बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे स्पष्ट रूप से एक नया राजनीतिक संदेश लेकर आए हैं। 243 सीटों में से NDA गठबंधन ने 200 से अधिक सीटें जीतकर प्रचंड जीत दर्ज की, जबकि विपक्षी महागठबंधन केवल 34 सीटों पर सिमट गया। चुनावी नतीजों का गहरा विश्लेषण यह साबित करता है कि बिहार की जनता ने ‘कुशासन’ और विरोध की नकारात्मक राजनीति को स्पष्ट रूप से नकार दिया है, और विकास तथा सुशासन के एजेंडे को चुना है।
यह परिणाम सीधा संकेत देता है कि जिन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी सभाएँ कीं, वहाँ मतदाताओं ने विकास की गारंटी पर मुहर लगाई। लेकिन, जहाँ राहुल गाँधी ने वोट चोरी को मुद्दा बनाकर रैलियाँ की, वहाँ वो हारी।
प्रधानमंत्री मोदी की रैलियाँ बनीं NDA की विजय गारंटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी घोषणा के बाद कुल 14 जिलों में जनसभाएँ और पटना में एक रोड शो किया। उनकी रैलियाँ न केवल भीड़ खींचने में, बल्कि सीधे वोटों में बदलने में भी निर्णायक साबित हुईं। पीएम मोदी ने अपने भाषणों का केंद्र विकास, सुशासन, राष्ट्रीय सुरक्षा और बिहार को आगे ले जाने की योजनाओं को बनाया।
मोदी ने भावनात्मक अपील के बजाय ठोस वादों पर जोर दिया, जिसका असर खासकर महिलाओं, युवा वोटरों और पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं के बीच सबसे ज्यादा देखने को मिला। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी फैक्टर अंतिम चरण तक चुनावी हवा को पूरी तरह से NDA के पक्ष में मोड़ने में सफल रहा। PM मोदी की सभाओं वाले कई जिलों में मतदान प्रतिशत भी औसत से अधिक रहा, जो उनकी लोकप्रियता और प्रभाव का सीधा संकेत है।
जहाँ मोदी ने रैली की, वहाँ NDA को मिली प्रचंड जीत
मोदी ने जिन प्रमुख सीटों पर रैलियाँ कीं, वहाँ NDA प्रत्याशियों को बड़ी जीत मिली। उदाहरण के लिए, बेगूसराय में बीजेपी उम्मीदवार ने 30 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की, मुजफ्फरपुर में बीजेपी उम्मीदवार रंजन कुमार 32 हजार से अधिक वोटों से जीते, और कटिहार में बीजेपी उम्मीदवार को 22 हजार से अधिक वोटों से जीत मिली।
समस्तीपुर और भागलपुर में भी NDA के उम्मीदवार विजयी रहे। यह साबित करता है कि मोदी की उपस्थिति ने जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर जनता के झुकाव को विकास की ओर मोड़ दिया। NDA के रणनीतिकारों ने प्रधानमंत्री की सभाओं को उन सीटों पर केंद्रित किया था जहाँ गठबंधन पिछली बार कमजोर था या जहाँ मुकाबला कड़ा था।
परिणामों से यह रणनीति बिल्कुल सटीक साबित हुई। सीमांचल, मगध, शाहाबाद और मिथिला के कई हिस्सों में पीएम की सभाओं की गूँज मतदान के दिन तक कायम रही। NDA के उम्मीदवारों ने खुद माना कि प्रधानमंत्री की सभा ने उनके अभियान में नई जान फूँक दी और मोदी फैक्टर ने विरोधी जातीय समीकरणों को भी पूरी तरह बदलकर रख दिया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘भगवा’ स्ट्राइक रेट: कुशासन पर सीधा प्रहार
प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बिहार चुनाव में एक अत्यंत सफल स्टार प्रचारक की भूमिका निभाई। सीएम योगी ने 31 सभाएँ और रैलियाँ कीं और उनके प्रचार वाली सीटों पर NDA का जीत का स्ट्राइक रेट 87% से अधिक रहा।
योगी ने अपने भाषणों में महागठबंधन पर उसके ‘जंगलराज’ और परिवारवाद को लेकर तीखा हमला बोला। CM योगी ने विकास और सुशासन के नाम पर वोट माँगते हुए बिना नाम लिए महागठबंधन के प्रमुख नेताओं को ‘पप्पू-टप्पू और अप्पू‘ नाम के तीन बंदरों की जोड़ी तक करार दिया। उनकी रैलियों में भीड़ भी खूब उमड़ी, जो उनके प्रभाव को दर्शाती है।
योगी के प्रचार का शानदार परिणाम
सीएम योगी ने जिन 31 सीटों पर प्रचार किया, वहाँ NDA के 27 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। यह प्रदर्शन दिखाता है कि योगी आदित्यनाथ का सख्त सुशासन और राष्ट्रवाद का एजेंडा बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करने में सफल रहा।
उदाहरण के लिए, उन्होंने बगहा, बेतिया, परिहार, ढाका, लौरिया और रक्सौल जैसी सीटों पर रैलियाँ की और तीनों ही जगह बीजेपी ने जीत हासिल की। यह सफलता स्पष्ट करती है कि बिहार की जनता ने अराजकता नहीं, बल्कि कानून का राज चुनने का मन बना लिया था।
वहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 22 सीटों पर महागठबंधन के लिए प्रचार किया, लेकिन उनका स्ट्राइक रेट महज 9% रहा (सिर्फ दो सीटों पर जीत)। बसपा प्रमुख मायावती का स्ट्राइक रेट भी सिर्फ 20% रहा। ये नतीजे साबित करते हैं कि जनता ने यूपी के उन नेताओं को पूरी तरह नकार दिया जिनकी अपनी साख या पकड़ बिहार की राजनीति में कमजोर थी और जो केवल विरोध के नाम पर चुनाव लड़ रहे थे।
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