प्रधानमंत्री मोदी की Economic Advisory Council में उनके सलाहकार संजीव सान्याल ने
न्यायपालिका के लिए कुछ कड़वे सत्य क्या बोल दिए, सुप्रीम कोर्ट के दलाल वकीलों का हाजमा ख़राब हो गया और एडवोकेट शशि रंजन कुमार सिंह, रोहित पांडेय और उज्जवल गौर ने अटॉर्नी जनरल से उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का आपराधिक मुकदमा दायर करने की अनुमति मांगी है।
अभी कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस अभय ओका ने कहा था कि हर सरकार दमन करती है और लोगों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं। चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि संविधान और जनता के बीच पुल का काम करती है न्यायपालिका।
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लेखक चर्चित YouTuber |
Deport किए गए बांग्लादेशियों को तुरंत वापस बुलाने का आदेश देती है अदालत जिससे देश में बांग्लादेशी, रोहिंग्या और पाकिस्तानियों की हुकूमत बन जाए जबकि 33 साल से अमेरिका में रहने वाली भारतीय नारी को डिपोर्ट कर दिया जाता है।
संजीव सान्याल ने कुछ कड़वे सत्य क्या बोल दिए कुछ वकील पगला गए और हो सकता है दर्द तो न्यायपालिका को भी हो रहा होगा। क्या यह मौलिक अधिकारों पर हमला नहीं है और क्या प्रधानमंत्री के सलाहकार की भी आवाज़ दबाने की कोशिश की जाएगी।
सान्याल ने यही तो कहा कि न्यायपालिका विकसित भारत के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा है - यह 100% सत्य है। आखिर कौन सा ऐसा कानून है या विकास परियोजनाएं हैं जिन पर कैंची चलाने की कोशिश अदालत न करती हो। वकीलों ने सान्याल द्वारा कोर्ट की 2 महीने की छुट्टियों, My Lord जैसी अंग्रेजों की शब्दावली पर भी एतराज उठाया है। सान्याल ने कहा था कि क्या अस्पतालों और पुलिस विभाग में 2 महीने की छुट्टियां हो सकती हैं।
वकीलों ने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि ऐसे बयानों से न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम हो सकता है। ऐसा बोलने से पहले यह तो सोच लेते कि आज जनता का विश्वास न्यायपालिका रह ही कहां गया है। एक वकीलों के गिरोह ने जैसे न्यायपालिका पर कब्ज़ा किया हुआ है और सुप्रीम कोर्ट की वजह से आज बच्चियों और नाबालिग लड़कियों के बलात्कार को बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि उनके अपराधियों को छूट मिल जाती है और यहां तक कह दिया जाता है कि Every Sinner Has A Future.
लालू यादव जैसे 32 साल की सजा पाए सजायाफ्ता अपराधी को अगर अदालत छोड़ कर मौज करने देगी तो भारत विकसित कैसे होगा? यह सरासर अदालत की बदमाशी है जबकि सुप्रीम कोर्ट ED को बदमाश कह रहा है।
देश के विकास में रोड़ा तो सुप्रीम कोर्ट उसी दिन से बन गया था जब उसने कॉलेजियम देश पर थोप दिया जिसका जिक्र संविधान में नहीं है और जो कभी संसद ने पारित नहीं किया। जो सुप्रीम कोर्ट स्वयं तानाशाही कानून लागू करता है और राष्ट्रपति तक को आदेश देकर अपमानित करता है, वह निश्चित रूप से विकसित भारत के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है।
अटॉर्नी जनरल को वकीलों की अर्जी को कूड़ेदान में फ़ेंक देना चाहिए और सवाल उन वकीलों से ही नहीं चीफ जस्टिस से भी पूछना चाहिए कि क्या देश में ऐसा लोकतंत्र चाहते हो जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय को भी कुछ बोलने की अनुमति नहीं होगी?
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