कांग्रेस का ‘युवराज’ राहुल गांधी झूठों का सरताज; आज की युवा पीढ़ी कांग्रेस की जिन काली करतूतों से अनजान थी आज देख रही है

सोनिया गाँधी से लेकर प्रियंका वाड्रा तक सब इस ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं कि "हम सत्ता में रहते हुए भी किसी शहंशाह से कम नहीं।" जबकि हकीकत यह है कि 2014 के बाद से होने वाले चुनाव परिवार तो क्या कांग्रेस पार्टी को ही सत्ता से दूर हो रहा है। उसका जिम्मेदार कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ सोनिया और उनका परिवार है। काठ की हांड़ी एक बार चढ़ती है बार-बार नहीं। आखिर झूठ पर झूठ बोलकर कब पार्टी और देश को गुमराह किया जाता रहेगा? बार-बार झूठ बोलने का ही अंजाम है कि गढ़े मुर्दे उठने शुरू हो चुके हैं, जो कांग्रेस के साथ-साथ अपनी सहयोगी पार्टियों को भी डुबो रही है। आज की युवा पीढ़ी कांग्रेस की जिन काली करतूतों से अनजान थी आज देख, सुन और पढ़ रही है।
भारत और मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए विदेशी ताकतें तरह-तरह के नैरेटिव बनाती हैं। इनको आगे बढ़ाने का काम बिना किसी तथ्य के कांग्रेस के युवराज और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी करते हैं। इसलिए उनके झूठ की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। लोकसभा में बुधवार (10 दिसंबर) राहुल के झूठों का पर्दाफाश करने वाला ऐतिहासिक दिन बन गया। गृह मंत्री अमित शाह के धारदार, तथ्यपरक और आक्रामक भाषण ने एक बात स्पष्ट कर दी कि झूठ चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, जब सच्चाई के फैक्ट्स सामने आते हैं, तो हर आरोप की परतें खुद-ब-खुद खुलने लगती हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी महीनों से जिस तरह देश भर में घूम-घूमकर वोट चोरी, आयोग के पक्षपात, अल्पसंख्यकों के वोट काटे जाने के आरोपों की झड़ी लगा रहे थे, उनकी धज्जियां अमित शाह ने सदन में उड़ाकर रख दीं। राहुल गांधी ने जिन झूठों के सहारे चुनावी कहानी गढ़ने की कोशिश की, वे बुरी तरह धराशायी हो गए। जिस गंभीरता और तथ्यों से शाह ने राहुल के आरोपों की चीरफाड़ की, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि चुनावी पराजय से बौखलाया इंडी गठबंधन अब संवैधानिक संस्थाओं पर आरोप लगाकर से पहले अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में जरूर सोचेगा। संसद में इस निर्मम पराजय का प्रभाव सिर्फ राहुल गांधी पर नहीं, बल्कि कांग्रेस और पूरे इंडी गठबंधन की राजनीतिक साख पर पड़ा है। देश अब समझ चुका है कि जो नेता झूठ के करीब और सच से दूर रहता है, जनता भी उससे और दूर चली जाती है।

EVM से लेकर आयोग तक, शाह ने एक-एक झूठ को ध्वस्त किया
अमित शाह ने राहुल गांधी के हर आरोप का तथ्यात्मक खंडन किया। उन्होंने EVM की सुरक्षा प्रक्रिया, उसके तीन-स्तरीय वेरिफिकेशन, बीते वर्षों की अदालतों के फैसले, चुनाव आयोग की रिपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के आकलन का हवाला दिया। उनके तर्क ने सिद्ध कर दिया कि कांग्रेस का मुद्दा प्रक्रिया नहीं, बल्कि पराजय है। यदि परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आते, तब यह पूरी प्रक्रिया अचानक विश्वसनीय बन जाती। यही दोहरा मापदंड कांग्रेस की राजनीति की पहचान बन चुका है। मोदी सरकार ने चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी सुधार किए और अनियमितताओं की संभावना लगभग खत्म कर दी। राहुल गांधी के लिए यह सुधार जीत को और कठिन बनाते गए। इसलिए अब उनके आरोप सुधारों पर नहीं, बल्कि संस्थाओं को बदनाम करने पर आधारित हैं। शाह का यह कहना कि “हार का ठीकरा संस्थाओं पर फोड़ना कांग्रेस का नया नहीं पुराना शौक है।”

मुस्लिम वोटों के काटने के भ्रम पर शाह ने नंबरों की भाषा में जवाब दिया
अमित शाह ने बताया कि राहुल गांधी सिर्फ अल्पसंख्यक मतदाताओं को बरगलाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने वोटिंग डेटा रखा कि यदि किसी समुदाय के वोट कटे तो वह हर समुदाय के वोटों में समान रूप से हुआ। कोई सांप्रदायिक पैटर्न नहीं है। लेकिन राहुल गांधी, जो हर बात को “हिंदू–मुस्लिम” के चश्मे से देखते हैं। राहुल गांधी ने फिर अल्पसंख्यक वोटों के कटने का मुद्दा उठाकर अपने ही पुराने सांप्रदायिक नैरेटिव को हवा देने की कोशिश की। अमित शाह ने सीधे आंकड़ों से जवाब दिया कि वोटिंग पैटर्न में ऐसा कोई अलगाव दिखाई नहीं देता जैसा राहुल देश को समझाना चाहते हैं। हर समुदाय में जहां वोट घटे, वह समान रूप से और तकनीकी कारणों से हुआ। उन्होंने इस संवेदनशील मुद्दे पर भी समाज को बांटने की कोशिश की। अमित शाह का एक वाक्य पूरे सदन में गूंजा—“देश को जाति–धर्म में बांटने की आदत कांग्रेस छोड़ ही नहीं सकती।” यह राहुल गांधी की राजनीतिक शैली का स्थायी ट्रेंड बन गया है- सबूत शून्य, शोर अधिक।

आरोप लगाओ, सनसनी फैलाओ और पकड़े जाओ तो नया आरोप लाओ
अमित शाह ने यह स्पष्ट किया कि आयोग हर चरण में स्वतन्त्र और संरक्षित होता है। उन्होंने कई संवैधानिक उदाहरण रखे, रिकॉर्ड का हवाला दिया, और कहा कि 2024 के चुनाव में न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया ने भारत के चुनाव तंत्र की मजबूती को सराहा। इसके बाद कांग्रेस की चुप्पी और वॉकआइट यह साबित करने के लिए काफी था कि उनके आरोप सिर्फ “राजनीतिक हथियार” थे, वास्तविकता से उनका कोई लेना-देना नहीं था। अमित शाह ने अपनी स्पीच में राहुल गांधी की राजनीतिक शैली पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि राहुल का पूरा करियर इसी पर टिका है कि आरोप लगाओ, सनसनी फैलाओ, और जब झूठ पकड़ा जाए तो अगली सुबह नया आरोप लेकर आ जाओ। यह शैली देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं में अविश्वास भरने की कोशिश है। और यह वही राजनीति है जिसके कारण राहुल गांधी भारत के मतदाताओं के भरोसे से ज्यादा दूर होते जा रहे हैं।

विदेशी नेताओं से मिलने ना देने का दावा भी झूठा निकला

प्रियंका वाड्रा किस हैसियत से बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना से मिली? 

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को शायद लगा कि उनका कद इतना बड़ा हो गया है कि अब हर विदेशी मेहमान को उन्हें ‘सलाम’ ठोकना चाहिए। और जब कुछ विदेशी राष्ट्राध्यक्षों ने उनसे मुलाकात नहीं की, तो उन्होंने सीधे मोदी सरकार पर ‘मिलने ना देने’ का आरोप लगा दिया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत पहुंचने से ठीक पहले राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर एक गंभीर और बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार विदेश से आने वाले राष्ट्राध्यक्षों और प्रतिनिधिमंडलों को नेता प्रतिपक्ष से न मिलने की ‘सलाह’ देती है। राहुल गांधी ने कहा कि यह एक पुरानी परंपरा है कि विदेशी मेहमान विपक्ष के नेता से मिलते हैं, लेकिन मोदी सरकार इस परंपरा को तोड़ रही है और चाहती है कि विपक्ष को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नजरअंदाज किया जाए।

उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों का उदाहरण देते हुए कहा कि तब ऐसा कभी नहीं हुआ। राहुल गांधी की बहन और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी बयान का सपोर्ट करते हुए कहा कि सरकार प्रोटोकॉल फॉलो नहीं कर रही।

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के दावा से ऐसा लगता है जैसे विदेश मंत्रालय बाहर से आने वाले डेलिगेट्स के कान में फुसफुसा कर कहता है कि देखो, उस LoP से मत मिलना! यह इल्जाम किसी राजनीतिक नौसिखिए की तरह था, लेकिन जब सरकारी सूत्र और बीजेपी ने हकीकत सामने रखी, तो राहुल गांधी का सारा ड्रामा और ज्ञान धड़ाम हो गया। सरकारी सूत्रों के अनुसार विदेशी डेलिगेशन अक्सर व्यस्त एजेंडे के साथ भारत आते हैं। वे किससे मिलना चाहते हैं और किसे नजरअंदाज करते हैं, यह उनका निजी फैसला होता है। ऐसे में बीजेपी प्रवक्ता ने जो तंज कसा है, वह राहुल गांधी के राजनीतिक कद पर सीधा वार है कि “अगर कोई विदेशी मेहमान राहुल गांधी से नहीं मिलना चाहता, तो इसमें सरकार क्या कर सकती है?”

चर्चा में बने रहने और अपनी वैल्यू बढ़ाने के लिए राहुल गांधी अक्सर सरकार पर झूठा इल्जाम लगाते रहते हैं। लेकिन उनके दावों पर एक नजर डाली जाए तो एक अलग ही तस्वीर नजर आती है। हकीकत एकदम उलट है और राहुल का रोना-धोना बिल्कुल बेबुनियाद है। मजे की बात यह कि LOP बनने के बाद खुद राहुल गांधी से कई बड़े विदेशी नेता मिल चुके हैं. फिर भी कहते घूम रहे हैं कि ‘मिलने नहीं देते’।

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