आज़ादी के 78 साल बाद भी बिहार में “अति पिछड़े वर्ग” के 36.01% लोग कौन है जिम्मेदार? इसके लिए जंगल राज और जातिगत घिनौनी सियासत से बचे बिहार

सुभाष चन्द्र

जब भी किसी नेता की मृत्यु होती उसकी प्रशंसा में एक से बढ़कर एक तारीफ के पुल बांधे जाते हैं, लेकिन धरातल पर देखने पर मिलता है ढाक के तीन पात। बिहार ही नहीं पूरा भारत इसकी जीती-जागती मिसाल है। हिन्दुओं को जातियों और आरक्षण के नाम पर विभाजित कर अपनी तिजोरी भर अपनी पीढ़ियों तक को राजशाही जिंदगी का इंतजाम कर जाते हैं। जहाँ तक बिहार की बात है इसके पिछड़ापन के लिए जातिवाद जिम्मेदार है। जब तक बिहार से जातिगत सियासत ख़त्म नहीं होगी बिहार का विकास आधारहीन ही रहेगा। बिहार वालों को इस कटु सच्चाई को समझना होगा।    

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जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा तो जोर शोर से लगाता है राहुल गांधी लेकिन उसे पता नहीं कि कांग्रेस पार्टी ने बिहार में आज़ादी के बाद 35 साल यानी 43% समय से भी ज्यादा राज किया है और 1981 में बिहार शरीफ हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमे 45 से ज्यादा लोग मारे गए और 1989 में राम जन्मभूमि को लेकर भागलपुर दंगे हुए जिसमें 1000 लोग मारे गए और 50,000 से ज्यादा विस्थापित हुए

बिहार शरीफ दंगों के समय जगन्नाथ मिश्रा और भागलपुर दंगों के समय सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री थे 35 साल शासन करने वाली पार्टी ने बिहार को क्या दिया, वह आज की बिहार की हालत बता सकती है

जातिगत जनगणना का शोर मचाने वाले राहुल गांधी और विपक्षी दलों को पता होगा कि 2022 में जो नीतीश कुमार के समय में यह सर्वे हुआ उसके अनुसार विभिन्न जातियों की स्थिति यह थी -

अति पिछड़ा वर्ग  -36.01%

OBC - 27.12% 

यादव –14.26%

दलित (SC) – 19.65%

अनुसूचित जनजाति - 1.68%

जनरल कास्ट - 15.52% 

मुस्लिम - 17.70% (मुसलमानों की जातियों की पहचान नहीं की जाती)

एक सूचना के अनुसार अब तक बने 4,443 IAS अधिकारियों में उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा 652 IAS के बाद बिहार सबसे ज्यादा 419 IAS देने वाला राज्य है फिर भी बिहार में 36% EBC.

कांग्रेस के 43% कालखंड में राज करने वाली पार्टी के अलावा JDU और RJD ने भी 25-25% कालखंड में राज किया है

अब सवाल यह उठता है इतना सब होते हुए बिहार में आज़ादी के बाद आज 36% “अति पिछड़े वर्ग” के लोगों के होने का क्या मतलब है? जबकि इस वर्ग से कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री भी रहे ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने इस वर्ग का जीवन स्तर उठाने की कोशिश ही नहीं की बस उनके वोट बटोरते रहे इस प्रश्न का उत्तर आप लोग भी तलाश कीजिए यह बात राहुल गांधी को भी बतानी चाहिए कि 36% आबादी वाले वर्ग को देने के लिए उसके पास क्या योजना है

आज की तारीख में “अति पिछड़ा वर्ग” के अग्रणी नेता है जीतन राम मांझी उन्हें NDA गठबंधन में 6 सीट मिलीं हैं जिनमें से 4 पर अपने परिवार के सदस्यों को ही उन्होंने खड़ा किया है

अपने बेटे संतोष कुमार सुमन, उसकी पत्नी दीपा मांझी, बेटे की सास ज्योति देवी और दामाद देवेंद्र मांझी मतलब घर में दो तिहाई सीट अपने परिवार में बांट ली क्या पूरे “अति पिछड़े समाज” में कोई और काबिल व्यक्ति नहीं है क्या? 

पूरे इंडी लठ-बंधन की और प्रशांत किशोर की नज़र भी केवल मुस्लिम वोटों पर है - लेकिन मुस्लिम कह रहे हैं कि उन्हें तो “दरी बिछाने” वाला समझा हुआ है जबकि RJD ने 18, कांग्रेस ने 10, CPI (माले) ने 2, JDU ने 4 और चिराग पासवान की पार्टी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया है - भाजपा ने कोई मुस्लिम खड़ा नहीं किया क्योंकि मुस्लिम उन्हें वोट नहीं देते -

एक और तबका है जिसका चुनाव में बोलबाला है और वो है “बाहुबलियों” का - RJD ने 10 बाहुबली खड़े किये है, JDU ने 7, भाजपा ने 2 और चिराग की पार्टी ने एक - जितने ज्यादा बाहुबली “माननीय” बनेंगे उतना ज्यादा “जंगल राज” मिल सकता है - इसलिए किसी भी पार्टी के हों, जनता को चाहिए बाहुबलियों को नकार देना चाहिए  -

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