आज जिस तरह हिन्दू अपने सनातन के प्रति सजग हो रहा है उसके विपरीत सनातन विरोधी रोड़े अटकाने में लगे हुए हैं, और इस सनातन विरोधी काम में सुप्रीम कोर्ट भी पीछे नहीं। क्या सुप्रीम कोर्ट चाहती है कि सनातन प्रेमी सनातन के विरुद्ध जजों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाएं? क्योकि सुप्रीम कोर्ट अपना सम्मान खोती जा रही है। जिन्हें सारे कानून सनातन के विरुद्ध ही नज़र आते हैं दूसरे मजहबों के आगे सनातन विरोधी जस्टिस के मुंह में क्यों दही जम जाता है? हिन्दू संस्थाओं को सुप्रीम कोर्ट के सनातन विरोधियों फैसलों का संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट को हैसियत दिखानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट बताए कि संविधान का कौन-सा कानून हिन्दुओं का दूसरे मजहबों द्वारा परिवर्तन करने की इजाजत देता है?
भारत में न्यायपालिका पर हमेशा से तानाशाही हावी रही है। कभी जजों की नियुक्ति में नेहरू और फिर इंदिरा गांधी की तानाशाही चलती थी और अब 35 साल से कॉलेजियम की तानाशाही हावी है। जो भी चीफ जस्टिस आता है कॉलेजियम का गुणगान करता मिलेगा। इस कॉलेजियम ने चीफ जस्टिस कौन बनेगा स्वतः ही तय कर दिया कि Senior Most जज ही बनेगा।
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| लेखक चर्चित YouTuber |
बड़े गर्व से जस्टिस सूर्यकांत कह रहे हैं कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम की प्रणाली बहुत अहम है, भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाएं रखने और सरकार की तीनों शाखाओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कॉलेजियम सिस्टम बहुत महत्वपूर्ण है।
ऐसे प्रवचन देने वाले बहुत से जज यह नहीं बताते कि संविधान बनाने वालों ने ऐसी “सुगम और दुर्लभ प्रणाली” को संविधान में जगह क्यों नहीं दी और इस तरह यह कॉलेजियम पूरी तरह गैर संवैधानिक और गैर कानूनी है जो तानाशाही के सिवाय कुछ नहीं है।
न्यायपालिका आज स्वयं ही संविधान का अपहरण करने में लगी है जो इस बात से प्रमाणित होता है कि लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्था के निर्णय पर ही रोक लगा दी गई और मामले पर सुनवाई भी नहीं कर रहे। मामला जजों के भ्रष्टाचार का था जो लोकपाल जस्टिस खानविलकर ने तत्कालीन CJI संजीव खन्ना के निर्देशों के लिए भेजा था लेकिन आज के CJI गवई और अब आने वाले CJI सूर्यकांत ने उस पर रोक लगा दी। सुनवाई के लिए जुलाई तय की थी लेकिन मामला बर्फ में लगा दिया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेष प्रेम है। उनके लिए गवई साहेब ने कहा “सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती”। फिर चाहे आरोपी कुछ भी अपराध कर ले और चाहे छोटी छोटी बच्चियों का रेप करना अपना अधिकार ही मान ले। आप एक तरफ अनधिकृत निर्माण को गलत कहते हैं लेकिन फिर 3 साल से हल्द्वानी में बसी बस्ती को गिराने पर स्टे लगा कर सो जाते हैं।
अब जस्टिस परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने योगी सरकार के धर्मान्तरण के खिलाफ बनाए गए कानून में कमियां निकाल कर उसे संविधान का हवाला देकर बेअसर कर दिया, क्या आप देश में इस्लामीकरण की खुली छूट देना चाहते हैं?
उन्होंने अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रत्येक व्यक्ति को अंतकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार देता है, जो सार्वजनिक व्यवस्था है और नैतिकता के अधीन है।
आप लोग संविधान को जैसे मर्जी तोड़ मरोड़ कर देश पर क्यों थोपना चाहते हैं? इस अनुच्छेद 25 में धर्म को मानने और प्रचार करने का अधिकार तो है लेकिन जबरन या प्रलोभन देकर किसी का धर्म बदलने की अनुमति नहीं है और वही काम योगी सरकार ने किया है लेकिन आप तो आमादा हैं कि प्रलोभन देकर, या लव जिहाद से या तलवार के दम पर लोगों को मुसलमान और ईसाई बनाने की छूट दी जाए।
अब समाज पर न्यायिक अतिक्रमण की हदें पार हो चुकी हैं और देश और हिंदुओं पर अब वास्तविक खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है।

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