मुस्लिम इतना हरामफरमोश है जिसे मोदी सरकार से हर सुविधा तो चाहिए लेकिन वोट नहीं देना। वोट उसको देना है जो बीजेपी को हारा रहा है। जो बीजेपी उम्मीदवार हिन्दू क्षेत्रों से जीतता आ रहा होता है लेकिन मुस्लिम क्षेत्र खुलते ही उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। कई क्षेत्रों में जमानत तक जब्त होती देखी गयी है। इतना ही नहीं, बीजेपी सीताराम बाजार मंडल का अध्यक्ष मुस्लिम लेकिन उसी के मतदान केंद्र से बीजेपी को वोट मिलती 0(जीरो) है। यानि उसके परिवार को तो छोड़ो उस नमकहराम तक ने अपनी उस पार्टी को वोट नहीं जिसके मंडल का वो प्रधान है। इसीलिए इन्हे लोग हरामखोर कहते हैं। क्या वह नमकहराम और हरामखोर को बीजेपी की सुविधाओं और सम्मान नहीं मिल रही है?
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| लेखक चर्चित YouTuber |
वर्ष 2015 में मुस्लिम विधायक 24 हो गए यानी 9.87% जिसमें राजद के 12 थे, कांग्रेस के 6, JDU के 5 और CPI(ML) का 1 था।
उसके बाद 2020 में मुस्लिम विधायक फिर से 19 रह गए यानी 7.81%। इसमें से राजद के 8 थे, ओवैसी के 5, कांग्रेस के 4 और एक एक बसपा और CPI(ML) का। नीतीश की JDU ने 11 मुस्लिम खड़े किये लेकिन सभी हार गए।
इस बार 2025 में मुस्लिमों की संख्या घटकर सबसे कम मात्र 11 रह गई है। विपक्ष और सत्ताधारी NDA दोनों ने पहले के मुकाबले कम मुस्लिम खड़े किये थे। ओवैसी ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 5 जीते है यानी जीते हुए 11 में से आधे ओवैसी के है वह भी सीमांचल से जहां मुस्लिम आबादी 40% से ज्यादा है।
JDU के एक विधायक बना है मोहम्मद जमा खान और 3 राजद के है और 2 मुस्लिम विधायक कांग्रेस के हैं।
ओवैसी के अलावा राजद ने सबसे ज्यादा 18 मुस्लिम खड़े किए और कांग्रेस ने 10 JDU ने 4 LJP ने 1 और CPI(M), Bahujan Samaj Party, और Jan Suraaj Party ने भी मुस्लिम खड़े किए लेकिन कोई नहीं जीत पाया।
राजद के 2 उम्मीदवार मात्र 8 से 9 हजार वोट से जीते है और ओवैसी के सीमांचल में भी वोट बंट सकते थे।
मुस्लिम वोट अपनी अहमियत खो रहे हैं। मुस्लिम प्रभाव वाली सीट 2020 और 2025 में किस पार्टी ने कितनी जीती, वो समझने के लिए ये आंकड़े देखना जरूरी है -
पार्टी (2020)/(2025)
भाजपा 13 /15
JDU 4 /7
LJP 0 /3
Congress 6 / 4
RJD 6 /2
AIMIM 4 /6
इससे पता चलता है कि कुछ सेकुलर दलों में भी मुस्लिमों से मोह भंग हो रहा है और मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें भी हिंदू जीत सकते हैं। लेकिन मुस्लिमों की अपना कोई नेतृत्व नहीं है जो उन्हें सही राह दिखा सके। मुस्लिम कौम की छवि फिर आतंकवाद से जुड़ती दिखाई देती है तो किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।
मुसलमानों के नाम पर अल फ़लाह यूनिवर्सिटी बनाने के लिए सब कुछ सुविधाएं ली लेकिन परिणाम क्या दिया मगर किसी मुस्लिम नेता ने दिल्ली धमाके की निंदा नहीं की है। महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला बड़े फक्र से कह रहे थे कि कश्मीरी मुसलमान आतंक में शामिल नहीं मिलेगा और अगले दिन ही श्रीनगर के पुलिस स्टेशन में धमाका हो गया जिसमें 9 लोग मारे गए।
अवलोकन करें:-
इधर फर्जी गांधी परिवार का चश्मो चिराग दिल्ली धमाके के बाद से गायब है। उसी ने धमकी दी थी कि देश को आग लगने जा रही है। अब क्या धमाकों में अपना नाम शामिल होने के सबूत मिटाने के लिए गया हुआ है, क्या ऐसा भी हो सकता है?
मुस्लिमों की कौम को स्वयं अपनी रणनीति बनानी होगी जिसमें देश से जुड़ाव दिखाई दे। भारत के 85% मुस्लिम सुन्नी है और मुसलमानों की Minority 15% की शिया कौम है लेकिन ज़ोहरान ममदानी के न्यू यॉर्क के मेयर बनने पर सभी खुश थे जबकि वह एक खोजा समुदाय से आता है जिसे भारत और अन्य कई देशों के मुसलमान मुस्लिम ही नहीं मानते और वैसे भी वह एक शिया मुस्लिम है, यह तथ्य भारत के मुस्लिमों को पता है भी कि नहीं, कह नहीं सकते।

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