हजार रुपए महीने का भुगतान किया जाता है इस प्रकार से एक निगम पार्षद को निगम की ओर से केवल पांच हजार रुपए महीना ही मिलता है तथा साथ ही अपने क्षेत्र के सुधार कार्यों के लिये निगम द्वारा प्रत्येक पार्षद को पचास लाख रु आवंटित किए जातें हैं यहां पर विचारणीय प्रशन यह है कि जब एक पार्षद को निगम की ओर से कोई वेतन नहीं मिलता है पेंशन नहीं मिलती हैं तो फिर कैसे एक उम्मीदवार निगम चुनाव प्रचार में पचास, पचास लाख रुपये खर्च कर देता है? जबकि उसकें पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान निगम द्वारा उसे केवल तीन लाख रुपये ही मिलतें हैं,तब उसके द्वारा जो चुनावों के दौरान प्रचार में पचासों लाख रुपए खर्च किए जातें हैं उसकी भरपाई कहा से होती हैं ?? क्या राजनीति में निगम ( दिल्ली ) के चुनाव भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी तो नहीं है? यह एक बहुत ही गंभीर विषय है जिस पर विचार करना बहुत ही आवश्यक है- ललित भसोढ़
- बातें कहीं अनकहीं, दिल्ली
CMO Delhi Navbharat Times Online Sandhya times / सान्ध्य टाइम्स Sunil Jha Inr Newspaper C P Varma Deepak Kumar Hira Sodhi Vijay Kanera Lalit Vats (साभार)
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