70 के दशक में रेहाना की इन नंगी टांगों पर विवाद भी खूब हुआ |
बॉलीवुड एक ऐसी चकाचौंध वाली दुनिया है जहाँ जाना तो हर कोई चाहता है। लेकिन कई बार इस हसीन दुनिया का ऐसा-ऐसा सच हमारे सामने आ जाता है जिसके बारे में जानकर लोग कान पकड़ लेते हैं कि नहीं भाई, हमें इस इंडस्ट्री में कभी नहीं जाना। अक्सर चकाचौंध इस नगरी में कब किसका सितारा लुप्त हो जाए कुछ नहीं पता, के विषय में लिखता रहता हूँ।जिसमे अपने पिताश्री एम.बी.एल.निगम, जो 50 के दशक में चर्चित फिल्म वितरक थे, के विषय पर "A Film Distributor To Remember" लेख के अतिरिक्त कई चर्चित फ़िल्म कलाकारों की आर्थिक स्थिति के विषय में लिखता रहता हूँ। पिताश्री के व्यवसाय कार्यकाल में एक और वितरक जैन थे, जिनका घर से निकला कदम सीधे कार में और कार से अपने ऑफिस की चौखट पर। उनका अंदाज ही निराला था। किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि रोज Desai & Co में एक चाय के पैसे लेने आते थे। देसाई एंड का. की मृत्यु उपरान्त दामाद दिनकर देसाई ने ऑफिस संभाला। जैन साहब चाय के पैसे लेने आ गए, एक-दो दिन के बाद दिनकर ने कहा कि "रोज मेरे पास आने की बजाए बाहर से ही पैसे ले लिया करो, अन्दर मत आया करो..." बाइचांस पिताजी अंदर ही थे, पिताश्री ने दिनकर को जब जैन साहब के बारे में बताया, दिनकर देसाई को अपने आप पर आत्मग्लानि होने लगी और माफ़ी मांगते हुए कहा "आज से अंदर ही कुर्सी पर बैठकर चाय और जो कुछ खाना हो खाइये।" फिर पिताश्री की प्रशंसा करते जैन साहब ने देसाई को बताया कि "निगम साहब भी अपने समय के किसी खिलाडी से कम नहीं थे।
अवलोकन करें:--
रेहाना सुल्तान. जिन्हें पता है वो जानते होंगें कि रेहाना 70 के दशक की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक थीं. जानकारी के लिए बता दें कि रेहाना वहीं हैं जिन्हें फिल्म ‘चेतना'(1970) ने छोटीसी उम्र की सेक्स वर्कर के रोल ने दौलत-शोहरत भी मिली और फिल्म "दस्तक" से नेशनल अवार्ड भी। “मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने हुए पुरुषों से नफ़रत होने लगी है।” साल 1970 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘चेतना’ में कम उम्र की एक यौनकर्मी अपने एक ग्राहक से ये कहती है। फिल्म के इस सम्वाद और गीतों ने उस समय बहुत धूम मचा रखी थी। विशेषकर मुकेश का गाया "मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा..." आज भी चर्चित गीतों में
19 नवंबर, 1950 को इलाहाबाद में जन्मीं रेहाना पुणे के FTII से एक्टिंग में ग्रैजुएट हैं। रेहाना FTII से पास ऐसी पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्हें किसी फिल्म में लीड रोल मिला था। इसके बाद डायरेक्टर राजिंदर सिंह बेदी ने 1970 में उन्हें फिल्म ‘दस्तक’ में रोल दिया। 1967 में एक्टिंग डिग्री मिलने के बाद उन्हें विश्वनाथ अयंगर की डिप्लोमा फिल्म ‘शादी की पहली सालगिरह’ में काम करने का मौका मिला। रेहाना को फिल्म ‘दस्तक’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड भी मिला इसके बाद रेहाना ने कुछ और फिल्में कीं, जिनमें ‘हार-जीत’ (1972), ‘प्रेम पर्वत’ (1973) और ‘किस्सा कुर्सी का’ (1977) जैसी फिल्में शामिल हैं।
‘चेतना’ यौनकर्मियों के पुनर्वास पर आधारित फ़िल्म थी। इसके निर्देशक बाबू राम इशारा ने इसके ज़रिए भारत को झकझोर कर रख दिया था। एक फ़िल्म आलोचक ने लिखा था, “रेहाना सुल्तान ने उच्च वर्ग की ढंकी छिपी वेश्या का ज़बरदस्त रोल कर सबको सन्न कर दिया था।”
वे उन अभिनेत्रियों की अगुआ थीं, जिन्होंने दमदार औरतों और यौन क्रांति की छवि का निर्माण किया था।
रेहाना ने फिल्मों में कई बोल्ड सीन्स देकर अपनी किस्मत ज़रूर चमकाई थी लेकिन आज वो गुमनामी की ज़िन्दगी जी रही हैं. बताया जा रहा है कि इसकी एक वजह है कि वो भारी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही हैं उनकी हालत इतनी खराब है कि सिने एंड टेलीविजन आर्टिस्ट एसोसिएशन (CINTAA) हर महीने उन्हें पैसों की मदद कर रहा है.
निर्माता-निर्देशक बी.आर.इशारा से विवाह उपरान्त चित्र |
रेहाना के पति बीआर इशारा 2012 में इस दुनिया से चले गए थे। सिर्फ इतना ही नहीं आखिरी दिनों में इशारा ने फिल्में बनाना भी छोड़ दिया था। ख़बरों के मुताबिक इसी वजह से रेहाना के लिए कोई प्रॉपर्टी या बैंक बैलेंस नहीं था और आखिरकार आज उनकी ऐसी हालत हो गयी है कि उन्हें दर-दर ठोकरें खानी पड़ती है।
रेहाना की इस तंगी हालत को स्मरण आता है, गीतकार से निर्माता बने शैलेन्द्र की। राजकपूर और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म "तीसरी कसम" के असफल होने के गम में ज़िन्दगी से ही विदा हो गए। कई वितरकों ने और सिनेमा मालिकों द्वारा फिल्म का रोका धन दिलवाने पर शैलेन्द्र के मित्र अभिनेता-निर्माता-निर्देशक राजकपूर ने फिल्म के रुके धन वसूल करने में शैली शैलेन्द्र की बहुत सहायता की थी। लेकिन बी.आर. इशारा ने भी फिल्म जगत को चेतना के अतिरिक्त कई फिल्में दी, और इशारा ने छोटे बजट पर सफल फिल्में बनाकर बॉलीवुड में तहलका मचा दिया था।
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