प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के पीछे इनके विरोधी तब से पीछे पड़े हैं, जब मोदी एक प्रचारक के अलावा कुछ भी नहीं थे। इसकी मिसाल 1993 में तब मिली थी जब कश्मीर में लाल चौक पर झंडा फहराने डॉ मुरली मनोहर जोशी के साथ मोदी को भी जाने पर आतंकवादियों की धमकी पर मोदी ने कहा था "जिसने माँ का दूध पिया है आ जाना।" इतना ही नहीं जब यूपीए सरकार ने आतंकी अबू जुंदाल को गिरफ्तार किया था तब उसने क्या कहा था, लेकिन यूपीए सरकार ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। चलो Operation Sindoor ने उसे 72 हूरों के पास पहुंचा दिया।
खैर, जब ताशकंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या होने पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जाँच करवाने का सोंचा भी नहीं। लेकिन भारत और विदेशों में मोदी विरोधियों को यह बात समझ जानी होगी कि अब कालचक्र बदल चूका है।
यह खबर अब प्रचलित हो चुकी है कि अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी को 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाले SCO समिट में मोदी को मारने का काम सौंपा गया था जिसे भारत और रूस की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने मिलकर विफल कर दिया। मोदी का पुतिन की कार में एक सितंबर को 45 मिनट तक घूमना और उसके पहले पुतिन का मोदी के लिए होटल के बाहर 15 मिनट प्रतीक्षा करना कोई नाटक या संयोग नहीं था बल्कि मोदी ही नहीं पुतिन की रक्षा करने का भी प्लान था।
हैरानी भारत के मीडिया पर होती है जो बेशर्मों की तरह मुंह में दही जमाए बैठा है। जबकि सोशल मीडिया पर यह समाचार आग की फैला हुआ है। ये उस बेशर्म भारतीय मीडिया का हाल है जिसे पब्लिक और मोदी विरोधी "मोदी/गोदी मीडिया" कहते हैं। जनता नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय मीडिया आज भी कांग्रेस की गुलाम है। जितने गंभीर आरोप राहुल, प्रियंका और सोनिया पर लगते आ रहे अगर यही आरोप मोदी, योगी, अमित पर लग रहे होते यही मीडिया चीखा-चिल्ली कर रहा होता। किस बंकर में छुपे बैठे हैं खोजी पत्रकार? वास्तव में सोशल मीडिया ने राष्ट्रीय मीडिया को असफल कर रखा है।
इतना ही नहीं, जब 2014 चुनाव का शंखनाद बिहार के गाँधी मैदान से किया जा रहा था गाँधी मैदान के पास कितने बम फट रहे थे। वह पहली ऐसी जनसभा थी जब मोदी भाषण देने के बाद कुर्सी पर बैठने के बाद खड़े हुए और जनता से शांति से बिना किस डर से वापस जाने का आग्रह किया था। मीडिया उस समय की क्लिपिंग्स दिखाए।
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| लेखक चर्चित YouTuber |
अमेरिकी सरकार या उसके किसी ख़ुफ़िया विभाग ने इसके बारे में अभी तक मुंह नहीं खोला है।
प्रधानमंत्री मोदी को इसका आभास हो गया था और इसलिए उन्होंने अगले ही दिन एक सभा में कहा था कि मेरे जाने के लिए तालियां बजा रहे हो या मेरे वापस आने के लिए। मोदी कुछ शब्दों में ही बहुत कुछ कह देते है। ऐसे ही उन्होंने पंजाब में चन्नी को संदेश दिया था कि वो सही सलामत वापस जा रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ की घोषणा पहले 7 अगस्त को की थी और फिर 25 अगस्त को कहा था कि ये 1 सितंबर से लागू हो जायेंगे और मोदी की हत्या को अंजाम 31 अगस्त को देना था। मोदी ने उस समय अपने एक बयान में कहा था कि “For me, farmers come first. Their interest is most important. India will never agree to anything that hurts our farmers … Even if I have to pay a personal price for this, I am ready”. जाहिर है वे अपने जीवन पर खतरे को भांप रहे थे।
दुनिया भर की हर बात पर बोलने वाले ट्रंप को अब बताना चाहिए कि मोदी की हत्या की साजिश के पीछे अमेरिका में कौन था? क्या वह खुद मोदी को ठिकाने लगाना चाहते थे? इसका जवाब तो तुलसी गबार्ड को भी देना चाहिए जो अमेरिका की Director of National Intelligence (DNI) हैं जिनके अंतर्गत CIA, FBI समेत सभी 15 से ज्यादा ख़ुफ़िया एजेंसियां काम करती हैं और इसलिए तुलसी की भी जिम्मेदारी बनती है मुंह खोलने की।
क्या मोदी की हत्या की साजिश के पीछे कोई अमेरिकी था, या Deep State के गुर्गे थे और या भारत समेत कुछ विदेशी शक्तियां थी? यह खबर फैलने के बाद विपक्ष, कांग्रेस या राहुल गांधी के मुंह से एक शब्द नहीं निकला है जैसे उनके लिए यदि मोदी की हत्या हो जाती तो ख़ुशी की बात होती।
अमेरिका में ऐसे राज उजागर नहीं होते, ये classified document बन जाते है और 20-25 वर्ष बाद खोले जाते हैं। लेकिन राज तो उजागर हो चुका है कि मोदी की हत्या की साजिश की गई और दोष डोनाल्ड ट्रंप पर लगना स्वाभाविक है क्योंकि वो ही मोदी का राजनीतिक करियर ख़तम करने की धमकी दे रहे थे। कोई मित्र बनकर ऐसे भी वार कर सकता है तो किसी पर भी कोई विश्वास क्यों करेगा।
पुतिन ने सोवियत संघ पर ताशकंद के लगे कलंक को मिटाने का काम किया है और जिनपिंग ने चीन को कलंकित होने से बचा लिया लेकिन ट्रंप कलंकित हो गया। यही कारण है जो मोदी ट्रंप से मिलने में संकोच कर रहे हैं और आज के ASEAN समिट में उन्होंने Virtually भाषण दिया जिससे ट्रंप को अपने तरीके से जवाब दिया जा सके। ट्रंप के तो समिट में Go Back के नारे लग गए।

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