वकील राकेश किशोर को चीफ जस्टिस गवई पर जूता फेंकने की कोशिश के आरोप पर ही बार कौंसिल ने उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया और आज खबर है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी उनकी सदस्यता रद्द कर दी क्योंकि उन्होंने भी जूता फेंकने की कोशिश और सनातन का अपमान नहीं सहेंगे बोलने को “Grave Misconduct” माना है। लेकिन निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट और सनातन विरोधियों तक को इस घटना को हल्के में नहीं ले तो इनके हित में रहेगा। जिस तरह ईसाई और इस्लाम के विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं करते, सनातन के विरुद्ध जो मन में आया बोल देते हैं। इस गिरोह को यह नहीं भूलना चाहिए कि सनातन की अग्नि परीक्षा मत लो, संयम की भी एक सीमा होती है। क्यों भूल जाता ये गिरोह की ईसाई और इस्लाम में कितने अधिक मतभेद हैं, है किसे में उन मतभेदों पर बोलने की हिम्मत?
![]() |
| लेखक चर्चित YouTuber |
अब ये दोनों संस्थाएं बताएं कि अभिषेक मनु सिंघवी के कार्य को उन्होंने उसे सस्पेंड करने के लिए उपयुक्त क्यों नहीं माना जो आज भी छुट्टे सांड की तरह हर कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहा है? वैसे हर छोटे मोटे केस में videos की फॉरेंसिक जांच होती है लेकिन सिंघवी के वीडियो की कोई जांच नहीं हुई और हाई कोर्ट ने केस ही बंद कर दिया।
इन दोनों संस्थाओं को मैंने इसलिए जजों के चापलूसों और गुंडों की संस्था कहा है कि उन्होंने कभी सिंघवी के मामले में प्रतिकार नहीं किया, कभी नूपुर शर्मा के खिलाफ जजों द्वारा की गई घृणित टिप्पणियों का विरोध नहीं किया, कभी हिंदुओं पर रोज रोज जूते मारने वाले जजों का विरोध नहीं किया और इतना ही नहीं उन्होंने तो राष्ट्रपति को आदेश दे कर उन्हें अपमानित करने वाले जजों के खिलाफ भी कोई आवाज़ नहीं उठाई। मजे की बात है बार कौंसिल का अध्यक्ष 7 साल से लगातार एक ही व्यक्ति मनन मिश्रा चल रहा है।
![]() |
| साभार सोशल मीडिया |
दोनों संस्थाओं का आचरण बता रहा है कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट की चापलूसी में लगे हैं। जब चीफ जस्टिस ने कोई केस दर्ज करने से मना कर दिया तो फिर suspension के क्या मायने हैं। दरअसल वकील लोग हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने ज्यादा इसलिए ही नहीं बोलते क्योंकि उन्हें डर होता है कि फिर उनके हक़ में फैसले नहीं आएंगे और वो ब्लैकलिस्ट कर दिए जाएंगे। वर्षों तक उनके केस लिस्ट भी नहीं होंगे। लेकिन अब मौका मिला है चापलूसी करने का कि जनाब गवई साहेब हमने आपके लिए जान लगा दी और यह कोशिश भी की है कि भविष्य में किसी जज के साथ ऐसा न हो।
इंदिरा जयसिंह जैसे कुछ वकील और वामपंथी गैंग के वकील कांग्रेस के साथ मिलकर इसे हिंदू/भाजपा/RSS बनाम दलित का मामला बना रहे थे लेकिन उन्हें बाद पता चला कि राकेश किशोर जी तो खुद दलित निकले जिन्होंने साफ़ कहा है कि गवई साहेब तो बौद्ध हो गए और इसलिए वो तो दलित हैं ही नहीं। बार कौंसिल और एसोसिएशन ने किशोर के Clients के साथ अन्याय किया है क्योंकि उनके केस किशोर जी की जगह कौन लड़ेगा?
अजीत भारती और अनिरुद्धाचार्य के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलाने की अनुमति मांगी गई है अटॉर्नी जनरल से। भारती के खिलाफ सितंबर 2022 में भी 2 बार अनुमति दी गई थी लेकिन उनके लिए केस क्यों नहीं चले अभी तक।
सुप्रीम कोर्ट के जज हिंदुओं का दमन सोच समझ कर करें क्योंकि अब विरोध विकराल रूप ले सकता है।


No comments:
Post a Comment