केरल उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड को फटकार लगाई (फोटो साभार - बार एंड बेंच/ऑनमनोरम)
केरल हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि केरल वक्फ बोर्ड का 2019 में मुनंबम की विवादित जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने का फैसला गलत था। जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस श्याम कुमार वीएम की डिवीजन बेंच ने यह बात तब कही, जब उन्होंने एकल जज के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा 600 परिवारों के अधिकारों की जाँच के लिए बनाए गए आयोग को खारिज किया गया था। ये परिवार मुनंबम में जमीन को वक्फ घोषित करने के बाद बेदखली का सामना कर रहे थे।
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि मोहम्मद सिद्दीक सैट द्वारा 1950 में फारूक कॉलेज मैनेजमेंट कमिटी के पक्ष में बनाया गया एंडोमेंट डीड वक्फ डीड नहीं था, बल्कि एक साधारण गिफ्ट डीड था। कोर्ट ने कहा कि इस दस्तावेज में कहीं भी यह नहीं दिखाया गया कि संपत्ति को हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर समर्पित किया गया था। इसलिए इसे वक्फ संपत्ति नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस सुष्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस श्याम कुमार वी एम ने की खंडपीठ यह फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार की दो याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और सिंगल बेंच के पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार द्वारा गठित जाँच आयोग को अवैध बताया गया था।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वक्फ की परिभाषा में ‘स्थायी समर्पण’ (Permanent Dedication) का होना आवश्यक है। इसका मतलब यह होता है कि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का स्वामित्व पूरी तरह से और हमेशा के लिए अल्लाह के नाम कर दे, ताकि उस संपत्ति का उपयोग केवल मजहबी, पाक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए ही हो।
कोर्ट ने पाया कि सिद्दीक सैट द्वारा फारूक कॉलेज को दी गई संपत्ति में कॉलेज को यह अधिकार दिया गया था कि वह जमीन को बेच सकता है, लीज पर दे सकता है या अन्य किसी तरह उपयोग में ला सकता है। जब किसी संपत्ति को बेचने या ट्रांसफर करने की अनुमति दी जाती है, तो वह संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती, बल्कि वह सार्वजनिक चैरिटेबल संपत्ति के रूप में मानी जाती है।
कोर्ट ने कहा कि 1950 का यह दस्तावेज स्थाई समर्पण की भावना को प्रदर्शित नहीं करता, बल्कि इसमें संपत्ति के पुनः वापसी (Reversion) का प्रावधान था। इसमें लिखा था कि अगर संपत्ति का कोई हिस्सा बचा रह जाता है तो वह वापस दाता या उसके वारिसों को लौटाया जा सकता है। कोर्ट ने इसे वक्फ की मूल भावना के विपरीत बताया और कहा कि यह सिर्फ एक साधारण उपहार था, जिसे फारूक कॉलेज के प्रबंधन के लिए दिया गया था।
इस फैसले में कोर्ट ने केरल वक्फ बोर्ड की 2019 की कार्रवाई को भी कठोर शब्दों में फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि लगभग 69 साल तक न तो सिद्दीक सैट के वारिसों ने और न ही फारूक कॉलेज ने इस संपत्ति को वक्फ माना था।
इसके बावजूद वक्फ बोर्ड ने 2019 में एकतरफा तरीके से इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया, जो पूरी तरह मनमानी और अवैध कार्रवाई थी। कोर्ट ने इसे ‘भूमि हड़पने की कोशिश’ यानी ‘Land Grabbing Tactic’ बताया। जजों ने टिप्पणी की कि वक्फ बोर्ड ने बिना किसी विधिक जाँच या सभी हितधारकों को शामिल किए बिना यह कदम उठाया, जो न केवल अव्यवहारिक बल्कि असंवैधानिक भी है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि राज्य सरकार को मुनम्बम भूमि विवाद की जाँच के लिए आयोग गठित करने का पूरा अधिकार है। यह आयोग एक तथ्य खोजने वाली संस्था (Fact-Finding Commission) होगी, जिसका मकसद विवाद का समाधान निकालना है, न कि स्वामित्व या टाइटल पर फैसला देना। राज्य सरकार ने 27 नवंबर 2024 को रिटायर्ड जस्टिस सी एन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया था, ताकि इस लंबे समय से चल रहे विवाद का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
मामला क्या है?
मुनंबम भूमि विवाद केरल के एर्नाकुलम जिले में करीब 404 एकड़ जमीन से जुड़ा है। इस इलाके में लगभग 600 हिंदू और ईसाई परिवार दशकों से रह रहे हैं। वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन 1950 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने यह जमीन फारूक कॉलेज से कानूनी रूप से खरीदी थी।
यह विवाद अब एक राजनीतिक मुद्दे में बदल गया है। भाजपा नेताओं ने वक्फ बोर्ड पर सार्वजनिक और निजी जमीनों पर कब्जा करने का आरोप लगाया है। केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने इसे ‘बर्बरता’ कहा और कहा कि संसद में ऐसे कदमों को रोकने के लिए नया कानून लाया जाएगा। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनकी सरकार मुनम्बम के लंबे समय से रह रहे लोगों के साथ है और उनकी संपत्ति की सुरक्षा के लिए काम कर रही है।
दरअसल, वक्फ विवाद कोई नया विषय नहीं है। देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ वक्फ बोर्ड ने निजी या सरकारी संपत्तियों पर दावा ठोका है। इसमें तमिलनाडु के कुछ गाँव, सूरत की सरकारी इमारतें, बेंगलुरु का ईदगाह मैदान, हरियाणा का जठलाना गाँव और हैदराबाद का एक पाँच सितारा होटल तक शामिल हैं।
वक्फ द्वारा जमीनों पर कब्जा करने के तीन सामान्य तरीके हैं। किसी जमीन को कब्रिस्तान बताना, उस पर मजार या दरगाह बनाना और सार्वजनिक भूमि पर नमाज पढ़ना शुरू करना। जब किसी स्थान पर लगातार मजहबी गतिविधियाँ होने लगती हैं, तो वक्फ बोर्ड उस जगह को ‘वक्फ संपत्ति’ के रूप में पंजीकृत करने की माँग कर देता है।
क्या कहता है वक्फ कानून
वक्फ कानून के अनुसार, एक बार अगर कोई संपत्ति वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा वक्फ रहती है। इसका अर्थ यह है कि उस पर फिर से दावा करना या उसे बेच पाना लगभग असंभव हो जाता है। कई मामलों में वक्फ बोर्ड बिना किसी ठोस दस्तावेज के भी संपत्तियों पर दावा कर देता है। यह न केवल संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि इससे सांप्रदायिक तनाव भी पैदा होता है।
केंद्र सरकार अब वक्फ कानून में सुधार लाने की तैयारी में है। नए प्रावधानों के तहत किसी भी निजी या सरकारी संपत्ति को वक्फ घोषित करने से पहले संपत्ति मालिक की सहमति और राजस्व विभाग की विस्तृत जाँच आवश्यक होगी। साथ ही वक्फ बोर्ड को अपने दावे का पूरा दस्तावेज़ी प्रमाण देना होगा। इन कदमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी व्यक्ति या समुदाय की भूमि पर अनुचित या झूठा दावा न किया जा सके।
केरल हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक जमीन विवाद का समाधान नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी कानूनी मिसाल है। कोर्ट ने साफ कहा कि वक्फ तभी बनता है जब संपत्ति स्थाई रूप से और बिना वापसी की शर्त के अल्लाह के नाम समर्पित की जाए। अगर संपत्ति के ट्रांसफर, बिक्री या रिवर्शन का प्रावधान है, तो वह वक्फ नहीं बल्कि एक साधारण चैरिटेबल गिफ्ट है। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि राज्य सरकारें वक्फ बोर्ड के एकतरफा निर्णयों के खिलाफ जाँच कर सकती हैं और नागरिकों के संपत्ति अधिकारों की रक्षा करना उनका वैधानिक दायित्व है।
यह निर्णय न केवल मुनंबम के हजारों परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि उन तमाम नागरिकों के लिए भी एक उम्मीद की किरण है, जिनकी संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने वर्षों बाद दावा ठोका है। कोर्ट ने अपने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कानून की आड़ में भूमि हड़पने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह फैसला इस दिशा में एक मजबूत कदम है कि भारत में हर नागरिक की संपत्ति सुरक्षित रहे, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से जुड़ा हो।
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