पूर्वी उत्तर प्रदेश में जापानी एनसेफलाइटिस यानी दिमागी बुखार से हर साल बच्चों की मौत का सिलसिला आखिरकार थम गया है। 1978 के बाद पहली बार इस साल बीमारी के काफी कम मामले सामने आए हैं और मृतकों की संख्या दो अंकों तक भी नहीं पहुंच सकी है। उम्मीद की जा रही है कि अगले साल तक ये जानलेवा बीमारी पूरी तरह काबू में कर ली जाएगी। इस साल गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में दिमागी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या 6 रही है। जबकि पिछले साल इस समय तक करीब 100 बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा था। दरअसल पिछले साल मार्च में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी थी। इसके बाद बीमारी को काबू में करने की कोशिश शुरू हुई, लेकिन बारिश का सीजन आते-आते देरी हो चुकी थी और कई बच्चों को जान गंवानी पड़ी। लेकिन इस साल यूपी सरकार ने प्रभावित इलाकों में बड़े पैमाने पर सफाई अभियान और टीकाकरण कराया, जिसके नतीजे सामने हैं। यूनीसेफ के साथ मिलकर सरकार ने दस्तक कार्यक्रम चलाया। जिसमें घर-घर जाकर कुल 93 लाख बच्चों को टीका लगाया गया।
बीआरडी अस्पताल में सुधरे हालात
अखिलेश यादव सरकार के समय भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुके गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इस साल हालात काफी बेहतर हैं। दवाओं से लेकर बाकी सुविधाओं का पूरा इंतजाम है। जबकि पिछले साल यहीं पर बच्चों के वार्ड के डॉक्टर कफील अहमद को बच्चों के इस्तेमाल के लिए खरीदे गए ऑक्सीजन सिलेंडर अपने प्राइवेट क्लीनिक में इस्तेमाल करने के आरोप में पकड़ा गया था। इसके अलावा अस्पताल में प्रिंसिपल से लेकर कई डॉक्टरों की भूमिका बेहद संदिग्ध थी। सफाई और टीकाकरण का ही असर था कि इस साल अगस्त में सिर्फ 80 पीड़ित बच्चे मेडिकल अस्पताल में लाए गए। जबकि पिछले साल अगस्त में 400 बच्चे यहां भर्ती कराए गए थे। हालत ये थी कि एक-एक बेड पर 3-3 बच्चों को लिटाया जाता था। बीआरडी अस्पताल में दिमागी बुखार के लिए ही इस साल 300 बेड बढ़ाए गए थे, लेकिन ये बेड खाली पड़े हैं या उनमें दूसरे मरीजों को जगह दी जा रही है।
बाकी इलाकों में भी बीमारी कम हुई
दिमागी बुखार और जापानी बुखार के सबसे ज्यादा मामले यूं तो गोरखपुर और आसपास के तराई इलाकों में होते हैं। लेकिन कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश के करीब 38 जिले हर साल इसके प्रकोप में आते हैं। इन सभी जिलों में हालात बीते सालों के मुकाबले बेहतर बताए जा रहे हैं। योगी सरकार ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को इस बीमारी के लिए नोडल एजेंसी बना दिया है और उसे शहरी विकास, पंचायती राज, महिला बाल विकास, ग्रामीण विकास, मेडिकल एजुकेशन, पशुपालन और बेसिक शिक्षा विभाग को एक साथ मिलाकर कोऑर्डिनेशन में काम करने का जिम्मा सौंपा गया था। इसी का नतीजा है कि बच्चों की मौत का आंकड़ा 50 फीसदी से नीचे आ गया है। बस्ती, गोंडा, सिद्धार्थनगर, देवरिया, अंबेडकरनगर जैसे जिलों में भी यही स्थिति है। वहां पर बीमारी के बहुत कम केस आ रहे हैं और जो आ रहे हैं उनमें जरा सा खतरा महसूस होते ही उन्हें फौरन एंबुलेंस की मदद से गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में भेज दिया जा रहा है। सबसे खास बात कि सारे इंतजामों पर खुद सीएम योगी आदित्यनाथ नजर बनाए हुए हैं। वो इस दौरान 2 बार अस्पताल का दौरा करके इंतजामों का जायजा भी ले चुके हैं।
योगी आदित्यनाथ जब सांसद हुआ करते थे तब उन्होंने कई बार संसद में भी बच्चों की मौत का मुद्दा उठाया था। लेकिन तब सरकारें इसे गंभीरता से नहीं लेती थीं। अब जब वो खुद मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने वो कर दिखाया, जिसकी कुछ साल पहले तक कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
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