प्रत्याशियों को 3-3 बार बताने होंगे अपने अपराध

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कोई प्रत्याशी अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर पर्दा नहीं डाल पाएगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने इस संबंध में गाइडलाइन जारी कर दी है। अब हर प्रत्याशी को अपने खिलाफ दर्ज ऐसे मामलों की जानकारी तीन-तीन बार प्रदेश के बड़े अखबारों और न्यूज चैनलों में जारी करना होगी।
राजस्थान के मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने जयपुर में बताया कि हर प्रत्याशी को नाम वापस लेने की आखिरी तारीख से लेकर मतदान की तारीख के बीच अलग-अलग दिनों में तीन बार प्रदेश के प्रमुख अखबारों और समाचार चैनलों में विज्ञापन जारी कर अपने खिलाफ दर्ज मामलों की जानकारी सार्वजनिक करना होगी।
साथ ही प्रत्याशी को नामांकन फॉर्म में अपनी चल-अचल सम्पत्ति और शैक्षणिक योग्यता के बारे में भी बताना होगा। चुनाव आयोग ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए नामांंकन पत्र के फॉर्म नंबर 26 में बदलाव कर दिए हैं।
विधानसभा चुनाव के परिणामों में विजयी प्रत्याशियों को परिणाम जारी होने के 30 दिन के अंदर यह प्रमाण चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना होगा कि उन्होंने किन-किन अखबारों और न्यूज चैनलों में अपने आपराधिक मामलों की जानकारी सार्वजनिक की थी।
हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में गया था मामला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट से मांग की थी कि चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन राजनीति का आपराधिकरण रोकने और पारदर्शिता लाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का पालन कैसे होगा, इस पर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की है। इसलिए तत्काल आदेश जारी कर हर प्रत्याशी के लिए अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को सार्वजनिक करने संबंधी निर्देशों का पालन अनिवार्य किया जाए।
हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी थी। याचिका में मांग की गई है कि प्रत्याशी के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी उसके प्रचार के लिए लगाए गए बैनर और हॉर्डिंग्स पर भी होना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से इसका एक फॉर्मेट भी हाई कोर्ट के समक्ष पेश किया गया है, जो इस तरह है -
मांग की गई है कि प्रत्याशी को अपनी हर प्रचार सामग्री के 33 फीसदी हिस्से पर उक्त फॉर्मेट में जानकारी देना होगी। यदि प्रचार में कोई वीडियो या ऑडियो इस्तेमाल किया जा रहा है तो उसका भी 33 फीसदी हिस्सा इसी तरह की जानकारी पर खर्च करना होगा। यदि कोई प्रत्याशी ऐसा नहीं करता है तो उसका नामांकन रद्द करने की मांग भी हाई कोर्ट से की गई है।

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