![]() |
| साभार सोशल मीडिया |
देश के गद्दारों द्वारा आतंकवादियों को समर्थन देना आज कोई नयी बात नहीं। 1958 में कवि प्रदीप ने गीत लिखा "जिसे तत्कालीन नेहरू सरकार ने बैन कर दिया, यानि नेहरू सरकार भी देश को गद्दारों को समर्थन दे रही थी। इससे बड़ा सबूत नहीं मिल सकता। लेकिन इस गीत पर 1965 इंडो-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने बैन हटाया और युद्ध के दौरान रेडियो पर खूब सुना जाता था।
अगर जयचन्द जैसे गद्दार नहीं मुग़ल आक्रांता भारत की धरती पर कदम नहीं रख सकते थे। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि आतंकवादियों की पैरवी करने वाले वकीलों पर कोर्ट और बार एसोसिएशन तक खामोश रहती है। देश अदालतों से पूछना चाहता है कि जब देश में आतंकवादी घटना होती तब क्या न्यायाधीशों के कानों में सीसा और आँखों में रातोंदा आ जाता है, जो आतंकवादियों को जमानत देने वाली याचिकाएं स्वीकार कर लेती हैं। जमानत की याचिका दायर करने वाले वकील मोटी फ़ीस लेकर अपनी तिजोरी भर देश को बारूद के ढेर पर बैठा देते हैं और अदालतें इन वकीलों के मकड़जाल में फंस आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं। जिस दिन निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट किसी भी आतंकवादी की जमानत की याचिका दायर करने वाले वकीलों पर मोटा जुर्माना नहीं लगाएंगी ये दलाल वकील गद्दारी से बाज़ नहीं आएंगे।
फ़ारूक़ अब्दुल्लाा और चिदंबरम के बाद महबूबा मुफ़्ती, कांग्रेस के नेता हुसैन दलवई और इमरान मसूद भी लाइन से खड़े हो गए आतंकियों को बचाने के लिए। जो भी गिरफ्तार हो रहे हैं आतंकी, कल को ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आतंकियों के कारनामों के ऐसे सबूत मांगेंगे आतंक निरोधी एजेंसियों से जैसे कोई लाइव वीडियो चल रहा हो और जब ऐसे सुबूत नहीं मिलेंगे तो इन ही आतंकियों को रिहा कर दिया जाएगा।
![]() |
| लेखक चर्चित YouTuber |
“ये भटके हुए लोग हैं, भटकना इस्लाम में नहीं सिखाया जाता, इस्लाम में ख़ुदकुशी हराम है, हमें वतन के साथ रहना सिखाया जाता है”।
अगर इस्लाम में भटकना नहीं सिखाया जाता तो ये कैसे इस तरह भटकते है जो फिदायीन बम धमाके करके लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं? और इमरान मसूद तुम्हें किसने भटकाया था मोदी को कहने के लिए कि तुम्हारी बोटी बोटी काट देंगे? जिहाद तो इस्लाम का उसूल है और तुम कहते हो इस्लाम भटकाता नहीं, मतलब दुनिया भर में लोगों के कत्लेआम का मार्ग इस्लाम से ही मिलता है।
महबूबा मुफ़्ती जैसे अहसानफरामोश लोग अगर कश्मीरियों को सब कुछ मिलने के बाद भी सोचते हैं कि मोदी ने उन पर अत्याचार किया है तो कश्मीरी मुस्लिम भारत छोड़ कर पाकिस्तान जा सकते हैं और POK के मुसलमानों जैसा अंजाम भुगत सकते हैं।
फारूक अब्दुल्ला, चिदंबरम महबूबा मुफ़्ती हुसैन दलवई और इमरान मसूद जैसे लोगों को आतंकियों का साथ देने के लिए आतंकी समझ कर गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन जब गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट उन्हें जमानत पर छोड़ने के लिए आतुर हो जाएगा जबकि सुप्रीम कोर्ट को स्वयं सरकार को स्वतः संज्ञान लेकर देश हित में इन मक्कारों को गिरफ्तार करने के आदेश देने चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने “कमा के खाना” तो सीखा ही नहीं है। कन्हैया के सर तन से जुदा करने पर तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और परदीवाला ने नूपुर शर्मा को देश को आग लगाने के लिए जिम्मेदार बता दिया था, अब कौन है देश को आग लगाने के जिम्मेदार, यह भी बता दो।
केंद्र सरकार ने UAPA में 2019 में संशोधन किया था जिसके अनुसार आतंकी को समर्थन देने वाले किसी व्यक्ति को भी आतंकी मान कर उस पर कार्रवाई की जा सकती है। उसे किसी सजल अवस्थी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उस पर फैसला करने की बजाय, सुप्रीम कोर्ट ने उसे High Courts पर छोड़ दिया कि पहले वे फैसला करें। अवस्थी की याचिका में वह घिसा पिटा बहाना था कि UAPA के सेक्शन 35 और 36 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवहेलना करते हैं।
अब समय आ गया है कि आतंक फ़ैलाने वालों से पहले उनका समर्थन करने वालों को जनता के सुपुर्द कर दिया जाए उनके साथ न्याय करने के लिए, फिर चाहे जनता उन्हें सड़कों पर उल्टा लटका दे या उनके भेजे में पीतल भर दे।
अभिव्यक्ति की आज़ादी इतनी नहीं होनी चाहिए कि आप आतंकियों के साथ खड़े होकर देश को आग लगाने की कोशिश करने लगे।
अब सुप्रीम कोर्ट का दायित्व बनता है कि वह दिल्ली धमाके में शामिल लोगों का समर्थन करने वालों को गिरफ्तार करने के निर्देश सरकार को दे।


No comments:
Post a Comment