क्या कांग्रेस में परिवार के बाहर कोई अध्यक्ष योग्य नहीं?


आर.बी.एल.निगम 
कांग्रेस भी अजीबोगरीब पार्टी है, जिसे परिवार के सिवा कुछ दिखता ही नहीं, जिसे देख चाटुकारिता कहा जाए या गुलामी मानसिकता? वैसे भी कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी द्वारा उस समय की गयी थी, जब भारत ब्रिटिश सरकार का गुलाम था। उस सन्दर्भ को देखा जाए तो कांग्रेस में जो परिवार की चाटुकारिता या गुलामी किए जाने का यही मुख्य कारण है। जब प्रणब मुख़र्जी को राष्ट्रपति मनोनीत किया था, तभी अपने एक लेख में स्पष्ट लिखा था, "कांग्रेस का पतन निश्चित है।" क्योकि कांग्रेस में वह अजातशत्रु थे। कांग्रेस को बांधकर कर चलने की क्षमता थी, लेकिन परिवार को चाहिए था, वह प्रधानमंत्री जो परिवार के इशारे पर काम करता रहे। हुआ भी वही, प्रणब मुख़र्जी के राष्ट्रपति बनने उपरांत हुए चुनावों में कांग्रेस धरातल पर आ गयी। 
अध्यक्ष परिवार के इशारे पर नहीं, बल्कि परिवार को अपने इशारे पर चलाने वाला चाहिए 
जिस अनुभवहीन प्रियंका वाड्रा को अध्यक्ष बनाने की चमचागिरी हो रही है, जिसने मतदान पूर्व ही यह कहकर हथियार डाल दिए थे कि "मै कोई चमत्कार नहीं कर सकती।" क्या कांग्रेस में अनुभवी नेताओं का अकाल पड़ गया है। स्मरण हो, इसी तरह जब राहुल को अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलें चल रही थीं, तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि "जितनी जल्दी हो राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाइए।" परिणाम जगजाहिर है, कोई उसे झूठला नहीं सकता। अगर कांग्रेस को अपने अस्तित्व को बचाए रखना है, परिवार से बाहर के उस अनुभवी को अध्यक्ष बनाना होगा, जो परिवार को अपनी मनमानी न करने दे और पार्टी को अनुभवी अन्य साथियों के सहयोग से चलाए, अन्यथा पार्टी को पाताल में जाने से कोई नहीं रोक पायेगा। यह कटु सच्चाई है, जिसे हर कोंग्रेसी को समझनी होगी। 
आज भी सच होता लेख 
2014 चुनावों में मोदी लहर को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी को जन्म देने वाली भी कांग्रेस ही है, विशेषकर, वह परिवार जिसकी गुलामी करने से कांग्रेस का मन नहीं भरा। गंभीरता से मंथन करने पर परिणाम यही निकलकर आएगा कि कांग्रेस को नुकसान पहुँचाने वाली भी आम आदमी पार्टी ही है, ना कि भाजपा। इस पार्टी को गठित करते समय पार्टी के बुद्धिजीवी वर्ग ने विरोध भी किया था, लेकिन नगाड़े की आवाज़ में तूती की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी यानि परिवार ने अपनी जिद के आगे बुद्धिजीवी वर्ग को ठेंगा दिखा दिया। क्योकि तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गाँधी मुंगेरी लाल के सपने देखने में व्यस्त थी। सच्चाई से कोसों मील दूर थी। सोनिया को नहीं मालूम कि खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार कांग्रेस को अंधकार की ओर धकेल रही हैं। यही अंतर होता है अनुभव और अनुभवहीन में। अब तो आंखें खोलो कांग्रेसियों। इतना अनर्थ होने पर भी होश में नहीं आए तो कब आओगे?
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आर.बी.एल.निगम दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का जुलाई 20 की दोपहर निधन हो गया। 81 साल की दीक्षित कुछ समय से ब....
     
कांग्रेस पार्टी भी अजीब राजनीतिक पार्टी है। दो महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है और कांग्रेस पार्टी में कोई अध्यक्ष नहीं है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद काफी समय तो राहुल की मान-मुनव्वल में लग गया। जब राहुल नहीं माने तो अब कांग्रेसी नेता गांधी परिवार के बार किसी को अध्यक्ष चुनने के बजाय चुनाव से पहले महासचिव बनाई गईं प्रियंका वाड्रा को अध्यक्ष बनाने की मांग करने में जुट गए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर ने किसी युवा को पार्टी की बागडोर सौंपने की बात कहते हुए प्रियंका वाड्रा को अध्यक्ष बनाने की बात कही है। थरूर का कहना है कि प्रियंका में कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की क्षमता है।
इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अमरिंदर सिंह भी प्रियंका वाड्रा को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग उठा चुके हैं।
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। राहुल गांधी ने स्वयं तो पद तो छोड़ा ही था, यह भी कह दिया था कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर का हो। राहुल के इस बयान से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के अध्यक्ष बनने की अटकलों पर लगभग विराम लग गया था। लेकिन अब गांधी परिवार की चाटुकारिता में जीवन गुजारने वाले कांग्रेसी नेताओं ने एक बार फिर अपनी स्वामिभक्ति दिखाते हुए प्रियंका का नाम आगे बढ़ा दिया है।
करारी शिकस्त के बाद भी नहीं आई कांग्रेसियों को शर्म 
दशकों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में एक-एक सीट के लिए मोहताज हो गई है। राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी हिमालय से रसातल में जा चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस पार्टी सिर्फ 52 सीटों पर सिमट कर रह गई है। नतीजों से पहले सरकार बनाने का दंभ भरने वाला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमेठी की परंपरागत सीट से चुनाव हार गए। 

कांग्रेस में चरम पर पहुंची चाटुकारिता
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई गई और हार के कारणों की समीक्षा की गई। लेकिन बैठक में हार के कारण समझने की कोई कोशिश नहीं की गई। बैठक में देशभर से आए कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्यों में सिर्फ राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा की चाटुकारिता करने की होड़ लगी रही। हर कोई बस यही साबित करने में लगा था कि इस शर्मनाक हार के पीछे नामदारों का हाथ नहीं है। यह बात समझ के परे है कि जब चुनाव की पूरी रणनीति पार्टी अध्यक्ष ने बनाई, तो फिर हार की जिम्मेदारी और किसकी हो सकती है।

राहुल के इस्तीफे की पेशकश और कांग्रेसियों की कश्मकश
कांग्रेस वर्किंग कमेटी में राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की, मीडिया में घंटों तक यही खबरें छाई रहीं। इसके कयास तो एक दिन पहले से ही लगाए जाने लगे थे कि राहुल गांधी दिखावे के लिए इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं। शुक्रवार को बैठक में हुआ भी यही। चैनलों पर ब्रेकिंग चलने लगीं की राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की है और सीडब्ल्यूसी ने एक मत से उनकी इस्तीफा अस्वीकार कर दिया है। लेकिन बाद में पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बयान दिया कि राहुल गांधी ने ऐसी कोई पेशकश की ही नहीं है। जाहिर सी बात है कि यह जरूर चाटुकार कांग्रेसियों की कारिस्तानी होगी कि मीडिया के जरिए पूरे देश में यह संदेश दिया जाए की राहुल जी इस्तीफा देना चाहते हैं लेकिन पार्टी उनसे पद पर बने रहने की मिन्नत कर रही है। एक विफल अध्यक्ष की इमेज चमकाने के लिए इस हद तक की चमचागीरी किसी भी लिहाज से हजम करने लायक नहीं है।

सिर्फ राहुल ने ही मोदी को चुनौती दी- CWC
देश में आज प्रधानमंत्री मोदी का क्या मुकाम है और राहुल गांधी की क्या हालत है, किसी से छिपी नहीं है। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल रागदरबारियों के लिए राहुल जी ही देश के सबसे बड़े नेता है। बैठक के दौरान हर नेता ने कहा कि राहुल जी ही वो नेता है, जिन्होंने देश में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती दी है। दिल्ली में खुद चुनाव हार चुकीं शीला दीक्षित ने कहा कि राहुल गांधी ही पार्टी को आगे ले जाएंगे, इसलिए उन्हें इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है। वहीं राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरेन्द्र, मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ ने भी राहुल के इस्तीफे पर ऐतराज जताया। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, हरीश रावत, अंबिका सोनी और अहमद पटेल भी बैठक में रहुल की अगुवाई में पार्टी के मजबूत होने की दलीलें देते रहे।

17 राज्यों में नहीं खुला कांग्रेस का खाता
लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करने वाली कांग्रेस इस बार कुल 17 राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में खाता भी खोल नहीं सकी। यूपी और बिहार जैसे राज्यों में महज 1-1 सीटों से संतोष करना पड़ा। परिणामों के मुताबिक कांग्रेस आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम, दिल्ली, ओडिशा, सिक्किम, राजस्थान, चंडीगढ़, दागर एवं नगर हवेली, दमन एवं दीव, लक्षद्वीप में एक भी सीट नहीं जीत पाई है। पार्टी ने केरल में सबसे अधिक 14 सीटें जीती हैं। इसके बाद कांग्रेस ने तमिलनाडु में 8 और पंजाब में भी 8 सीटें जीतीं हैं।कांग्रेस पार्टी लोकसभा में सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरे सबसे न्यूनतम स्थान पर पहुंच गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसने 44 सीटें जीती थीं। इस बार भी पार्टी 52 अंकों में ही सिमट कर रह गई।

चुनाव में प्रियंका वाड्रा कुछ नहीं कर पाई
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका वाड्रा को राजनीति में उतारने का ऐलान किया और उन्हें पार्टी महासचिव बनाते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन प्रियंका वाड्रा नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत को साबित किया। पूर्वांचल की एक भी सीट तो छोड़िए, प्रियंका अपने भाई की परंपरागत अमेठी सीट को भी बचाने में कामयाब नहीं हो पाई। इतना सब होने के बावजूद पार्टी के किसी भी नेता में प्रियंका के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं है।

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