जस्टिस परदीवाला को जबरन पदच्युत कर देना चाहिए; उनका एक आदेश वापस हुआ, दो और वापस होने चाहिए; यह मामला असीमित अधिकारों का है जो संजीव खन्ना किसी संस्था को नहीं देना चाहते पर सुप्रीम कोर्ट के पास हैं ये अधिकार

सुभाष चन्द्र

पिछले दिनों One Nation One Election से संबंधित विधेयक पर गठित संसदीय समिति के सामने पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि किसी एक संस्था को असीमित अधिकार देना लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। इनके विषय पर केवल इतना कहूंगा कि यदि विधेयक में अधिकार दिए जा रहे हैं तो सभी लोकतांत्रिक मानदंडों के अनुसार जबकि सुप्रीम कोर्ट ने असीमित अधिकार स्वयं अपने हाथ में ले लिए और वो किसी संसद से पास किये गए विधेयक ने नहीं दिए

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सुप्रीम कोर्ट को छोड़िए, हर एक जज अपने पास असीमित अधिकार रखता है जैसे पृथ्वी का भगवान उसके अलावा कोई है ही नहीं

पिछले महीने अगस्त में जस्टिस परदीवाला और जस्टिस आर महादेवन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को रिटायरमेंट तक के लिए Criminal cases की सुनवाई से दूर रखने को कहा और कहा कि उन्हें किसी वरिष्ठ जज के साथ बेंच में स्थान दिया जाए जस्टिस प्रशांत कुमार का कसूर केवल इतना था कि- “he had refused to quash a criminal complaint, stating that the availability of a civil remedy for money recovery was not sufficient ground for quashing the complaint”

एक केस के लिए जस्टिस परदीवाला ने जस्टिस प्रशांत कुमार को रिटायरमेंट तक के लिए दागी बना दिया जिसके खिलाफ हाई कोर्ट के 13 जजों ने विद्रोह कर दिया और तब चीफ जस्टिस बी आर गवई ने परदीवाला की बेंच से “अनुरोध” कर आदेश वापस लेने को कहा लेकिन फिर भी परदीवाला की प्रशांत कुमार की इज़्ज़त उड़ाने के बावजूद कहा कि “we must clarify that our intention was not to cause embaraassment or cast aspersions on the concerned judge, we would not even think of doing so. However, when the matters cross a threshold and dignity of institution is imperilled,it becomes the constitutional responsibility of this court to intervene even when acting under its appellate jurisdiction under article 136 of the constitution”

लेकिन प्रश्न यह खड़ा होता है जो 136 में किया, उसका अपने ही आदेश वापस  लेने के बाद क्या हुआ - क्या इसका मतलब यह हुआ कि आपने अपनी आर्टिकल 136 में जिम्मेदारी नहीं निभाई यह था आपका “असीमित अधिकार” जिसका आपने दुरूपयोग किया क्यूंकि जस्टिस प्रशांत कुमार की रिटायरमेंट 29 मई, 2029 को है यानी अगले 4 साल के लिए आपने उन्हें सजायाफ्ता मुजरिम बना दिया आपका फैसला वापस लेना अपने आप में दर्शाता है कि आप में सुप्रीम कोर्ट के जज की योग्यता नहीं है ही नहीं

जस्टिस परदीवाला और जस्टिस महादेवन ने ही राष्ट्रपति को आदेश देते हुए संविधान में वह संशोधन कर दिया जिसका अधिकार केवल दो तिहाई बहुमत से संसद के दोनों सदनों को है राष्ट्रपति को आपके आदेश मर्यादाएं लांघने वाला था जिसे आपको स्वयं ही वापस ले लेना चाहिए परंतु अफ़सोस इस बात का है कि चीफ जस्टिस ने आपको ऐसा करने के लिए कहने की जरूरत नहीं समझी

नूपुर शर्मा के खिलाफ जस्टिस सूर्यकांत के साथ बेंच में बैठकर जस्टिस परदीवाला ने सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की सबसे भयंकर “Hate Speech” दी और उसकी अपील भी ख़ारिज कर दी थी उस फैसले और अपने बयानों के लिए आप दोनों जजों को सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगनी चाहिए आप नूपुर शर्मा की इज़्ज़त उतार कर रख दी लेकिन तस्लीम रहमानी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला जिसके शंकर जी पर दिए घिनौने बयान पर नूपुर ने प्रतिक्रिया दी लेकिन आपने देश भर में लगाई गई आग के लिए नूपुर को दोषी बता दिया जैसे कन्हैया के हत्यारों का कोई दोष नहीं था 

दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है जहां न्यायपालिका ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करती हो लेकिन यह अधिकार हमारे सुप्रीम कोर्ट ने न जाने किस संविधान के किस अनुच्छेद में ले लिए और अब कह रहे हैं कि किसी एक संस्था को असीमित अधिकार नहीं देने चाहिए

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