सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर 2025) को एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि गवर्नर और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं से आए बिलों पर फैसला लेने के लिए कोर्ट कोई टाइमलाइन तय नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि पिछले फैसले में तय की गई समय-सीमा और ‘डीम्ड असें’ (समय पर कार्रवाई न होने पर बिल को मंजूर मान लेना) संविधान के खिलाफ है। अदालत ने माना कि ऐसा करना गवर्नर और राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों में दखल होगा।
जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गवर्नर का काम किसी और संस्था से बदला नहीं जा सकता। यानी अगर गवर्नर बिल पर फैसला लेने में देर कर दें, तो भी अदालत उस प्रक्रिया में दखल नहीं दे सकती। कोर्ट तभी कदम उठा सकती है जब देरी बेहद ज़्यादा हो और उसकी कोई वजह न हो और तब भी अदालत सिर्फ इतना कह सकती है कि गवर्नर ‘उचित समय’ में फैसला लें, न कि क्या फैसला लें।
यह फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए सवालों पर दिया गया है, जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या अदालत गवर्नर और राष्ट्रपति की प्रक्रिया पर समय-सीमा तय कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसा करना सत्ता के विभाजन के सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि गवर्नर किसी ‘सुपर मुख्यमंत्री’ की तरह बर्ताव नहीं कर सकते, क्योंकि राज्य में दो सरकारें नहीं हो सकतीं।
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