क्या विरोधियों ने नेपाल में गुंडागर्दी ने पलटा तख्ता; क्या नेपाल जलाने से बेरोजगारी और भ्रष्टाचार दूर हो गया; सेना ने देश की कमान संभाली; वामपंथियों ने खून बहा अस्थिरता की ओर धकेला, अब सोशल मीडिया के लिए उबल रहा Gen-Z

                                        नेपाल में प्रदर्शन की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार: AI Grok)
क्या श्रीलंका और बांग्लादेश की चुनी हुई सरकार को जिस तरह से साजिश के तहत गिराया गया था, क्या वही नेपाल के साथ हो रहा है? श्रीलंका और बांग्लादेश में जिस तरह संसद पर कब्जा किया गया और अराजकता फैलाया गया, नेपाल में भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है।

नेपाल की राजधानी काठमांडू से लेकर आसपास के 7 बड़े जिलों की सड़कों पर हजारों युवा इकट्ठा होकर सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। पुलिस की गोलियाँ चलीं, आँसू गैस के गोले फूटे और अब तक कम से कम 19 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 347 से ज्यादा घायल हो गए हैं।

इन प्रदर्शनों के पीछे सोशल मीडिया बैन को वजह बताया जा रहा है। हैरानी की बात है कि जो देश दशकों तक हिंसा से जूझता रहा। जिस देश में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था लाई गई, वो देश राजनीतिक स्थिरता के लिए तरसता रहा। उस देश में बेरोजगारी चरम पर है। लोगों के पास काम नहीं है। देश लगातार पीछे जा रहा है। उस देश में युवा रोजगार और नौकरियों के लिए नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।

नेपाल की संसद में घुसे प्रदर्शनकारी

नेपाल में सोशल मीडिया इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, फेसबुक आदि पर बैन लगाए जाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जेन जी यानी 18 से 30 साल के युवा सोमवार (8 सितंबर 2025) को संसद में घुस गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए आँसू गैस के गोले दागे और पानी का बौछार किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ भी चलाई गईं। इसमें अब तक 14 प्रदर्शनकारियों की मौत की खबर है।

हालाँकि मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि ये प्रदर्शन सिर्फ सोशल मीडिया ऐप्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट पर लगे बैन के खिलाफ शुरू हो हुआ, लेकिन इसकी जड़ में भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म (यानी परिवारवाद) और बेरोजगारी के खिलाफ भरा गुस्सा भी है। लेकिन ये गुस्सा अब तक क्यों नहीं दिखा, लोगों के मन में ये सवाल भी उठ रहा है।

दशकों की माओवादी हिंसा, फिर राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है नेपाल

पहले नेपाल की स्थिति समझिए। नेपाल दो दशक पहले तक माओवादी हिंसा से जूझ रहा था। 1996 से 2006 तक चले गृहयुद्ध में हजारों लोग मारे गए, और उसके बाद से राजनीतिक अस्थिरता का सिलसिला थमा नहीं। राजशाही खत्म हुई, लोकतंत्र आया, लेकिन सरकारें बदलती रहीं।

आज नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) की सरकार है, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में। लेकिन भ्रष्टाचार की शिकायतें आसमान छू रही हैं। युवा कहते हैं कि नेता अपने परिवारवालों को पोस्ट देते हैं, ‘नेपो किड्स’ को फायदा पहुँचाते हैं जबकि आम लोग भूखे मर रहे हैं। और अब सोशल मीडिया बैन ने आग में घी डाल दिया।

5 सितंबर 2025 से नेपाल सरकार ने 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया। वजह? ये कंपनियाँ नेपाल में रजिस्टर नहीं हुईं, लोकल ऑफिस नहीं खोले और टैक्स नहीं दे रही थीं। सरकार का कहना है कि ये प्लेटफॉर्म फेक आईडी, हेट स्पीच और फ्रॉड फैला रहे हैं, इसलिए रेगुलेशन जरूरी है। लेकिन आलोचक कहते हैं कि ये फ्री स्पीच पर हमला है।

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से कहा था कि आप कानून बनाकर सोशल मीडिया को रेगुलेट कर सकते हैं, लेकिन कैबिनेट डिसीजन से ऐसा करना सही नहीं होगा। इसके बावजूद ओली सरकार नहीं मानी और 26 ऐप्स को बैन कर दिया।

नतीजा? काठमांडू, पोखरा, भैरहावा, भरतपुर, इतहारी और दमक जैसे शहरों में प्रदर्शन फैल गए। जेन-जी (यानी 1997-2012 में जन्मे युवा) स्कूल-कॉलेज यूनिफॉर्म पहनकर सड़कों पर उतरे, नारे लगाए- ‘एनफ इज एनफ’ (बस बहुत हो गया)।

पुलिस ने रबर बुलेट्स, वॉटर कैनन और यहाँ तक कि प्रदर्शनकारियों पर सीधे फायरिंग भी की गई। इसी कड़ी में 8 सितंबर 2025 को संसद के बाहर प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड तोड़े, जिसके बाद गोलीबारी में 17 मौतें काठमांडू में ही हुईं। स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़े के मुताबिक, नेपाल में 19 मौतें हो चुकी हैं, जबकि 347 युवा घायल हुए हैं।

नेपाल में बवाल के पीछे की असल वजह क्या?

अब मुख्य कारण पर आते हैं- बेरोजगारी और भ्रष्टाचार। नेपाल में युवाओं की हालत बहुत खराब है। वर्ल्ड बैंक के लेटेस्ट डेटा के मुताबिक, 2024 में बेरोजगारी दर 10.71% थी, और 2025 के अंत तक ये 10% तक रहने की उम्मीद है। लेकिन युवाओं में ये दर और ज्यादा है- करीब 20-25% युवा बेरोजगार हैं।

देश की आबादी 3 करोड़ है, और 15-24 साल के युवाओं में बेरोजगारी सबसे ज्यादा। पैसा नहीं, नौकरी नहीं, तो युवा अपना समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं। वो वहाँ दोस्तों से जुड़ते हैं, दुनिया की खबरें लेते हैं, और हाँ कुछ कमाई भी करते हैं। यूट्यूब पर वीडियो बनाकर, इंस्टाग्राम पर इन्फ्लुएंसर बनकर, या फेसबुक पर छोटे बिजनेस चलाकर। लेकिन बैन ने ये सब छीन लिया।

एक युवा प्रदर्शनकारी ने कहा, “हमारे पास खाने को पैसे नहीं, काम नहीं, अब मनोरंजन और आवाज का साधन भी छीन लिया।” ये गुस्सा जायज है। नेपाल पहले से ही गरीबी से जूझ रहा है- जीडीपी पर कैपिटा महज 1,300 डॉलर है और महंगाई 7% से ऊपर। युवा विदेश जा रहे हैं- हर साल लाखों नेपाल छोड़कर मलेशिया, कतर जैसे देशों में मजदूरी करते हैं। घर पर रहने वाले सोशल मीडिया से जुड़े रहते थे, अब वो भी गया।

ये प्रदर्शन सिर्फ बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि सिस्टम के खिलाफ हैं। युवा नेपो किड्स (नेता के बच्चे) पर हमला बोल रहे हैं, जो बिना मेहनत के पोस्ट पा जाते हैं। भ्रष्टाचार के मामले जैसे कोऑपरेटिव फ्रॉड, जहाँ लाखों लोगों का पैसा डूब गया।

ये सबकुछ देखते हुए, समझते हुए सवाल भी उठ रहे हैं कि जो देश इन सब समस्याओं से लगातार प्रभावित रहा हो, वहाँ अब तक जनता खामोश क्यों बैठी रही? ये जेन-जी जेनरेशन सोशल मीडिया बैन के बाद ही क्यों जागी? सवाल ये भी है कि इन प्रदर्शनों के पीछे सिर्फ सोशल मीडिया बैन ही है, या फिर कोई अन्य ताकत?

कांग्रेस की नई उम्मीद भी फेल

नेपाल के इन प्रदर्शनों को लेकर इंडियन यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने ट्वीट किया, “नेपाल के जागरूक युवाओं ने बगावत कर दी है। तानाशाही ज्यादा दिनों तक चलती नहीं, चाहे कोई भी मुल्क हो।” उनके ट्वीट में एक वीडियो भी है जहाँ युवा सड़कों पर उतरे दिख रहे हैं।
अब भारत की बात। कांग्रेस पार्टी को लगता है कि अगर यहाँ सोशल मीडिया पर पाबंदी लगी या कंपनियाँ पैसा बंद कर दें, तो भारतीय युवा भी सड़कों पर आ जाएँगे। शाहीन बाग, किसान आंदोलन की तरह। वो उम्मीद जता रही है कि नेपाल का ये आंदोलन भारत में विपक्ष को मजबूत करेगा। हालाँकि सवाल ये भी है कि नेपाल भारत का मित्र राष्ट्र रहा है। ऐसे में नेपाल के अंदर की अस्थिरता भारत के हित में कभी नहीं होती, इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी के नेता नेपाल में आई अस्थिरता को लेकर खुश हो रहे हैं, तो ये सोचने वाली बात है।
वैसे, भारत की बात करें तो भारत में सोशल मीडिया का मार्केट बहुत बड़ा है। 2025 में भारत में 491 मिलियन सोशल मीडिया यूजर्स हैं, जो कुल आबादी का 33.7% है। इंटरनेट यूजर्स 806 मिलियन हैं। सोशल मीडिया से लोग कैसे कमाते हैं? इन्फ्लुएंसर्स यूट्यूब, इंस्टाग्राम से लाखों कमाते हैं- स्पॉन्सरशिप, ऐड्स से। छोटे बिजनेस वाले फेसबुक पर प्रोडक्ट बेचते हैं। डिजिटल मीडिया मार्केट 2023 में 21.85 बिलियन डॉलर था, जो 2030 तक 61.36 बिलियन तक पहुँचेगा। सोशल मीडिया मैनेजमेंट मार्केट 2024 में 263.3 मिलियन डॉलर है, जो 2030 तक 1.16 बिलियन हो जाएगा।
हालाँकि रही बात भारत में ऐसे आंदोलनों की, तो वो होने से रही। भारत में सोशल मीडिया हो या न्यू मीडिया, सरकार की गाईडलाइन्स भी हैं और यूजर्स के हितों की रक्षा भी। चूँकि भारत का लोकतंत्र बहुत मजबूत है। भारत सरकार लगातार युवाओं के लिए कदम उठा रही है। नौकरियों से लेकर रोजगार तक में पिछली सरकारों से बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड इस सरकार का रहा है। ऐसे में कुछ लोगों के चाहने भर से नेपाल जैसी स्थिति हो जाए, ऐसा फिलहाल नजर नहीं आता है।

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