मुरादाबाद का मंदिर और मूर्तियाँ (फोटो साभार: Jagran)
जिस तरह उत्तर प्रदेश में दबे या दबाए गए मन्दिरों का मिलना शुरू हुआ है सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सबको आंखें और दिमाग को खोलकर बोलना होगा कि किस तरह सनातन विरोधियों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के आगे घुटने टेक सनातन को दबाने का दुस्साहस किया था। उन्हें नहीं मालूम था कि कभी समय चक्र भी घुमेगा और जब घुमेगा इनके कुकर्म सामने आएंगे। जनता को सच्चाई से मीलों दूर रख तुष्टिकरण कर अपनी तिजोरियां भर मालपुए खाते रहे। आज सच्चाई का सूर्य उदय होने से इन तुष्टिकरण करने वालों की नींद ही नहीं रोटी तो क्या पानी पीना भी मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि जनता को संविधान और लोकतंत्र खतरे में का डर बैठा अपनी बंद होती दुकानों को खुला रखने का प्रयास किया जा रहा है। सनातन विरोधियों को इतना ज्ञान होना चाहिए कि मूर्ति कोई पत्थर का टुकड़ा या रोड़ा नहीं होती। जब उसकी मन्त्रों से प्राणप्रतिष्ठा की जाती है वह एक मूर्ति बन जाती है, अगर तुष्टिकरण करते उस मूर्ति को किसी भी आकार में दबा दिया जाता है, कभी न कभी वही मूर्ति अपना प्रभाव दिखाने लगती है। वह मुर्दा नहीं बन जाती कि जमीन में दफ़न कर दिया, कुछ समय बाद मिट्टी में मिल जाएगा, मूर्खो वह भगवान/देवी की मूर्ति है कोई पत्थर का टुकड़ा/रोड़ा नहीं।
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक मुस्लिम बहुल इलाके में हिन्दू मंदिर मिला है। यह मंदिर पिछले लगभग 4 दशक से बंद पड़ा था। इस मंदिर में शिवलिंग कई खंडित मूर्तियाँ भी मिली हैं। इसमें कोई जा ना पाए, इसके लिए दीवार भी बना दी गई थी। प्रशासन ने अब दीवाल तोड़कर मंदिर का जीर्णोद्धार चालू कर दिया है। मंदिर 1980 में हुए भीषण दंगों के बाद बंद कर दिया गया था। तब यहाँ के पुजारी की हत्या कर उन्हें आग में झोंक दिया गया था।
परदादा ने बनवाया, पोते ने हटवाया कब्जा
मुरादाबाद में यह मंदिर झब्बू का नाला इलाके में मिला है। यहाँ अधिकांश आबादी मुस्लिमों की है। इस मंदिर को लेकर पुजारी के परपोते सेवाराम ने डीएम से शिकायत की थी। उन्होंने शिकायत में बताया था कि मंदिर को उनके परदादा भीमसेन ने बनवाया था और इसके बाद उनका ही परिवार इसमें पूजा करता था। उन्होंने कहा था कि 1980 के दंगे में इस मंदिर को बंद करके प्रवेश द्वार पर दीवाल बनवा दी गई थी और अब यहाँ लोग नहीं जाते। उन्होंने मंदिर को खोलने की माँग करते हुए स्थानीय लोगों के साथ प्रदर्शन भी किया था।
खंडित मूर्तियाँ, बनवा दी पार्किंग
इसके बाद सोमवार (30 दिसम्बर, 2024) को यहाँ मुरादाबाद नगर निगम और प्रशासन की टीम दल-बल के साथ पहुँची। उसने मंदिर की दीवाल तोड़ी। इसके बाद यहाँ इकट्ठा हुई मिट्टी को हटाया गया। मंदिर का स्वरूप इसके बाद दिखा। यहाँ दीवाल पर बनाई हुई बजरंग बली की प्रतिमा मिली। यहाँ से शिवलिंग भी है जिसके पास लेकिन नंदी की मूर्ति थी। माँ दुर्गा और काली की प्रतिमाएँ खंडित थी। जो मूर्तियाँ दीवाल में बनवाई गई थीं उनको भी तोड़ दिया गया था। मंदिर में तीन फीट का पक्का फर्श बनवा दिया गया था। यहाँ की जमीन पर अब पार्किंग चलती थी।
प्रशासन ने मंदिर की खुदाई करवाई है और फर्श तुड़वाया है। अंदर से काफी बड़ा मंदिर सामने आया है। प्रशासन अब मंदिर का जीर्णोद्धार करवा रहा है। यहाँ जल्द ही काम पूरा कर पूजा चालू करवा दी जाएगी। स्थानीय हिन्दुओं को अपना मंदिर वापस पाकर प्रसन्नता है लेकिन इससे कड़वी यादें भी ताजा हो गई हैं। मंदिर के निर्माण को लेकर शिकायत देने वाले सेवाराम इसके वापस मिलने और बुरी हालत देख कर रो पड़े। उन्होंने बताया कि उनके परदादा भीमसेन ने इस मंदिर के निर्माण के जमीन दी थी।
किन्नर ने उठा रखा था पूजा का बीड़ा
तब इस झब्बू का नाला इलाके में हिन्दू आबादी बसा करती थी। सेवाराम ने बताया कि उनके दादा गंगासरन यहाँ पूजा करते थे। 1980 में जब मुरादाबाद में ईद के बाद भीषण दंगा भड़का तो यह इलाका हिन्दुओं से खाली हो गया। सेवाराम ने आरोप लगाया कि दंगाइयों ने उनके दादा गंगासरन को मार दिया और उनकी लाश आग में झोंक दी। इससे उनका शव तक नहीं मिला। इसी के साथ मंदिर बंद हो गया और यहाँ दीवाल बना दी गई। इलाके से धीमे-धीमे सारे हिन्दू चले गए। तब से यह मंदिर बंद था।
यहाँ कुछ समय पहले एक हिन्दू किन्नर आकर बसी थीं। उनका नाम मोहिनी किन्नर है। मोहिनी किन्नर ने बताया कि उनसे मंदिर की यह हालत देखी नहीं गई और उन्होंने बाहर के हिस्से में रंगाई पुताई करवाई। इसके लिए भी पुलिस की मदद लेनी पड़ी थी। मोहिनी किन्नर ने बताया कि वह यहाँ रोज दिया बाती करती थीं और साथ ही दिवाली पर मंदिर की दीवाल कि सजावट करवाती थीं। अब वह और सेवाराम का परिवार अपने मंदिर को वापस पाकर काफी प्रसन्न हैं।
1980 के दंगे में मरे थे 83 लोग
यह मंदिर जिस 1980 के दंगे के बाद बंद किया गया था। उसमें 83 लोग मारे गए थे। 13 अगस्त 1980 को यह दंगा हुआ था। इसको लेकर 2023 में जाँच रिपोर्ट योगी सरकार ने सार्वजनिक की थी। इससे पहले तक दंगे की रिपोर्ट को इसलिए दबा कर रखा गया था क्योंकि इससे असल जिम्मेदार लोगों की पहचान हो जाती। मुरादाबाद में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दो बड़े खिलाड़ी थे। मुस्लिम लीग की जमात का नेतृत्व शमीम अहमद और हामिद हुसैन उर्फ अज्जी और उनके समर्थक कर रहे थे, जो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम लीग को फिर से खड़ा करना चाहते थे।
वहीं, कांग्रेसी हाफिज मोहम्मद सिद्दीकी की अगुवाई में काम कर रहे थे। इस रिपोर्ट में हिंदू पक्ष के 6 लोगों के लिखित बयान दर्ज हैं, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि ये हिंसा अचानक नहीं, बल्कि पूर्व-नियोजित थी। मुरादाबाद में भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष हरिओम शर्मा का भी बयान इस रिपोर्ट में दर्ज है, जिन्होंने कहा था कि ये हिंसा बहुत बड़ी साजिश का महज एक हिस्सा भर ही थी। इस हिंसा के लिए मुस्लिम पक्ष को बाहरी देशों, इस्लामी संगठनों जैसे मुस्लिम लीग, जमीयत उलेमा-ए-हिंसा और तबलीगी-ए-इस्लाम ने फंडिंग की थी।
इसके दंगे से तीन महीने पहले से ही कई हिंसक घटनाएँ हो रही थीं। गहराए तनाव का फायदा मुस्लिम लीग और कांग्रेस के नेताओं ने 13 अगस्त 1980 को ईद के दिन उठाया। उन्होंने अपने समर्थकों के माध्यम से सुअरों वाली घटना को अंजाम दिया और पूरे मुरादाबाद को दंगों की चपेट में धकेल दिया। भाजपा नेता हरिओम शर्मा ने उस दिन को याद करते हुए बयान में बताया है कि ईद के मौके पर ईदगाह के पास लगाए गए शिविरों में मुस्लिमों की भीड़ ने आग लगा दी।
इसमें उन 2 शिविरों को छोड़ दिया गया, जिन्हें मुस्लिम लीग चला रही थी। उस दौरान मुस्लिम लीग के नेता अपने शिविरों (कैंप) के पास ही थे, जबकि उन्हें नमाज में शामिल होना था। इस बात से साफ है कि वो दंगों के प्रति पहले से जानते थे और सारी साजिश उनकी रची हुई थी। हालाँकि, इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि ईदगाह में सुअर गए थे। इतना नहीं, इसके अलावा एक और अफवाह फैलाई गई कि पुलिस ने सैकड़ों मुस्लिमों को ईदगाह के अंदर मार दिया है।
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