सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 2013 से भारत में रह रहे सूडान के नागरिक, उसकी बीवी और 3 बच्चों (जिनमे एक 40 महीने का बच्चा है) को प्रत्यर्पित करने से रोकने से मना करते हुए UNHCR के रिफ्यूजी कार्ड को मान्यता देने की अर्जी को खारिज कर दिया और कहा कि UNHCR ने जैसे कोई showroom खोल रखा है जबकि भारत ने UN के रिफ्यूजी कन्वेंशन के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए थे और इसलिए वह भारत पर बाध्य नहीं है।
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“ UNHCR-issued Refugee Cards are treated differently by the Ministry of Home Affairs and the Foreigners’ Registration Office, noting that the cards are issued only after a detailed verification process that can take years”.
वर्ष 2017 में भिखारी से दिखाई देने वाले 2 रोहिंग्या Mohammad Salimullah and Mohammad Shakir ने सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार के उन्हें और अन्य 40 हजार रोहिंग्या घुसपैठियों को म्यांमार वापस भेजने के आदेश को चुनौती दी थी।
उनका केस प्रशांत भूषण और कॉलिन गोन्साल्विस ने दायर किया था और इनके अलावा उन रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के दिग्गज वकील थे Dr Rajiv Dhawan, Dr Ashwini Kumar, Fali Nariman (now dead) and Kapil Sibal. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने सरकार के आदेश पर रोक तो नहीं लगाई लेकिन 21 सितंबर, 2017 को उसे 3 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया और उसके बाद वह केस कब्र में दफ़न हो गया।
इतने बड़े बड़े वकील 2 भिखारी घुसपैठियों के लिए कैसे खड़े हो गए सुप्रीम कोर्ट में और मुरलीधर कैसे पहुँच गया, यह दर्शाता है उन घुसपैठियों को बचाने में विदेशी फंडिंग मिलती है।
तब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कहा था कि -
-ख़ुफ़िया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्या घुसपैठियों के लिंक पाकिस्तानी आतंकियों के साथ हैं जो “illegal/anti-national activities” में लिप्त हैं;
-Radicalized Rohingya देश में हिंसा फ़ैलाने का काम करते हैं;
- some Rohingya were engaged in illegal activities like human trafficking, mobilizing funds through hawala, and procuring fake Indian identity documents for other illegal immigrants;
-Demographic changes: The government also noted that the large influx of illegal immigrants, including Rohingya, was altering the demographic profile of certain border states.
सरकार की आशंकाएं निराधार नहीं थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त सरकार की बातों पर ध्यान दिया होता तो आज घुसपैठियों की समस्या विकराल रूप न लेती। उस वक्त के 40 हजार रोहिंग्या आज कितने multiply हो गए होंगे, यह कोई नहीं जानता। ऐसे सुप्रीम कोर्ट मामलों को सभी दीवारे बुलडोज़र से तोड़ कर दफ़न करने का काम करता है और देश की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
सुप्रीम कोर्ट को अब भी चाहिए कि वह घुसपैठियों की पहचान कर 6 महीने में देश से बाहर निकाले, उनके द्वारा कब्ज़ा की गई जमीनों को मुक्त कराए और किसी की कोई याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार न करे।

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