चीन के शिंजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार पैनल ने अगस्त में यहां करीब 10 लाख उइगर मुसलमानों को विभिन्न शिविरों में नजरबंद रखे जाने की बात कही थी। अब ह्यूमन राइट्स वाच ने इसका खुलासा किया है कि इन शिविरों में किस तरह उइगर मुसलमानों पर अलग राजनीतिक विचारों को थोपा जाता है और इन्हें नहीं मानने पर तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक टीम ने शिंजियांग के शिविरों में पूर्व में रह चुके 58 लोगों का इंटरव्यू किया है, जिससे क्षेत्र में उइगर मुसलमानों को दी जाने वाली यातनाओं का खुलासा हुआ है। ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के अनुसार, इन शिविरों में बंद उइगर मुसलमानों को चीनी भाषा मैंडरिन सीखने पर मजबूर किया जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें चीन का प्रॉपगैंडा गीत गाने पर भी मजबूर किया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, निर्देश नहीं मानने पर उन्हें घंटों भूखा रखा जाता है और दिन-रात खड़े रहने पर मजबूर किया जाता है। यहां तक कि उन्हें एकांत कोठरियों में बंद कर मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। यही नहीं, उन्हें किसी भी वक्त हिरासत में ले लिया जाता है और इस संबंध में प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया जाता। यहां तक कि उन्हें धार्मिक रीति-रिवाजों के पालन से भी रोक दिया जाता है।
चीन हालांकि इस तरह के शिविर होने की बात से इनकार करता रहा है और उसने इसे महज 'ट्रेनिंग सेंटर' बताया है, जिसका मकसद क्षेत्र के आर्थिक विकास को मजबूती प्रदान करना है। लेकिन ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार, शिंजियांग में इस्लामिक चरमपंथियों व अलगाववादियों से निपटने के नाम पर चीन ने क्षेत्र में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगर मुसलमानों पर कठोर पाबंदियां लगाई हैं और हाल के वर्षों में इन्हें अधिक कड़ा कियाहै।
शिंजियांग के इन शिविरों में रह चुके लोगों का इंटरव्यू करने वाली हांगकांग की ह्यूमन राइट्स वाच रिसर्चर माया वांग का कहना है कि क्षेत्र में धार्मिक रीतियों के अनुपालन पर लगातार नजर रखी जाती है। लोगों से अक्सर उनकी प्रार्थना पद्धति को लेकर सवाल किए जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में सरकारी अधिकारियों का नियमित दौरा भी होता रहता है, जिससे क्षेत्र में इस्लाम का अनुपालन लगभग प्रतिबंधित हो गया है।
क्यों इस्लामिक देश उड़गर मुसलमानों को मिल रही यातनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं?
दुनिया के किसी भी हिस्से में मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंसा के संबंध में इस्लामिक देश खासतौर से सऊदी अरब, पाकिस्तान आवाज उठाते हैं। लेकिन चीन में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकार हनन के मामले में ये देश चुप्पी साधे हुए हैं। इतना ही नहीं, चीन में मुस्लिम त्यौहार, इस्लामिक मान्यताएँ तो दूर, नमाज आदि पर पाबन्दी है। ये बात अलग है कि यूरोप और अमेरिका इस संबंध में चीन की आलोचना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम ने करीब तीन हफ्ते पहले चीन का दौरा किया था। टीम ने कहा था कि ये समझ के बाहर है कि उइगर समुदाय के लोगों को चीन ने री एजुकेशन कैंप में क्यों रखा है।
अमेरिका के दोनों प्रमुख दल रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने चीन की इस बात के लिए आलोचना की थी कि वो उइगर समुदाय के लोगों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीनेटर मार्को रुबियो का कहना था कि चीनी दमन के खिलाफ समान विचार वाले देशों को एक मंच पर आना होगा। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो से अपील करते हुए कहा था उन्हें इस संबंध में कड़ी कार्रवाई के बारे में सोचना चाहिए।
यूरोपियन यूनियन के देशों ने भी इस संबंध में चिंता जताई है। लेकिन दुनिया के कई मुस्लिम देशों मसलन इंडोनेशिया, मलेशिया पाकिस्तान और सऊदी अरब की तरफ से चीन की आलोचना सुनने को नहीं मिला है। इसके अलावा तुर्की के रवैये पर जानकारों को आश्चर्य हो रहा है। दरअसल तुर्की भाषी उइगर समुदाय के लोगों को बसाने के लिए वहां की सरकार की तरफ से पहल की गई थी। लेकिन तुर्की सरकार अब खामोश है। बताया जा रहा है कि चीन के साथ कारोबारी संबंध होने की वजह से इस्लामिक देश विरोध करने से बच रहे हैं। दुनियाँ में मुसलमान चीन उत्पादन का दिल खोलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी में चीनी उत्पादन का बहिष्कार करने का साहस नहीं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक टीम ने शिंजियांग के शिविरों में पूर्व में रह चुके 58 लोगों का इंटरव्यू किया है, जिससे क्षेत्र में उइगर मुसलमानों को दी जाने वाली यातनाओं का खुलासा हुआ है। ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के अनुसार, इन शिविरों में बंद उइगर मुसलमानों को चीनी भाषा मैंडरिन सीखने पर मजबूर किया जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें चीन का प्रॉपगैंडा गीत गाने पर भी मजबूर किया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, निर्देश नहीं मानने पर उन्हें घंटों भूखा रखा जाता है और दिन-रात खड़े रहने पर मजबूर किया जाता है। यहां तक कि उन्हें एकांत कोठरियों में बंद कर मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। यही नहीं, उन्हें किसी भी वक्त हिरासत में ले लिया जाता है और इस संबंध में प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया जाता। यहां तक कि उन्हें धार्मिक रीति-रिवाजों के पालन से भी रोक दिया जाता है।
चीन हालांकि इस तरह के शिविर होने की बात से इनकार करता रहा है और उसने इसे महज 'ट्रेनिंग सेंटर' बताया है, जिसका मकसद क्षेत्र के आर्थिक विकास को मजबूती प्रदान करना है। लेकिन ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार, शिंजियांग में इस्लामिक चरमपंथियों व अलगाववादियों से निपटने के नाम पर चीन ने क्षेत्र में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगर मुसलमानों पर कठोर पाबंदियां लगाई हैं और हाल के वर्षों में इन्हें अधिक कड़ा कियाहै।
शिंजियांग के इन शिविरों में रह चुके लोगों का इंटरव्यू करने वाली हांगकांग की ह्यूमन राइट्स वाच रिसर्चर माया वांग का कहना है कि क्षेत्र में धार्मिक रीतियों के अनुपालन पर लगातार नजर रखी जाती है। लोगों से अक्सर उनकी प्रार्थना पद्धति को लेकर सवाल किए जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में सरकारी अधिकारियों का नियमित दौरा भी होता रहता है, जिससे क्षेत्र में इस्लाम का अनुपालन लगभग प्रतिबंधित हो गया है।
क्यों इस्लामिक देश उड़गर मुसलमानों को मिल रही यातनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं?
दुनिया के किसी भी हिस्से में मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंसा के संबंध में इस्लामिक देश खासतौर से सऊदी अरब, पाकिस्तान आवाज उठाते हैं। लेकिन चीन में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकार हनन के मामले में ये देश चुप्पी साधे हुए हैं। इतना ही नहीं, चीन में मुस्लिम त्यौहार, इस्लामिक मान्यताएँ तो दूर, नमाज आदि पर पाबन्दी है। ये बात अलग है कि यूरोप और अमेरिका इस संबंध में चीन की आलोचना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम ने करीब तीन हफ्ते पहले चीन का दौरा किया था। टीम ने कहा था कि ये समझ के बाहर है कि उइगर समुदाय के लोगों को चीन ने री एजुकेशन कैंप में क्यों रखा है।
अमेरिका के दोनों प्रमुख दल रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने चीन की इस बात के लिए आलोचना की थी कि वो उइगर समुदाय के लोगों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीनेटर मार्को रुबियो का कहना था कि चीनी दमन के खिलाफ समान विचार वाले देशों को एक मंच पर आना होगा। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो से अपील करते हुए कहा था उन्हें इस संबंध में कड़ी कार्रवाई के बारे में सोचना चाहिए।
यूरोपियन यूनियन के देशों ने भी इस संबंध में चिंता जताई है। लेकिन दुनिया के कई मुस्लिम देशों मसलन इंडोनेशिया, मलेशिया पाकिस्तान और सऊदी अरब की तरफ से चीन की आलोचना सुनने को नहीं मिला है। इसके अलावा तुर्की के रवैये पर जानकारों को आश्चर्य हो रहा है। दरअसल तुर्की भाषी उइगर समुदाय के लोगों को बसाने के लिए वहां की सरकार की तरफ से पहल की गई थी। लेकिन तुर्की सरकार अब खामोश है। बताया जा रहा है कि चीन के साथ कारोबारी संबंध होने की वजह से इस्लामिक देश विरोध करने से बच रहे हैं। दुनियाँ में मुसलमान चीन उत्पादन का दिल खोलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी में चीनी उत्पादन का बहिष्कार करने का साहस नहीं।
No comments:
Post a Comment