राहुल गाँधी और अब प्रियंका वाड्रा द्वारा चुनाव आयुक्तों को धमकी देकर क्या देश में गुंडागर्दी का माहौल बना चाहते हैं? कांग्रेस में बुद्धिजीवी क्यों खामोश है? बिहार में देख ली कांग्रेस की दुर्गति। क्या परिवार भक्ति में देश को आग में झोंकना चाहती है कांग्रेस? डायन भी दस घर छोड़ देती है लेकिन इतने साल देश पर राज करनी वाली पार्टी ही देश को बर्बाद करने उत्तेजक बयान दे रही है। क्या सत्ता नहीं मिलने की वजह से देश की संवैधानिक संस्थाओं को धमकाओगे? कहाँ है राहुल को जमानत देने वाले जज? अगर कांग्रेस का यही हाल रहा वो दिन भी दूर नहीं होगा जब सुप्रीम कोर्ट तक आग की चिंगारियां पहुंचेंगी। कांग्रेस को ऐसी गन्दी सियासत को छोड़ना होगा नहीं तो देखते हैं कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील राहुल ठोकेगा या प्रियंका? यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राहुल और प्रियंका जिस आग को लगा रहे थे लग गयी और ये जा रही कांग्रेस कार्यालय, राहुल और प्रियंका के बंगलों में और ये वो आग जिसे कोई फायर ब्रिगेड भी बुझा पाएगी। क्योकि इस आग को लगा रहा समाज का बुद्धिजीवी वर्ग।
पत्र में क्या कहा गया है?
इसमें कहा गया है, “भारत का लोकतंत्र किसी हथियार से नहीं बल्कि उसकी बुनियादी संस्थाओं के खिलाफ फैल रही जहरीली बयानबाजी से चोट खा रहा है। कुछ राजनीतिक नेता असली नीतियों का विकल्प देने के बजाय, बिना सबूत के गंभीर आरोप लगाते रहते हैं।” पत्र में आगे लिखा है, “पहले उन्होंने भारतीय सेना की बहादुरी पर सवाल उठाए, फिर न्यायपालिका, संसद और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को निशाना बनाया और अब चुनाव आयोग की बारी आ गई है।”
पत्र में राहुल गाँधी पर सीधा हमला करते हुए लिखा गया है, “लोकसभा में विपक्ष के नेता ने बार-बार चुनाव आयोग पर हमला करते हुए दावा किया है कि उनके पास सबूत है कि चुनाव आयोग वोट चोरी करा रहा है और उनकी बात 100% प्रमाणित है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त रिटायर भी हो जाएँ, तो वह उन्हें भी छोड़ेंगे नहीं।” क्या मतलब है इस धमकी का?
आगे पत्र में कहा गया है, “इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद उन्होंने अब तक कोई औपचारिक शिकायत, या शपथपत्र के साथ, दर्ज नहीं कराई। जिससे उन्हें अपनी बात के लिए जवाबदेह न होना पड़े।” राहुल और राहुल के सलाहकार अच्छी तरह जानते हैं कि जिस दिन औपचारिक शिकायत, या शपथपत्र के साथ, दर्ज करवा दी और गलत साबित हो गयी कोई कपिल, सिंघवी या फिर प्रशांत जेल जाने से रोक नहीं पाएगा। ये Hit and run पॉलिसी कांग्रेस को पाताल लोक पहुंचा रही है। इस पत्र में कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों, वामपंथी झुकाव वाले NGOs और कई अन्य लोगों की EC के खिलाफ तीखी भाषा को लेकर भी सवाल उठाए हैं।
पत्र में कहा गया, “चुनाव आयोग ने अपनी SIR प्रक्रिया सार्वजनिक की है, कोर्ट से अनुमति लेकर सत्यापन कराया है, फर्जी नाम हटाए हैं और नए योग्य मतदाता जोड़े हैं। इससे साफ लगता है कि ये आरोप एक राजनीतिक हार को संकट का नाम देने की कोशिश है।”
पत्र में कहा गया है, “यह व्यवहार ‘बौखलाए हुए गुस्से’ की निशानी है जो लगातार चुनावी हार और जनता से दूर हो जाने के कारण पैदा हुआ है। जब नेता जनता की आकांक्षाओं को समझ नहीं पाते, तो वे अपनी कमियों को सुधारने की जगह संस्थाओं पर हमला करना शुरू कर देते हैं। गंभीर विश्लेषण की जगह ड्रामा ले लेता है।”
इसमें आगे लिखा है, “विडंबना यह है कि जब कुछ राज्यों में चुनाव नतीजे विपक्षी दलों के पक्ष में आते हैं, तब चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठता। जहाँ नतीजे उनके पक्ष में नहीं आते, वहीं आयोग हर कहानी का खलनायक बन जाता है। इस तरह का गुस्सा केवल अवसरवाद दिखाता है।”
पत्र में लोगों से चुनाव आयोग के साथ खड़ा होने को कहा गया है। इसमें लिखा है, “अब समय है कि देश के लोग चुनाव आयोग के साथ मजबूती से खड़े हों चापलूसी के लिए नहीं बल्कि विश्वास और सिद्धांत के कारण। समाज को यह माँग उठानी चाहिए कि नेता बेबुनियाद आलोचनाओं और नाटकीय भाषणबाजी से इस संस्था को बदनाम न करें।”
इसमें कहा गया है, “एक बड़ा सवाल यह भी है कि देश की मतदाता सूची में कौन होना चाहिए। नकली वोटर, फर्जी लोग, गैर-नागरिक या वे जिनका भारत के भविष्य से कोई वैध संबंध नहीं उन्हें सरकार चुनने का अधिकार नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को चुनावों में शामिल होने देना देश की संप्रभुता और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है। दुनिया के बड़े लोकतंत्र भी अवैध प्रवासियों के मामले में बहुत सख्त होते हैं।”
पत्र लिखने वाले लोगों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और NGT के चैयरमेन आर्दश कुमार गोयल, संजीव त्रिपाठी पूर्व RAW प्रमुख और NIA के पूर्व डायरेक्टर योगेश चंदेर मोदी जैसे लोग भी शामिल हैं।
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