आतंकवाद पर नेहरू साधे रहे ‘मौन’, PM मोदी ने घर में घुसकर चटाई धूल: ‘भाईचारे’ से लेकर ‘मेरी गोली तो है ही’ तक पाकिस्तान को लेकर कैसे बदली ‘भारत की नीति’

                            जवाहर लाल नेहरू(बाएँ), पीएम मोदी (दाएँ), (फोटो साभार : Aajtak & istock)
भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते की कहानी कई दशकों की है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते उसी दिन से असामान्य रहे हैं, जब 1947 में देश का बँटवारा हुआ था। पाकिस्तान का जन्म ही लाखों लोगों की मौत और बर्बादी के साथ हुआ। लाखों लोग विस्थापित हुए, हजारों महिलाएँ दरिंदगी का शिकार बनीं। लेकिन इसके बावजूद जवाहरलाल नेहरू के दौर में भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति को भाईचारे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर आधारित रखा। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते और कट्टरपंथियों के आगे सिर झुकाने की वजह से कांग्रेस पाकिस्तान के साथ जरुरत से ज्यादा नरमी बरतती रही। 

लेकिन नरेंद्र मोदी के दौर में नीति ने ‘प्रतिशोध’ का रूप लिया। पाकिस्तान को सीधे तौर पर करारा जवाब देते हुए कहा कि ‘सुख चैन से जियो! रोटी खाओ..वरना मेरी गोली तो है ही।’ यह बदलाव भारत की बदलती सोच और वास्तविकता को दर्शाती है।

नेहरू का दौर: ‘दिल और बाहों का हिस्सा’

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पाकिस्तान के प्रति नजरिया भावनात्मक और सुलह-समझौते वाला रहा था। 1957 में लाल किले से अपने भाषण में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है और वह ‘भारत के दिल और बाहों का हिस्सा’ है, उससे लड़ना ‘खुद को नुकसान पहुँचाने जैसा’ होगा। भले ही विभाजन के दौरान लाखों लोगों का नरसंहार और हजारों महिलाओं-बेटियों के साथ बलात्कार ही क्यों ना हुआ हो, फिर भी नेहरू का नजरिया पाकिस्तान के प्रति शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित था।

1947 में भारत के विभाजन के बाद एक नया देश पाकिस्तान बना, जो मुस्लिम बहुल था। लेकिन पाकिस्तान में बड़ी संख्या में हिंदू और सिख भी रहते थे, खासकर पंजाब, सिंध और पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में। विभाजन के समय और उसके बाद पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्सों (वर्तमान पाकिस्तान) में हजारों हिंदू और सिखों को हत्या, लूटपाट और दंगे का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिरों और गुरुद्वारों पर हमले हुए, अपहरण और महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ सामने आईं। इन हालातों के चलते लाखों हिंदू और सिख परिवारों को भारत पलायन करना पड़ा।

हालाँकि, भारत में इन घटनाओं को लेकर जनता और विपक्षी नेताओं में आक्रोश था, फिर भी नेहरू सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य कदम नहीं उठाया। पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दिया। नेहरू का मानना था कि भारत को एक ज़िम्मेदार और शांतिप्रिय राष्ट्र की तरह पेश आना चाहिए और पाकिस्तान को भी अपनी जिम्मेदारी खुद निभाने का मौका दिया जाना चाहिए। इसी शांतिप्रिय राष्ट्र का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने 1947 और 1965 में दो बार कश्मीर पर हमला किया।

फिर 1960 में, भारत और पाकिस्तान के बीच एक सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुआ, जिसकी भीख पाकिस्तान ने खुद माँगी थी। जल संधि पर हस्ताक्षर के तहत भारत से बहने वाली छह नदियों में से तीन का पानी पाकिस्तान को दिया गया। नेहरू ने इस समझौते को दोनों देशों के बीच सद्भावना बनाए रखने का एक नाम दिया। हालाँकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह समझौता भारत के किसानों के साथ अन्याय था, क्योंकि देश के हक का पानी दुश्मन देश को दिया जा रहा था।

पाकिस्तान में लगातार हिंदुओं की स्थिति बदतर देखते हुए नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने एक समझौता किया। इसका उद्देश्य था कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। जबरन धर्म परिवर्तन और हिंसा को रोका जाए। जबरन धर्म परिवर्तन और हिंसा को रोका जाए।

जब हो सकता था कश्मीर पर समझौता

इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में 1971 का भारत-पाक युद्ध हुआ, जिसके बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत ने पाकिस्तान की सेना को निर्णायक रूप से हराया और 93,000 पाकिस्तानी फौजियों को युद्धबंदी बनाया। लेकिन इस जीत के बाद भी भारत ने कश्मीर मुद्दे पर कोई लाभ नहीं उठाया।

पाकिस्तान के फौजियों को बिना शर्त छोड़ देना इस बात का प्रतीक था कि भारत अब भी पाकिस्तान को ‘भाई’ मानता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ऐतिहासिक मौका था, जिसके चलते भारत कश्मीर मुद्दे पर एक फैसला कर सकता थै, जिसे शांति की नीति के चलते छोड़ दिया।

राजीव गाँधी के कार्यकाल में पाकिस्तान को लेकर भारत की नीति अधिक मौन थी। स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में पाकिस्तान का नाम भी मुश्किल से लिया जाता था। इसी दौरान पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया।

1980-1990 के दशक के दौरान जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद तेजी से बढ़ने लगा। हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी से अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। हजारों कश्मीरी हिंदुओं को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया और तब आतंक का दौर जम्मू-कश्मीर से शुरू हुआ। पाकिस्तान की भूमिका आतंकवाद पर स्पष्ट थी, लेकिन भारत की प्रतिक्रिया अभी भी संयमित थी।

2008 में जब मुंबई में 26/11 का आतंकी हमला हुआ और पाकिस्तान से आए आतंकियों ने 166 लोगों की हत्या कर दी, तब भी भारत ने किसी प्रकार की सीधी जवाबी कार्रवाई नहीं की। 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15 अगस्त के भाषण में सिर्फ कश्मीर को दी गई रियायतों का ज़िक्र किया, लेकिन इस भाषण में कहीं भी पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया। यह सब दर्शाता है कि उस समय भारत की नीति में अब भी ‘संयम’, ‘राजनीतिक शिष्टाचार’ और ‘शांति प्रक्रिया’ का ही वर्चस्व था।

नरेंद्र मोदी का दौर: कठोर यथार्थवाद और निर्णायक कार्रवाई

जब 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान को लेकर भारत की नीति ने पूरी तरह से नया मोड़ लिया। मोदी सरकार ने पाकिस्तान के प्रति एक कठोर और आक्रामक रुख अपनाया और ‘भाईचारे’ की पुरानी नीति को पूरी तरह से त्याग दिया। उनका मानना है कि भारत अब ‘परमाणु ब्लैकमेल’ को बर्दाश्त नहीं करेगा और आतंकवाद को संरक्षण देने वालों पर कोई तरस नहीं दिखाया जाएगा। मोदी ने अपने भाषणों में पाकिस्तान को सीधे तौर पर आतंकवाद का आश्रयदाता करार दिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करना शुरू कर दिया।

2016 में पाकिस्तान ने उरी में भारतीय सैनिकों पर हमला किया, जिसमें 19 जवान शहीद हुए। इस हमले के बाद भारत ने पहली बार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकियों के ठिकानों को नष्ट किया। यह भारत की सैन्य नीति में ऐतिहासिक बदलाव था।

फिर 2019 में पुलवामा हमले में 40 जवानों की शहादत के बाद भारत ने ‘बालाकोट एयरस्ट्राइक’ कर पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकी ठिकानों पर बमबारी की। ये दोनों घटनाएँ इस बात का संकेत थीं कि भारत अब ‘हमला होने के बाद चुप नहीं बैठेगा’, बल्कि करारा जवाब देगा।

2019 में, मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर एक बड़ा कदम उठाया, जिससे राज्य को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान खत्म हो गया। यह भी पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि वह इस मुद्दे पर लगातार अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की माँग करता रहा था।

मोदी सरकार ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की भी रणनीति अपनाई। संयुक्त राष्ट्र, G20, BRICS जैसे मंचों पर भारत ने बार-बार पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन करने वाला देश बताया। साथ ही, बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके जैसे मुद्दों को भी वैश्विक चर्चा में लाने का काम किया, जो पहले के प्रधानमंत्री कभी नहीं करते थे।

मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि को भी नए सिरे से देखने की बात कही। मोदी ने सार्वजनिक मंच से कहा कि यह संधि भारत के किसानों के साथ अन्याय है, क्योंकि भारत की नदियों का पानी दुश्मन देश की जमीन सींच रहा है और भारतीय खेत सूख रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब ‘खून और पानी एक साथ नहीं बहेंगे।’ इसका मतलब था कि अगर पाकिस्तान भारत में आतंक फैलाएगा, तो भारत उसे पानी भी नहीं देगा। सिंधु जल समझौते पर यह अब तक की सबसे कठोर टिप्पणी थी, जो यह दर्शाती है कि भारत अब रियायत देने के मूड में नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत अब परमाणु धमकियों के सामने नहीं झुकेगा। पाकिस्तान लंबे समय से ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ की रणनीति अपनाता रहा है– जैसे ही भारत कुछ सख्त रुख दिखाता है, पाकिस्तान परमाणु हथियारों की धमकी देने लगता है। लेकिन मोदी ने यह साफ कह दिया कि अब भारत की सेना जवाब अपने समय, अपने तरीके और अपनी शर्तों पर देगी। यही बात उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भी कही, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकियों के ठिकानों का चकनाचूर किया था।

पीएम मोदी ने पाकिस्तान को करारा जवाब देते हुए ये भी कहा था, कि सुख चैन से जियो! रोटी खाओ..वरना मेरी गोली तो है ही”… जो दर्शाता है कि मौन रहने वाला दौर अब कॉन्ग्रेसी काल के दौरान ही चला गया है।

इस प्रकार देखा जाए तो जहाँ नेहरू और उनके बाद के प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तान के प्रति सुलह, समझौता और भाईचारे की नीति अपनाई, वहीं मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान को अब आतंकवाद के हर कदम का जवाब मिलेगा। नेहरू के जमाने में पाकिस्तान को ‘दिल और बाहों का हिस्सा’ कहा जाता था, जबकि मोदी के नेतृत्व में भारत ने उसे ‘आतंकवाद का अड्डा’ बताया और उससे बिना किसी भावनात्मक मोह के सख्ती से निपटने का संकल्प लिया।

आज भारत की नीति यह है कि आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। भारत अब ‘हमला सहने वाला देश’ नहीं रहा, बल्कि ‘जवाब देने वाला राष्ट्र’ बन गया है। मोदी सरकार के नेतृत्व में पाकिस्तान को लेकर भारत की नीति भावनात्मक नहीं, बल्कि यथार्थवादी और निर्णायक बन चुकी है।

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