PETA का Bombay High Court के फैसले के खिलाफ अभियान, ‘मुंबईकर’ को पहनाया कबूतर का मुखौटा: क्या कबूतर सेहत के लिए नुकसानदेह है?

              मुंबई में कबूतर को दाना डालने पर रोक के खिलाफ PETA का अभियान (साभार: PETA/TOI)
बुजुर्गों का कहना था कि "पक्षियों(कबूतर, चिड़िया और कौए) को दाना देने से दानी न दिखने वाले कष्टों से बचता है। लेकिन आज सनातन विरोधी इन्हे ही दाना देने के खिलाफ अदालत जा रहे हैं और अदालतें तो बैठी है इसी इंतज़ार में। इतना ही नहीं, जब कोई मरीज को अपनी अंतिम साँस लेने में दिक्कत हो रही होती है, उस स्थिति में उस मरीज के हाथों से रूपए छुआ कर कबूतरों को दाना या गाय को चारा खिलाया जाता है। जब कबूतर ही नहीं होगा किसको दान किया जाएगा। इस धरती पर कबूतर वो पक्षी है जो दाना नहीं मिलने पर मिट्टी या कंकड़ खा कर पेट भर लेता लेकिन कभी कीड़े मकोड़े नहीं खाएगा। क्योकि इस धरती पर समुद्र के दूसरा शुद्ध ब्राह्मण कबूतर ही है।         

कारों से लेकर घरों और दफ्तरों में लगे वातानुकूलित(AC) से निकलने की वजह से चिड़ियों का आभाव हो गया है।  

कबूतरों को दाना देने की परंपरा को बचाने के लिए पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) ने हाल ही में एक अभियान शुरू किया। खासतौर पर यह अभियान मुंबई में कबूतरों को दाना देने पर लगाए गए बैन को देखते हुए लॉन्च किया गया। अब इस अभियान के खिलाफ सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है।

दरअसल, पेटा इंडिया ने अभियान से जुड़ा एक वीडियो जारी किया, जिसमें मुंबई के लोग कबूतरों के मुखौटे पहनकर संदेश दे रहे हैं कि कबूतरों को भी प्यार और देखभाल की जरूरत है। इस वीडियो में यह भी दिखाया गया है कि कबूतरों को खाना देने पर बैन लगाने से ये पक्षी भूख से मर सकते हैं।

पेटा इंडिया ने वीडियो जारी कर लिखा, कबूतरों के बिना मुंबई का आसमान पहले जैसा नहीं रहा। फीडिंग पर लगे बैन के बाद ये कोमल पक्षी भुखमरी का सामना कर रहे हैं। सभी मुंबईवासियों ने ‘कबूतर’ बनकर सबको याद दिलाया कि कबूतर भी यहीं के हैं।

सोशल मीडिया पर पेटा के कबूतर अभियान का विरोध

सोशल मीडिया पर पेटा के इस अभियान की आलोचना शुरू हो गई। लोगों ने कबूतरों को इंसान के लिए खतरा बताया और कहा कि इससे कई बीमारियाँ होती है। इसके साथ पेटा को भारत-विरोधी भी बताया गया क्योंकि ये दिखावे का एक्टिविजम करता है। पेटा पर आर्टिकल 21 के तहत केस करने की भी माँग उठी।

ओपन लेटर नाम के एक्स हैंडल ने लिखा, “एक 400 ग्राम का कबूतर अपने जीवनकाल में लगभग 11 किलोग्राम बीट छोड़ता है। ये बीट सूखकर धूल में बदल जाती है और हवा में मिल जाती है। जब हम उस हवा में साँस लेते हैं तो धूल हमारे फेफड़ों तक पहुँच सकती है और निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसे संक्रमण पैदा कर सकती है।”

उन्होंने आगे बताया, “सिंगापुर में कबूतरों को खाना खिलाने पर आपको 500 डॉलर का जुर्माना लग सकता है। उनकी बीट अम्लीय भी होती है, जिसका मतलब है कि वे कारों, एयर कंडीशनर, इमारतों और स्मारकों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। लेकिन जब मुंबई के दादर में कबूतरखाने बंद कर दिए गए तब भी कुछ लोग विरोध करने के लिए सामने आए और अब पेटा ऐसे ही बेतुके अभियान चला रहा है।”

एक्स पर राहुल देवधर लिखते हैं, “कबूतर अक्सर लोगों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं क्योंकि ये कई तरह की बीमारियाँ फैलाते हैं। इन्हें आमतौर पर ‘आसमान के चूहे’ कहा जाता है। कई शहरों में कबूतरों को सक्रिय रूप से मारा जा रहा है। पेटा सचमुच भारत विरोधी है।”

डिमेंटर नाम के एक्स यूजर लिखते हैं, “किसी को @PetaIndia के खिलाफ केस दर्ज करना चाहिए क्योंकि वे अनुच्छेद 21 के तहत स्वस्थ जीवन के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं। कबूतरों को खाना देना फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है। पेटा वाले केवल दिखावे के लिए एक्टिविज्म कर रहे हैं।”

क्या है कबूतरों को दाना डालने पर रोक लगाने वाला फैसला ?

पेटा ने कबूतरों के समर्थन में ये अभियान मुबंई में कबूतरों को दाना डालने पर रोक के बाद शुरू किया। दरअसल, जुलाई 2025 में BMC ने शहरभर के कबूतरखानों में दाना डालने पर रोक लगा दी। यह कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं के मद्देनजर उठाया गया था क्योंकि कबूतरों के मल से फेफड़ों की बीमारियाँ फैलने का खतरा था। मामले में 31 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने BMC को निर्देश दिया कि वह कबूतरों को खाना देने वालों के खिलाफ FIR दर्ज करें।

क्या सचमुच कबूतर इंसान के लिए हानिकारक?

अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच कबूतर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं? तो स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कबूतरों के कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएँ पैदा होती हैं। खासकर, कबूतरों के मल में कई तरह के फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण मौजूद होते हैं, जो मनुष्यों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
इनमें प्रमुख रूप से हिस्टोप्लास्मोसिस (Histoplasmosis) इंफेक्शन है, जो Histoplasma capsulatum नाम के फंगस से फैलता है और बुखार, खाँसी, थकान और छाती में दर्द जैसे लक्षण पैदा करता है।
इसके अलावा क्रिप्टोकोकोसिस, जो Cryptococcus neoformans नाम का फंगस है, गंभीर स्थिति में दिमाग की सूजन यानी मेंनिंजाइटिस का कारण बनता है। साथ ही सिटिकोसिस नाम के बैक्टीरियल संक्रमण भी कबूतरों के मल से ही फैलता है, जो फ्लू जैसे लक्षण पैदा करता है।
बच्चों, बुजुर्गों और प्रेग्ननेंट महिलाओं में कबूतरों के मल और पंखों से एलर्जी और अस्थमा जैसे समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा कबूतरों के मल में Salmonella और E. coli बैक्टीरिया पाया जाता है, जो पाचन तंत्र में संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन स्वास्थ्य जोखिमों से बचने के लिए कबूतरों के मल के सीधे संपर्क से बचना चाहिए। खासकर जब यह सूखा हो और हवा में उड़ने लगे। अगर मल को साफ करना जरूरी हो तो मास्क और दस्ताने का उपयोग करना चाहिए।

No comments: