जजों के चापलूसों और गुंडों की संस्थाएं बन गई हैं BCI और SCBA; कभी सिंघवी को सस्पेंड किया था ? विपक्ष सवर्ण बनाम दलित का खेल चला रहा है जबकि CJI दलित है ही नहीं

सुभाष चन्द्र

वकील राकेश किशोर को चीफ जस्टिस गवई पर जूता फेंकने की कोशिश के आरोप पर ही बार कौंसिल ने उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया और आज खबर है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी उनकी सदस्यता रद्द कर दी क्योंकि उन्होंने भी जूता फेंकने की कोशिश और सनातन का अपमान नहीं सहेंगे बोलने को “Grave Misconduct” माना है। लेकिन निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट और सनातन विरोधियों तक को इस घटना को हल्के में नहीं ले तो इनके हित में रहेगा। जिस तरह ईसाई और इस्लाम के विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं करते, सनातन के विरुद्ध जो मन में आया बोल देते हैं। इस गिरोह को यह नहीं भूलना चाहिए कि सनातन की अग्नि परीक्षा मत लो, संयम की भी एक सीमा होती है। क्यों भूल जाता ये गिरोह की ईसाई और इस्लाम में कितने अधिक मतभेद हैं, है किसे में उन मतभेदों पर बोलने की हिम्मत?   

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मजे की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में लगभग 500 वकील है, लेकिन जूता फेंकने के विरोध में मुख्य न्यायाधीश के समर्थन में खड़े हुए कुल 7 वकील, जबकि इनसे 7/8 गुना तो पुलिस और मीडिया थी। यानि सनातन विरोधियों के लिए खतरे का शंखनाथ हो गया है। फिर भी सनातन विरोधी अपनी घिनौनी हरकतों से बाज नहीं आते परमपिता ही जानता है इनका क्या होने वाला है।   
बार कौंसिल एक्ट का सेक्शन 35 कहता है - “Initial Complaint & "Reason to Believe": A complaint alleging professional misconduct is filed. The State Bar Council must have a "reason to believe" that the advocate is guilty of misconduct before referring the matter to the Disciplinary Committee”. अब शिकायत तो किसी ने की नहीं तो किशोर जी के केस को “Reason to Believe” में ले लिया और ऐसा ही शायद बार एसोसिएशन ने किया है

अब ये दोनों संस्थाएं बताएं कि अभिषेक मनु सिंघवी के कार्य को उन्होंने उसे सस्पेंड करने के लिए उपयुक्त क्यों नहीं माना जो आज भी छुट्टे सांड की तरह हर कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहा है? वैसे हर छोटे मोटे केस में videos की फॉरेंसिक जांच होती है लेकिन सिंघवी के वीडियो की कोई जांच नहीं हुई और हाई कोर्ट ने केस ही बंद कर दिया 

इन दोनों संस्थाओं को मैंने इसलिए जजों के चापलूसों और गुंडों की संस्था कहा है कि उन्होंने कभी सिंघवी के मामले में प्रतिकार नहीं किया, कभी नूपुर शर्मा के खिलाफ जजों द्वारा की गई घृणित टिप्पणियों का विरोध नहीं किया, कभी हिंदुओं पर रोज रोज जूते मारने वाले जजों का विरोध नहीं किया और इतना ही नहीं उन्होंने तो राष्ट्रपति को आदेश दे कर उन्हें अपमानित करने वाले जजों के खिलाफ भी कोई आवाज़ नहीं उठाई मजे की बात है बार कौंसिल का अध्यक्ष 7 साल से लगातार एक ही व्यक्ति मनन मिश्रा चल रहा है

साभार सोशल मीडिया 
वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने बार कौंसिल की शिकायत पर 25 लाख वकीलों और जजों के वकालत के certificates की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय समिति का गठन किया था और 31 अगस्त, 2023 तक रिपोर्ट देने को कहा था लेकिन 2 साल बाद भी अभी तक रिपोर्ट पेश नहीं हुई है सब मिलकर मेहनताना खा रहे हैं क्योंकि जाता तो सरकार की जेब से है किसी के बाप की जेब से नहीं

दोनों संस्थाओं का आचरण बता रहा है कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट की चापलूसी में लगे हैं जब चीफ जस्टिस ने कोई केस दर्ज करने से मना कर दिया तो फिर suspension के क्या मायने हैं दरअसल वकील लोग हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने ज्यादा इसलिए ही नहीं बोलते क्योंकि उन्हें डर होता है कि फिर उनके हक़ में फैसले नहीं आएंगे और वो ब्लैकलिस्ट कर दिए जाएंगे वर्षों तक उनके केस लिस्ट भी नहीं होंगे लेकिन अब मौका मिला है चापलूसी करने का कि जनाब गवई साहेब हमने आपके लिए जान लगा दी और यह कोशिश भी की है कि भविष्य में किसी जज के साथ ऐसा न हो 

इंदिरा जयसिंह जैसे कुछ वकील और वामपंथी गैंग के वकील कांग्रेस के साथ मिलकर इसे हिंदू/भाजपा/RSS बनाम दलित का मामला बना रहे थे लेकिन उन्हें बाद पता चला कि राकेश किशोर जी तो खुद दलित निकले जिन्होंने साफ़ कहा है कि गवई साहेब तो बौद्ध हो गए और इसलिए वो तो दलित हैं ही नहीं बार कौंसिल और एसोसिएशन ने किशोर के Clients के साथ अन्याय किया है क्योंकि उनके केस किशोर जी की जगह कौन लड़ेगा?

अजीत भारती और अनिरुद्धाचार्य के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलाने की अनुमति मांगी गई है अटॉर्नी जनरल से भारती के खिलाफ सितंबर 2022 में भी 2 बार अनुमति दी गई थी लेकिन उनके लिए केस क्यों नहीं चले अभी तक

सुप्रीम कोर्ट के जज हिंदुओं का दमन सोच समझ कर करें क्योंकि अब विरोध विकराल रूप ले सकता है 

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