प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को PIL के जरिए करोड़ों की कमाई करने का साधन बना रखा है और “आप” पार्टी के एक नेता आशीष खेतान ने 2015 में आरोप लगाया था कि प्रशांत भूषण ने PIL को व्यवसाय बना कर 500 करोड़ से ज्यादा कमाए हैं। वर्ष 2020 में प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक मानहानि साबित होने पर उस पर मात्र एक रुपए का जुर्माना लगा कर छोड़ दिया था जिसका मतलब साफ़ था कि कोर्ट भी इसकी मनमानी के आगे घुटने टेक देता है और बार कौंसिल ने उसे नोटिस देकर कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझी।
अब बिहार SIR के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बागची की बेंच ने प्रशांत भूषण को एक झूठा हलफनामा देने के लिए रंगे हाथ पकड़ा और उसे “फटकार” लगाते हुए उसके द्वारा दिए गए 20 अन्य हलफनामों के सत्यतता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
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| लेखक चर्चित YouTuber |
ऐसा ही झूठ योगेंद्र यादव का भी पकड़ा गया लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रशांत भूषण जैसे वकील सुप्रीम कोर्ट में अपने बाप का राज चला रहे हैं? यह ADR चुनाव आयोग के खिलाफ दर्जनों केस दायर कर चुका है और हर बार इसका वकील भूषण ही होता है।
क्या 20 हलफनामे को झूठा देखकर भी सुप्रीम कोर्ट को प्रशांत भूषण को बस फटकार लगा कर छोड़ देना चाहिए? उसके Client से ज्यादा जिम्मेदारी एफिडेविट दायर करने वाले उसके वकील की होती है।
राकेश किशोर के लाइसेंस को रद्द करने में बार कौंसिल ने एक मिनट भी नहीं लगाया और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी उसकी सदस्यता रद्द कर दी लेकिन प्रशांत भूषण का अबकी दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर भी क्या बार कौंसिल मुंह पर ताला लगा कर बैठी रहेगी।
IPC के section 191 और 193 के अंतर्गत यह Perjury का केस है यानी झूठा साक्ष्य प्रस्तुत करना जिसके लिए आरोपी को जानबूझकर कोर्ट में false affidavit file करने के लिए 7 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। इसके अलावा सेक्शन 209 में कोर्ट में धोखा देने के मकसद से झूठ बोलने के लिए 2 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। Criminal contempt of court अलग से चल सकता है जो सुप्रीम कोर्ट को करना चाहिए।
यह काम बार कौंसिल का है कि वह ऐसे झूठे affidavit देने वाले वकीलों के खिलाफ Disciplinary Action ले और सुप्रीम कोर्ट विगत में कई राज्यों के बार कौंसिलों को झूठे हलफनामे देने वाले वकीलों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर निंदा कर चुका है लेकिन यहां तो सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे प्रशांत भूषण ने अपराध किया है फिर उस पर सुप्रीम कोर्ट खुद क्यों नहीं कार्रवाई करता?
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन केवल बार कौंसिल को अनुशंसा कर सकता है Disciplinary Action लेने के लिए लेकिन राकेश किशोर की तरह प्रशांत भूषण की सदस्यता रद्द करने की हिम्मत नहीं कर सकता।
राहुल गांधी को भी हलफनामा दे देना चाहिए झूठा साबित हो भी गया तो क्या, सुप्रीम कोर्ट जब प्रशांत भूषण को छोड़ सकता है तो राहुल गांधी तो “गांधी परिवार” की तोप है, उसका क्या बिगाड़ लेंगे?
मेरे विचार में चुनाव आयोग को ADR और प्रशांत भूषण के खिलाफ false affidavit देने के लिए आपराधिक मुकदमा दायर कर देना चाहिए क्योंकि अभी तो देश भर में SIR होना है और ये दोनों पूरे देश के मिशन में गंदगी फैलाएंगे -

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