सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय चैनलों पर होने परिचर्चाओं में अक्सर ऐसे मुद्दे निकलकर आते हैं, जिन पर सियासती पार्टियों को गंभीरता से लेना चाहिए। लेकिन अपने वोट बैंक के चक्कर में नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो देशहित में नहीं। मुसलमान का बच्चा पेट से बाहर बाद में आता है हिन्दू और बीजेपी विरोधी पहले। लेकिन इतनी बड़ी और अति गंभीर बात को बेशर्म एंकर ने इस बात को निकालने के लिए बोल दिया। जबकि एक नागरिक के ये शब्द सनातन विरोधी हिन्दुओं और मुसलमानों के ठेकेदारों पर जबरदस्त प्रहार था।
80 दशक में बहुचर्चित हबीब पेंटर कव्वाल की एक कव्वाली "जब खून ही खून का दुश्मन बना . .." जो आज के परिवेश में सटीक बैठती है। कुर्सी के लालची हिन्दू ही हिन्दुओं को जातियों के नाम पर भड़काते रहते हैं। जबकि हिन्दुओं के सारी जातियां एक ही मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं और एक ही शमशान पर अंतिम संस्कार। बिहार का चुनाव कोई चुनाव नहीं बल्कि जातिवाद का चुनाव है जो भारतीय राजनीति के नाम पर धब्बा कहा जा सकता है। जातियों के नाम पर देखो कितनी पार्टियां बनी हुई है। लेकिन मुसलमानों की अपनी जातियों के नाम पर एक पार्टी नहीं। इस्लाम के नाम पर सब एक हैं।
वारिस पठान ने बात कही, वो बहुत गंभीर है। उन्होंने बहुत ठोंक कर कहा कि 19% मुसलमान हैं। मगर कोई नहीं कहता कि मुसलमानों के अंदर कौन शेख है, कौन सैयद है, कौन पठान है, कौन गद्दी है, कौन घोसी है, कौन मिरासी है, कौन जुलाहा है, कोई अंसारी है, ना कोई नहीं बोलता और मजे की बात यह है, कोई यह भी नहीं पूछता कि मुफ्ती मुकर्रम बारी, हाफिज, , मौलवी में कितने जो हैं वो जुलाहा, अंसारी, वे हैं।
मजे की बात कोई नहीं पूछता उनसे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में कितने हैं। शिया, सुन्नी, वहाबी, अहमदी आदि एक दूसरे की मस्जिद में न तो नमाज़ पढ़ सकते हैं और न ही एक दूसरे के कब्रिस्तान में मुर्दा तक नहीं दफना सकते। जबकि मरने वाले के लिए कहते हैं कि "अल्लाह की अल्लाह के पास गयी" फिर अलग कब्रिस्तान क्यों? और कई मतभेद हैं लेकिन इस्लाम के नाम पर एक रहते हैं।
हिन्दुओं को जातियों के नाम पर भड़काने वाले बेशर्म हिन्दू नेता कभी रामायण को अपमानित करते हैं, हिन्दू देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करने वाले सनातन विरोधियों का बेशर्मी के साथ बचाव करते हैं। उनकी ऐसी हिन्दू विरोधी हरकतों को देख इनके हिन्दू होने पर ही शक होने लगता है।
यह होती है एकजुटता, 20% ठोस है,
80 पे जात की चोट है।
20% अपना है 80 में टुकड़े करना है।
दिखाया भी जाता है 19% मुसलमान और हिंदुओं में अभी देखिए क्या-क्या दिखाया जा रहा था, इतने ब्राह्मण, इतने भूमिहार, इतने यादव, कुर्मी, इतने सैनी, इतने शाक्य, इतने ये इतने वो।
ये बहुत गंभीर बात कही है वारिस पठान जी ने और मैं कहूंगा जो आपके लाखों करोड़ों लोग देख रहे हो बिहार के या देश के, उन्हें इनसे समझना चाहिए। जो एकजुट रहता है, उसकी बात पे झुकना पड़ता है।
लालू प्रसाद यादव जी जिस समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं वो हिंदू समाज में माता मानी जाने वाली गौमाता का गोपालक समाज है।
वो इन वारिस पठान के लोगों को गोपाष्टमी के दिन भी गाय खाने से रोक नहीं पाए, इन लोगों ने मुहर्रम के ताजिये के आगे लालू जी के पूरे परिवार को झुकवा दिया और इमारत-ए-शरीया के कार्यक्रम में तेजस्वी यादव से अपने पक्ष में बुलवा दिया। ये होती है ताकत। जो वारिस पठान जी ने कहा जरा गंभीरता व गहराई से सोचिए।
No comments:
Post a Comment