चीफ जस्टिस सूर्यकांत और हर न्यायाधीश से मैं सहमत नहीं हूं जो कहते हैं “घुसपैठियों को कानून के अनुसार ही निर्वासित किया जाए; वकीलों और पूर्व जजों पर कार्रवाई की जाए जो घुसपैठियों के साथ खड़े हुए CJI को कानून पढ़ा रहे हैं

सुभाष चन्द्र

आज जिस तरह पाखंडी धर्म निरपेक्ष और देशप्रेम का स्वांग करने वाले नेता और उनकी पार्टियां और इन्हीं पाखंडियों की तरह कुछ न्यायाधीश और वकील घुसपैठियों को बचाने चीख-पुकार कर रहे हैं राष्ट्र को जवाब दें कि वह किसी भी देश में घुसपैठी बनकर रह सकते हो? शर्म आनी चाहिए घुसपैठियों का समर्थन करने में। बल्कि घुसपैठियों को बाहर करने में सरकार का सहयोग करना चाहिए। सरकार का विरोध करने और दूसरे मुद्दे हो सकते हैं। अगर शर्म और आत्मग्लानि ही मर चुकी है तो बात अलग है।  

जैसा चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है और पहले भी कई न्यायाधीश कह चुके हैं कि घुसपैठियों को कानूनी तरीके से बाहर निकाला जाना चाहिए CJI ने यह भी कहा है कि रोहिंग्याओं के लिए रेड कारपेट नहीं बिछा सकते उनके स्वागत के लिए हालांकि चीफ जस्टिस ने सख्त रुख अपनाया है इस मामले में लेकिन मैं फिर भी घुसपैठियों को “कानूनी तरीके” से बाहर निकालने के विचार से सहमत नहीं हूं

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जब चीफ जस्टिस ने यहां तक कह दिया कि घुसपैठ गलत तरीके से की जाती है और सुरंग खोदकर वो लोग भारत में आते हैं तो इसका मतलब साफ़ है कि वे लोग “गैर कानूनी तरीके” से ही भारत में घुसे हैं इसलिए उन्हें निकालने के लिए भी किसी कानूनी तरीके की जरूरत नहीं है एक समय सीमा तय कर देनी चाहिए सभी घुसपैठियों के लिए कि तब तक भारत छोड़ कर चले जाएं और उसके बाद जो भी मिले और भारतीय नागरिकता के सबूत न दे पाए तो तुरंत उठाकर बाहर कर देना चाहिए कानूनी तरीके अपनाते रहेंगे तो देश पर आर्थिक बोझ और पड़ेगा जो पहले से पड़ रहा है

चीफ जस्टिस की टिप्पणियों के विरोध में कुछ पूर्व जजों और वकीलों ने उन्हें पत्र लिखकर उनकी निंदा करते हुए कानून पढ़ाया है और कहा कि “रिफ्यूजी” रोहिंग्याओं को संविधान के अनुच्छेद 21 में सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए - इन मक्कार लोगों में शामिल हैं :- 

“Justice AP Shah, former Chief Justice, Delhi High Court Justice K. Chandru, Former Judge, Madras High Court Justice Anjana Prakash, Former judge, Patna High Court Prof. Mohan Gopal, Former Director, National Judicial Academy Senior Advocates Rajeev Dhavan, Chander Uday Singh, Colin Gonzalves, Kamini Jaiswal, Mihir Desai, Gopal Shankar Narayan, Gautam Bhatia, Shahrukh Alam and CJAR headed by Prashant Bhushan”.

मुझे समझ नहीं आता जब संविधान बना था तब क्या वो दुनिया भर के लोगों पर लागू किया गया था या केवल भारतीयों के लिए था? अगर सुप्रीम कोर्ट ने किसी अनुच्छेद को भारतीयों के अलावा भी किसी और पर लागू किया है तो उसकी समीक्षा करनी जरूरी है क्योंकि संविधान का दुरुपयोग कर विदेशी घुस रहे हैं भारत में और पूर्व जज और वकील उनके लिए पैरवी कर रहे हैं

जब भारत सरकार हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं तो उनके पक्ष में खड़े पूर्व जज और वकील उनसे भी बड़ा खतरा है राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए और इसलिए चीफ जस्टिस को सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे लोगों की जांच के आदेश देने चाहिए जिससे पता चल सके कि उनके तार किन विदेशी आतंकियों से जुड़े हैं और उनके पास घुसपैठियों के मुक़दमे लड़ने के लिए फीस का पैसा कहां से आता है

आर्टिकल 14  guarantees "equality before the law or the equal protection of the laws" to all persons within the territory of India. इसका मतलब भारतीयों से ही है न कि दुनिया भर से आए लोगों से

Article 19 of the Indian Constitution guarantees six fundamental rights to its citizens - मतलब साफ़ है केवल भारतीयों के लिए मौलिक अधिकार दिए गए है जिनका जिक्र आर्टिकल 21 में भी किया गया है अतः संविधान भारतीय नागरिकों के लिए है जबकि विदेशियों के लिए संसद ने Immigration and Foreighners Act, 2025 पास किया है 

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