क्या मध्य प्रदेश में भाजपा को विपक्ष के बिखराव का लाभ मिल पाएगा?

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
जैसे मध्य प्रदेश में चुनाव तारीख पास आती जा रही है, मप्र की राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति अभी भी मजबूत नहीं हो पाई है। यहाँ भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों के अलावा किसी अन्य पार्टी का प्रभाव बेहद कम रहा है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा किसी भी दूसरे क्षेत्रीय दल को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। पिछले चुनावों के नतीजों को अगर देखें तो यह बात सामने आती है कि राज्य के कुल वोट में से सिर्फ 19 फीसदी पर ही क्षेत्रीय दल सिमट कर रह गए। इस साल बसपा, गोंगपा, आप और सपा राज्य में तीसरे मोर्चे के रूप में काम कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति में इनका कोई मजबूत जनाधार नजर नहीं आ रहा, लेकिन फिर भी यह पार्टियां काफी हद तक चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं।
राज्य में चुनाव के दौरान सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा है। इस बार के चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों की कोई बड़ी भूमिका नजर नहीं आ रही है। भाजपा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी है। 15 साल से पार्टी शासन में है और चौथी पारी को लेकर एक संशय की स्थिति नजर आ रही है। कांग्रेस अंतरकलह का शिकार है। बसपा और कांग्रेस में गठबंधन की संभावना कहीं नज़र नहीं आ रही। आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है। ऐसे में शरद यादव तीसरे मोर्च की कवायद में जुटे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में छोटे दलों को जोड़कर तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू हो गई है। इसकी पहल पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव कर रहे हैं। 2 अगस्त को भोपाल में आयोजित सम्मेलन में छोटे दल के नेता एक मंच पर दिखे। जिन दलों के तीसरे मोर्चे में आने की संभावना है, उनके पास फिलहाल कोई सीट तो नहीं है। पर चुनाव में उलटफेर करने की हैसियत ये रखते हैं।
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2013 के चुनाव में इन दलों ने 3.5 प्रतिशत से अधिक वोट कबाड़े थे। ऐसे में जब भाजपा और कांग्रेस के कुछ विधायकों के जीत का आंकड़ा महज 2-3 हजार का था, इन दलों के वोट काटने से इस बार भी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। तीसरे मोर्चे में जिन दलों के साथ आने का दावा किया जा रहा है, उनमें गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी है। इसे 2013 में 1.5 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। इसके अलावा जनता दल यूनाइटेड, शरद यादव गुट, राष्ट्रवादी कांग्रेस, शिवसेना, बहुजन संघर्ष दल, समानता दल, महान दल, अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी तीसरे मार्चे के घटक में शामिल होने की संभावना है। लेकिन मोर्चे में शामिल होने वाले संभावित दलों में से गोंगपा ने अलग राह पकड़ ली है।
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राज्य में भाजपा और कांग्रेस इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों का वोटिंग प्रतिशत लगातार गिर रहा है। यही वजह है कि राज्य की सियासत में कोई भी राजनीतिक दल तीसरी ताकत बनकर नहीं उभर पाया है। राज्य में हर बार पांच राष्ट्रीय, करीब आधा दर्जन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ ही पांच दर्जन के करीब गैरमान्यता प्राप्त पार्टियां भाग्य आजमाती हैं। इस बार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी प्रदेश में भाग्य आजमाएगी।
इस बार कांग्रेस बसपा और सपा के साथ गठबंधन की कोशिश कर रही थी, लेकिन अभी तक गठबंधन के आसार नजर नहीं आते दिख रहे हैं। उधर, इस बार चुनाव के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया है। गोंगपा ने 1998 में हुए चुनाव में एक सीट हासिल की थी। पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह मरकाम चुनाव जीतकर विधायक बने थे, लेकिन राज्य गठन के बाद हुए तीन चुनावों में गोंगपा के हाथों कोई सफलता नहीं लगी। अब इस बार समाजवादी पार्टी के साथ गोंगपा ने गठबंधन किया है, लेकिन इसका कोई विशेष जनाधार यहां नजर नहीं आ रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान कई सीटों पर त्रिकोणीय व बहुकोणीय मुकाबला नजर आता है, लेकिन ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर होती है। बाकी पार्टियों के अधिकांश प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं।
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भाजपा में भी खींचतान कम नहीं 
यदि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान रुकने का नाम नहीं ले रही तो भाजपा में भी शिवराज और प्रदेशाध्यक्ष को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। जिसका लाभ विपक्ष उठा रहा है। यही कारण है कि राज्य में खुली छोटी-छोटी दुकानें यानि पार्टियाँ जिनका मतदाताओं पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं, भाजपा को डराने में पीछे नहीं। 
प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव की चर्चा
इन सबके बीच नरोत्तम मिश्रा का नाम प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तेजी से सामने आया है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह के नाम भी चर्चा में है। ऐसा माना रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपने किसी करीबी को अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। वैसे तो प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव की चर्चा कई दिनों से सियासी हलकों में जोर पकड़े हुए है, लेकिन अक्टूबर 8 को संघ और प्रदेश बीजेपी के नेताओं की मुलाकात से चर्चा को बल मिला है।
शिवराज सिंह नागपुर के लिये हुये रवाना
अक्टूबर 10 को दिन भर मध्यप्रदेश भाजपा की कमान नये नेता को सौंपे जाने की चर्चा चलती रही। चर्चा ये थी कि नये नाम का फैसला हो चुका है, सिर्फ संघ की सहमति के बाद हाइकमान औपचारिक घोषणा कर देगा। इसी बीच देर शाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अचानक नागपुर के लिए रवाना हुए तो कयासों को मजबूती मिली और नए प्रदेशाध्यक्ष के नामों पर चर्चा चलने लगी। सीएम शिवराज सिंह नसरूल्लागंज के दौरे के बाद शाम 5 बजे तक राजधानी भोपाल में थे।
भाजपा की कमान के लिये उभरे कई नाम
सीएम शिवराज सिंह चौहान के नागपुर दौरे के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नरोत्तम मिश्रा का नाम तेजी से उभरा है। इसके अलावा गृहमंत्री और मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह के विश्वस्त भूपेंद्र सिंह का नाम चर्चा में है। एबीवीपी से भाजपा में आये वीडी शर्मा, जबलपुर राकेश सिंह का नाम भी चर्चा में है। लेकिन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सक्रियता और पिछले चुनाव के अनुभव के आधार पर पलड़ा भारी नजर आ रहा है।
बैठक में चुनाव की तैयारियों को लेकर हुयी लंबी मंत्रणा
मुख्यमंत्री की पहली पसंद भी नरेन्द्र सिंह तोमर माने जा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने की चर्चा इसलिए भी जोरों पर है क्योंकि, अक्टूबर 8 को राजधानी में कोरग्रुप की बैठक हुई थी। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल के अलावा संघ के पदाधिकारियों के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की भी मुलाकात हुई थी। इस बैठक में चुनाव की तैयारियों को लेकर लंबी मंत्रणा हुई थी।
मध्यप्रदेश में सरकार के खिलाफ असंतोष से संघ चिंतित
बैठक में संघ की ओर से कृष्ण गोपाल, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, उपाध्यक्ष प्रभात झा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समन्वय बैठक में हिस्सा लिया। मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि, यह समन्वय बैठक थी, इसका एजेंडा किसी को पता नहीं होता, इस बैठक में प्रदेशाध्यक्ष पर कोई चर्चा नहीं हुई।
अन्य वर्ग सरकार के फैसलों से खुश नहीं 
ज्ञात हो कि राज्य में सरकार के तमाम फैसले उलटे पड़ रहे हैं। कर्मचारी, किसान, मजदूर और अन्य वर्ग सरकार के फैसलों से खुश नहीं हो पाए हैं। आंदोलनों का दौर चल रहा है। वहीं पिछले दिनों हुए दो विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। इससे पहले अटेर व चित्रकूट का उपचुनाव भी भाजपा हार गई थी। 
सरकार की योजनाएं, सुविधाओं का किया जिक्र
सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में संगठन के लोगों ने अपनी बात रखी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकार की योजनाएं और लोगों को दी जा रही सुविधाओं का जिक्र किया। वहीं संघ का सवाल था कि, इतना कुछ होने के बाद भी सरकार के खिलाफ असंतोष क्यों पनप रहा है? आगामी रणनीति पर भी चर्चा हुई।

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