23 अक्टूबर को कांग्रेस का बिहार की क्षेत्रीय पार्टियों के आगे घुटने टेकने से बेहतर है कि कांग्रेस को अपना बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए। वैसे इस काम में बीजेपी भी पीछे नहीं। कांग्रेस तो अपने वजूद को बचाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के आगे घुटने टेक रही है लेकिन बीजेपी के आगे क्या मुसीबत है?
इंडी गठबंधन अब असल में “लठ बंधन” में बदल चुका है उसको ठंडा करने के लिए अशोक गहलोत को भेजा गया। एक महीने तक “दो लड़कों की जोड़ी” सड़के नापती रही लेकिन तेजस्वी को राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बताया और अब गहलोत कह रहे हैं कि तेजस्वी ही मुख्यमंत्री होंगे। उसके पहले ही मुकेश सहनी ने घोषणा कर दी कि वह डिप्टी सीएम होंगे जिस पर तेजस्वी ने कोई एतराज नहीं जताया और न कांग्रेस ने।
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मजे की बात देखिये गहलोत ने तेजस्वी को CM face बताने से ज्यादा इस बात पर जोर दिया कि NDA क्यों नहीं बता रहा कि उनका मुख्यमंत्री कौन होगा जबकि अमित शाह ऐलान कर चुके हैं कि नीतीश कुमार ही NDA के मुख्यमंत्री होंगे। लठ्ठबाजों का एक नेता और है “पप्पू यादव” जो कांग्रेस में नहीं है लेकिन प्रवक्ता बना हुआ है कांग्रेस का जिसे गाडी पर चढ़ने से भी रोक दिया गया था। कल रिपब्लिक भारत पर उससे पूछा गया कि महागठबंधन में सीटों को लेकर क्या चल रहा है तो उसने शुरू किया “देखिए NDA में ये कोशिश हो रही है कि किसी तरह नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने से रोका जाए। सवाल क्या और जवाब क्या?
कांग्रेस बिहार चुनाव को ऐसे लड़ रही है जैसे ट्रंप की बातों का मोदी द्वारा सीधा जवाब न देने का मुद्दा बनाने से ही चुनाव जीत जायेंगे। “हाथी चले बाजार, कुत्ते भोंके हजार” कांग्रेस पर फिट बैठ रही है। कांग्रेस के पास तो भौकने वालों की कमी नहीं है। कल दीपावली पर ट्रंप ने मोदी को बधाई दी लेकिन जयराम रमेश की सुई एक ही जगह अटकी है कि मोदी ने रूस से तेल न खरीदने पर कुछ नहीं बोला। ये ढक्कन अपने आपको विदेश नीति के एक्सपर्ट समझते हैं जबकि कांग्रेस अपने “नाजायज बेटे” पाकिस्तान पर अफगानिस्तान के हमलों के लिए बचाव नहीं कर पा रहे और न गाज़ा समझौते पर कुछ बोल पा रहे हैं।
बिहार चुनाव में एक चेहरा और है प्रशांत किशोर। कभी सभी को चुनाव लड़वा कर जीत दिलाने का दावा करता था लेकिन आज खुद चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं हुई। सभी जगह अपने लोग खड़े कर दिए लेकिन अमित शाह पर आरोप लगा दिया कि उसके तीन लोगों को नाम वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। अमित शाह को बस तीन से क्या खतरा था तो सब छोड़ कर उन तीन को ही चुना और उनके नाम वापस लेने की बात छोड़ कर पहले यह बताओ कि तुम तो घोषणा कर चुके थे राधोपुर से तेजस्वी के खिलाफ खड़े होने की, फिर तुम दुम दबा कर क्यों भाग लिए?
पिछले 5 उपचुनावों में अपनी हालत देख चुका है प्रशांत और इसलिए खुद खड़ा नहीं होना चाहता कि हार गया तो बहुत बड़ी वाली बेइज्जती हो जाएगी। फिर चुनाव आयोग को जब अपनी संपत्ति बतानी पड़ेगी तो सवाल खड़े होंगे कि 241 करोड़ की कमाई पर केवल 3 करोड़ टैक्स किस हिसाब से दिया जो इसने दावा किया था।
वैसे चिराग पासवान भी खिलाड़ी है। हर कोई इच्छा रखता है कि वह CM बने लेकिन मुझे लगता है वो इस फ़िराक़ में है कि जिधर जरूरत होगी, वहां से CM बनने के लिए निकल लेगा। वैसे कांग्रेस भी नीतीश को बुला रही है जबकि गहलोत के तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह कर कांग्रेस तो खत्म ही कर दिया बिहार में।

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