एक तरफ यूक्रेन - रूस युद्धविराम प्रस्ताव आया और उसी दिन यूक्रेन ने रूस पर भीषण ड्रोन हमले किए; यह युद्धविराम एक बात है, लेकिन ट्रंप तो टैरिफ का विश्व युद्ध छेड़े हुए है

सुभाष चन्द्र 

ट्रंप ने कार्यभार संभालते ही यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने करने की मंशा से 12 फरवरी को रुसी राष्ट्रपति पुतिन से फ़ोन पर बात की। पुतिन ने भी युद्ध समाप्त करने की ट्रंप की कोशिशों को सराहा था अब 11 मार्च को सऊदी अरब के जेद्दा शहर में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और यूक्रेन के वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत में अमेरिका ने 30 दिन के युद्ध विराम का प्रस्ताव रखा, जिसे यूक्रेन ने बिना देरी किए स्वीकार कर लिया इस प्रस्ताव से पुतिन भी सहमत हुए हैं

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जेलेंस्की ने कहा है कि युद्ध विराम के 30 दिनों में शांति प्रस्ताव तैयार किया जाएगा जिसके आधार पर शांति समझौते के लिए वार्ता होगी पुतिन कह चुका है कि युद्ध विराम पिछड़ रही यूकेन सेना के लिए राहत होगी और वह फिर तैयारी करके मैदान में आ जाएगा और इसलिए शांति और विवाद को सुलझाने के लिए स्थायी निदान होना चाहिए

इधर युद्ध विराम के प्रस्ताव रखा गया जिसे यूक्रेन ने स्वीकार कर लिया लेकिन जेलेंस्की की मक्कारी देखिए, उसकी सेना ने उसी दिन मॉस्को पर ताबड़तोड़ ड्रोन हमले कर दिए इससे यह भी लगता है EU के भड़काए में जेलेंस्की युद्ध विराम चाहता ही नहीं है

EU ने एक शरारत और भी की है उसने कहा है एक शांति सेना बनाई जाए जिसमें भारत भी EU देशों के साथ अपने सैनिक भी भेजे जबकि EU को पता है कि रूस और भारत के संबंध अटूट हैं और भारत ऐसा कभी नहीं करेगा लेकिन EU की मंशा भारत और रूस के संबंधों में खटास पैदा करना है

यूक्रेन सेना ने Kursk क्षेत्र में 1300 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा कर लिया था जिसमें से अधिकांश भाग रूस से छुड़ा लिया है और 400 यूक्रेनी सैनिकों को बंधक बनाया हुआ है पुतिन उनके साथ आतंकियों जैसा व्यवहार करना चाहता है

यदि यह युद्ध विराम होता है तो यह अमेरिका और रूस के संबंधों में एक नई पहल साबित हो सकती है और इसलिए शायद रूस अमेरिका से अपने खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को ख़त्म करने या कम करने की भी मांग कर सकता है ट्रंप इसके लिए यदि कोई सकारात्मक कदम उठाता है तो वह निश्चित रूप से चीन के लिए एक झटका होगा

वैसे एक तरफ तो ट्रंप इस युद्ध को रोकने की बात कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ टैरिफ को लेकर एक अलग ही विश्व युद्ध छेड़े हुए है जिसमें भारत भी शामिल है लेकिन मुझे लगता है यह एक बुलबुला साबित होगा क्योंकि ट्रंप को अपने हाथ वापस खींचने पड़ सकते हैं

विश्व हर चीज़ के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है और आज कोई देश पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर नहीं है एक उदहारण के लिए भारत की जेनरिक दवाएं जो काफी सस्ती हैं, वे यदि अमेरिका नहीं जाएंगी तो विश्व भर में कहीं भी भेजी सकती है और उनका निर्यात अमेरिका के मुकाबले कई गुना बढ़ सकता है मेक्सिको के राष्ट्रपति ने तो खुली चेतावनी दे दी है ट्रंप को कि हम आपका  सामान खरीदना ही बंद कर देंगे

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