विवादित ढाँचों को बचाने सुप्रीम कोर्ट पहुँची कांग्रेस, Places of Worship Act 1991 का किया समर्थन: ताकि हिन्दू वापस न ले सके अपने देवस्थल; जब मुसलमान किसी भी विवादित जगह को छोड़ने को तैयार नहीं फिर हिन्दू क्यों छोड़े? हिन्दुओं आंखे खोलो नहीं तो "बटोगे तो कटोगे"


मुग़ल और इस्लामी शासन के दौरान कब्जाए गए मंदिरों को वापस लेने से रोकने वाले कानून Places of Worship Act 1991(POWA) के बचाव में कांग्रेस पार्टी उतर आई है। उसने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के समर्थन में एक याचिका दायर की है। 
कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की वैधता पर चल रही सुनवाई में पक्ष बनने के लिए पहुँची है। कांग्रेस ने कहा है कि यह कानून देश में सेक्युलरिज्म बचाने के लिए जरूरी है। उसने कहा है कि यदि कानून में कोई बदलाव हुआ तो इससे देश का सेक्युलरिज्म खतरे में आ जाएगा।

हिन्दू कांग्रेस से यह पूछना चाहता है कि क्या पूजा स्थलों को वापस लेना सेकुलरिज्म नहीं? यदि नहीं फिर नहीं चाहिए ऐसा पाखंडी सेकुलरिज्म। इसका मतलब साफ है कि सेकुलरिज्म के नाम पर हिन्दुओं की पीठ में छुरा खोंपा जा रहा है। दूसरे, क्या इस्लाम में किसी विवादित जगह इबादत करना जायज है? हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर बनी मस्जिदें, दरगाह या कब्रिस्तान सनातन के नाम पर कलंक है। संविधान को पहले ही काफी हद तक शरीयत बना दिया है। हिन्दुओं परमपिता परमात्मा की महिमा है कि 2014 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गयी वरना यूपीए सरकार तो इससे भी खतरनाक कानून Anti-Communal Violence Bill ले आयी थी। गनीमत है कि अपने कार्यकाल में पेश किया बिल लोकसभा में पास नहीं हो पाया था अगर ये बिल पास हो गया होता भारत संविधान नहीं शरीयत से चल रहा होता। यही असली वजह थी 2024 चुनावों में संविधान खतरे में का शोर मचाया था और I.N.D.I alliance बना। 

हिन्दुओं एकजुट हो जाओ वरना योगी का कहना कि "बटोगे तो कटोगे" सच होगा। इन सभी सनातन विरोधियों को अपने वोट से धूल चटवाओ। नहीं तो ये सनातन विरोधी हिन्दुओं को कहीं का नहीं छोड़ेंगे। रोते रहना। जब मुसलमान विवादित मस्जिद, दरगाह और कब्रिस्तान को छोड़ने को तैयार नहीं फिर हिन्दू क्यों छोड़े? 

कांग्रेस ने क्या कहा?

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस ने अपने वकीलों के माध्यम से दायर की है। याचिका में कांग्रेस ने कहा, “आवेदक Places of Worship Act 1991 के संवैधानिक और सामाजिक महत्व पर जोर देने के लिए इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहती है क्योंकि उसे आशंका है कि इसमें कोई भी बदलाव भारत के मजहबी एकता और सेक्युलरिज्म को खतरे में डाल सकता है और इससे राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो सकता है।”
कांग्रेस ने आगे कहा कि वह सेक्युलरिज्म को बचाए रखना चाहती है और जब कानून बना था तो लोकसभा में जनता पार्टी के साथ वह बहुमत में थी। कांग्रेस ने कहा क्योंकि कानून बनाने के लिए वह अपने सांसदों के माध्यम से जिम्मेदार थी, ऐसे में उसे सुप्रीम कोर्ट के भीतर इसका बचाव करने के लिए मौक़ा दिया जाए। कांग्रेस ने दावा किया कि इस कानून के विरोध में डाली गई याचिकाओं में गलत दावे किए गए हैं। कांग्रेस ने यह भी दावा किया कि इससे हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता।
कांग्रेस ने याचिका में कहा, “याचिका में यह भी गलत कहा गया है कि Places of Worship Act 1991 पक्षपाती है क्योंकि यह केवल हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध समुदायों के सदस्यों के लिए लागू है। Places of Worship Act 1991 को देखने से ही पता लगता है कि यह सभी धर्मों के बीच समानता को बढ़ावा देता है और याचिका में बताए गए धर्म के लोगों से अलग व्यवहार नहीं करती है। यह सभी धर्मों के पूजा स्थलों के लिए समान रूप से लागू है और 15 अगस्त, 1947 के अनुसार उनकी स्थिति का पता लगाता है और उसे स्थापित करता है।”

सुप्रीम कोर्ट में क्या लड़ाई चल रही?

इस कानून को हिन्दुओं की तरफ से सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और बाकी संगठनों ने चुनौती दी है। वहीं मुस्लिमों की तरफ से आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत ने याचिका दायर की है। इस मामले में नई याचिका ज्ञानवापी मस्जिद कमिटी ने दायर की है। उसका कहना है कि वह भी प्रभावित है।
मुस्लिम चाहते हैं कि इस कानून के खिलाफ दायर की गई याचिकाएँ खारिज कर दी जाएँ और कानून को पूरी तरह से लागू किया जाए। उनका कहना है कि कानून के तहत अब किसी भी मुस्लिम मजहबी स्थल पर दावा नहीं किया जाना चाहिए।
वहीं हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इस कानून के जरिए उन सभी धार्मिक स्थलों को कानूनी मान्यता दे दी गई जिनका स्वरुप 1947 से पहले बदल दिया गया था। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इस कानून की धारा 2,3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि कानून के चलते उन धार्मिक स्थलों को भी वह वापस नहीं ले सकते, जिनको आक्रांताओं ने तोड़ा था।
हिन्दू पक्ष ने इस कानून को संसद में पास किए जाने का भी विरोध किया है। हिन्दू पक्ष का कहना है कि यह ऐसा कानून है जो लोगों को न्यायालय के दरवाजे खटखटाने से रोकता है ऐसे में यह असंवैधानिक है। हिन्दू पक्ष ने इसके अलावा कानून की संवैधानिकता पर भी प्रश्न उठाए हैं।
इस मामले में को लेकर 12 दिसम्बर, 2024 को सुनवाई की थी। इसकी सुनवाई CJI संजीव खन्ना की बेंच ने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई में आदेश दिया था कि अब देश की अदालतों में कोई भी ऐसी याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी, जिसमें किसी मजहबी स्थल की स्थिति को लेकर चुनौती दी गई हो। सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट मामले में केंद्र सरकार से एक हलफनामा दायर करने को कहा था।

क्या है 1991 का प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट?

पूजास्थल अधिनियम, 1991 या फिर Places of Worship Act 1991 पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार 1991 में लेकर आई थी। इस कानून के जरिए किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति यानी वह मस्जिद है मंदिर या फिर चर्च-गुरुद्वारा, यह निर्धारित करने को लेकर नियम बनाए गए हैं।
इस कानून के अनुसार, देश के आजाद होने के दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को जिस धार्मिक स्थल की स्थिति जैसी थी, वैसी ही रहेगी। यानि इस दिन यदि कोई स्थान मस्जिद था तो वह मस्जिद रहेगा। कानून में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल का स्वरुप बदलने की कोशिश करेगा तो उसकी 3 वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
इसी कानून में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी धार्मिक स्थल के स्वरुप के बदलने को लेकर याचिका कोर्ट में लगाएगा तो वह भी नहीं मानी जाएगी। यानि कोई भी व्यक्ति किसी मस्जिद के मंदिर होने का दावा नहीं कर सकता या फिर किसी मंदिर के मस्जिद होने का दावा नहीं किया जा सकता।
कानून में यह भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि यदि यह स्पष्ट तौर पर साबित हो जाए कि इतिहास में किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव किए गए थे तो भी उसका स्वरुप नहीं बदला जाएगा। यानी यह सिद्ध भी हो जाए कि किसी मंदिर को इतिहास में तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी तो भी उसे अब दोबारा मंदिर में नहीं बदला जा सकता।
कुल मिलाकर यह कानून कहता है कि 1947 के पहले जिस भी धार्मिक स्थल में जो कुछ बदलाव हो गए या फिर उस दिन जैसे थे, वह वैसे ही रहेंगे। उनके ऊपर अब कोई दावा नहीं किया जा सकेगा। इसी कानून में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी।
इस कानून में कई छूट भी दी गई हैं। यह कानून कहता है कि यदि किसी धार्मिक स्थल में बदलाव 15 अगस्त, 1947 के बाद हुए हैं तो ऐसे में कानूनी लड़ाई हो सकती है। इसके अलावा ASI द्वारा संरक्षित स्मारकों को लेकर भी इसमें छूट दी गई है।

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