राष्ट्रीय एकता यानि जातिगत घिनौनी सियासत का नंगा नाच; अब ‘सन ऑफ मल्लाह’ ने महागठबंधन में फंसाया महापेच! आधी रात को तेजस्वी-मुकेश की मुलाकात के बाद VIP नाराज

जब भी चुनाव होते हैं सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष सभी मुस्लिम और जातियों के मकड़जाल में उल्छे नज़र आते बड़ी-बड़ी बातें करते हैं राष्ट्रीय एकता का। लगता है किसी भी पार्टी को secularism की ABC तक नहीं आती, अगर आती होगी तो जाति के नाम पर जनता को पागल नहीं बनाया जाता। इस कटु सच्चाई को कुर्सी की भूखी पार्टियों और जनता को भी समझना होगा। रेवड़ियां बांट जनता को पागल बनाया जा रहा है। जब जातिगत घिनौनी सियासत करनी है फिर किसी की जाति से बुलाने पर कानून क्यों?   
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी 25 सीटों की मांग पर अड़े हैं, जबकि RJD ने केवल 14 सीटों का ऑफर दिया है। इस ऑफर के साथ तेजस्वी यादव के साथ देर रात हुई मुलाकात के बाद मुकेश सहनी सख्त नाराज हैं। रात दो बजे के बाद जब मुकेश सहनी बैठक से निकले, तो उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी। सहनी ने मीडिया से कोई बात तक नहीं की और सीधे अपने आवास लौट गए। तब से लेकर अब तक उन्होंने किसी से बातचीत नहीं की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सहनी अब अपनी पार्टी की अगली रणनीति बना रहे हैं। यदि महागठबंधन से बातचीत पटरी पर नहीं बैठी तो वे अपनी पार्टी के 40 उम्मीदवारों को विधानसभा में उतारने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मुकेश सहनी इस बार अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाने के मूड में हैं। उनका कहना है कि सहनी का मल्लाह और निषाद समाज की राजनीति में वोट बैंक है और सहनी उसी को लेकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।

हमारे जनाधार और मेहनत का सम्मान होना चाहिए-सहनी
मुकेश सहनी और तेजस्वी यादव के बीच देर रात राजधानी पटना में एक अहम बैठक हुई। तेजस्वी यादव के आवास पर करीब 2 बजे रात तक दोनों नेताओं के बीच बातचीत चली। बताया जा रहा है कि बैठक का माहौल शुरुआत में सकारात्मक था, लेकिन सीट शेयरिंग पर चर्चा आते ही टकराव बढ़ गया। तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने की बात कहते हुए वीआईपी को 14 सीटें देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन मुकेश सहनी ने साफ कहा कि ‘हमारे जनाधार और मेहनत का सम्मान होना चाहिए, 25 से कम सीट पर VIP चुनाव नहीं लड़ेगी।’ इसके अलावा सहनी ने सरकार बनने के बाद उसमें डिप्टी सीएम पद की भी डिमांड की। बताते हैं कि तीन डिप्टी सीएम के फार्मूले में सहनी को सैट किया जा सकता है, इस पर तेजस्वी ने स्वीकृति दी, लेकिन ज्यादा सीटें देने पर उन्होंने मना कर दिया।

अब ‘सन ऑफ मल्लाह’ सहनी बना रहे नई रणनीति
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख और ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर मुकेश सहनी इसके बाद अब खुलकर अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मुकेश सहनी किसी भी हालत में 25 सीटों से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं, जबकि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उन्हें सिर्फ 14 सीटों का ऑफर दिया है। रात दो बजे के बाद जब मुकेश सहनी बैठक से निकले, तो उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी। सहनी ने मीडिया से कोई बात नहीं की और सीधे अपने आवास लौट गए. तब से लेकर अब तक उन्होंने किसी से बातचीत नहीं की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सहनी अब इस पर मन बना रहे हैं कि यदि तेजस्वी यादव ने उन्हें महागठबंधन में 25 सीटें नहीं दीं, तो वे अपनी पार्टी के 40 उम्मीदवारों को सियासी मैदान में उतारेंगे।

महागठबंधन की बैठक टली, RJD की आपात मीटिंग
महागठबंधन की एक अहम बैठक प्रस्तावित थी, जिसमें सीट शेयरिंग पर अंतिम सहमति बनने की उम्मीद थी। लेकिन VIP की नाराज़गी के चलते यह बैठक फिलहाल टाल दी गई है। अब RJD ने अपनी आपात बैठक बुलाई है, जिसमें तेजस्वी यादव पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ आगे की रणनीति तय करेंगे। मुकेश सहनी की नाराजगी महागठबंधन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है। पहले भी वे NDA और महागठबंधन के बीच पाला बदल चुके हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने महागठबंधन छोड़कर NDA के साथ तालमेल किया था, लेकिन बाद में फिर विपक्षी खेमे के करीब आ गए। महागठबंधन के नेताओं को यह भी चिंता सता रही है कि यदि सहनी फिर एनडीए के पाले में जाते हैं तो उनका पूरा खेल बिगड़ सकता है।

VIP का बिफरना गठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तेजस्वी यादव से निराश होकर मुकेश सहनी इस बार अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाने के पूरे-पूरे मूड में हैं। उनका कहना है कि मल्लाह और निषाद समाज में उनकी भारी पैठ है। बिहार की सियासत में निषाद और मल्लाह भी एक बड़ा वोट बैंक है और सहनी उन्हीं को लेकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं। VIP के रुख से महागठबंधन के अन्य घटक दलों में भी असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस और वाम दल पहले ही अपने हिस्से को लेकर नाराजगी जता चुके हैं। अब VIP का बिफरना गठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘सन ऑफ मल्लाह’ अपने लिए मनचाही सीटें हासिल करते हैं या एक बार फिर ‘VIP’ पार्टी की किस्मत की नाव किसी नए किनारे लगती है।

महागठबंधन पर दबाव बनाने की सहनी की रणनीति
हालांकि मुकेश सहनी के इस रुख को महागठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि सहनी अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े हुए थे, जिसके कारण सीट बंटवारे की आधिकारिक घोषणा अटकी हुई है।
1. 25 सीटों की मांग: वीआईपी प्रमुख महागठबंधन में अपने कोटे के लिए 25 विधानसभा सीटों की मांग पर मजबूती से खड़े थे, जिसे RJD और अन्य सहयोगियों द्वारा अत्यधिक माना जा रहा था।
2. उपमुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी: सहनी की दूसरी बड़ी जिद यह थी कि उन्हें महागठबंधन की ओर से उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाए।
सूत्रों का कहना है कि उप मुख्यमंत्री पद पर तो महागठबंधन में सहमति बन सकती है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर मामला अटका हुआ है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाने के बावजूद भी सीट बंटवारे की घोषणा न होने से महागठबंधन में पहले से ही तनाव था, और अब मुकेश सहनी का ‘नॉट रिचेबल’ हो जाना गठबंधन की एकता के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि सीटों पर देरी से उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार पर बुरा असर पड़ रहा है।

लालू और तेजस्वी पर आंखे तरेरने लगी है कांग्रेस

उधर कांग्रेस भी महागठबंधन की कमजोर कड़ी होने के बावजूद लालू-तेजस्वी पर आंखे तरेर रही है। आलाकमान की शह पर कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव को भी भाव नहीं दे रहे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना पहुंच चुके हैं। लेकिन उन्होंने जानबूझकर लालू और तेजस्वी से मुलाकात नहीं की। इससे महागठबंधन पर महा-संकट आने के आसार नजर आने लगे हैं। यदि दो-तीन दिन में सियासी पेच ना सुलझा तो दरार और बढ़ सकती है। दूसरी ओर पहली बार चुनावी मैदान में उतरे प्रशांत किशोर भी विवादों में घिर गए हैं। उनकी जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही पीके पर पैसे लेकर सीटें बांटने के आरोप लगाए हैं। ऐन चुनाव से पहले ऐसी पोल खुलने के बीच मानहानि मामले में नोटिस ने पीके की टेंशन और बढ़ा दी है।

राहुल के पीछे लग तेजस्वी ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी
दरअसल, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा के दौरान अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार ली थी। इस यात्रा में राहुल गांधी 17 दिनों तक बिहार में रहे। तेजस्वी ने ही राहुल को लीड करने का मौका दिया और वे पहली बार राहुल गांधी के पीछे-पीछे घूमे। तेजस्वी ने यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इससे बिहार में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस की कुछ सांसें चलने लगीं। राहुल गांधी को गुमान हो गया कि यह सब उनकी वजह से है। इसलिए इसके बाद से कांग्रेस अब आरजेडी को आंखे दिखाने लगी है। तेजस्वी के सीएम फेस पर भी एतराज जताने के बाद अब कांग्रेस ने सीट बंटवारा के लिए राजद को अल्टीमेट तक दे दिया है। यदि दो-तीन दिन में दोनों दलों में सहमति नहीं बनी तो कांग्रेस अपनी पहली सूची जारी कर सकती है। कांग्रेस ने पहले 15 उम्मीदवारों की सूची बना ली है। यदि कांग्रेस आम सहमति के पहले लिस्ट जारी कर देती है तो महागठबंधन पर महा-संकट के बादल छा सकते हैं।

कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू-तेजस्वी को नहीं दे रहे भाव
कांग्रेस ने भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीटें जीतकर सबसे कमजोर प्रदर्शन किया हो। इसके बावजूद वह अगले माह होने वाले चुनाव के लिए राजद की आंख में आंख मिला कर बात कर रही है। यही वजह है कि कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव और तेजस्वी को भी भाव नहीं दे रहे। हाइकमान के आदेश पर अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना आए। लेकिन उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी से मुलाकात करने की जरूरत ही नहीं समझी। भूपेश बघेल ने तो सीधे-सीधे तेजस्वी यादव को चुनौती ही दे डाली। उन्होंने कहा, तेजस्वी खुद को अपनी ओर से सीएम फेस बता रहे हैं, लेकिन सीएम का चेहरा उनकी पार्टी का हाईकमान घटक दलों की सहमति से तय करेगा।

महागठबंधन उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से चुनाव पर असर
चुनाव के लिए पहले चरण के नामांकन की शुरुआत 10 अक्टूबर से हो चुकी है। लेकिन 10 अक्टूबर तक महागठबंधन का सीट बंटवारा फाइनल नहीं हो सका है। संभावित प्रत्याशियों में इसको लेकर रोष है कि पिछली बार उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से तैयारी का समय नहीं मिला था। पहले चरण के चुनाव के नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित किये गये। कांग्रेस ने आंतरिक गुटबाजी और संभावित असंतोष से निपटने के लिए यह देरी की थी। लेकिन इस कोशिश में उम्मीदवारों को हड़बड़ी में आधी अधूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरना पड़ा। टिकट को लेकर भी असंतोष था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर टिकट वितरण में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने चुनाव प्रबंधन से जुड़े नेताओं की जांच कराये जाने की मांग की थी।

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