प्रमोशन में हो आरक्षण, हमारा संवैधानिक अधिकार हैं--रामदास अठावले, केंद्रीय मंत्री

सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने सितम्बर 26 को फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने नागराज मामले में फैसले को सही बताया और उस फैसले पर फिर से विचार की जरूरत को सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है, हालांकि अगर राज्य सरकार चाहे तो आरक्षण दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मामले को लेकर मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करूंगा। अठावले ने कहा कि प्रमोशन में हो आरक्षण, यह हमारा संवैधानिक अधिकार हैं। जिसको लेकर मैं पीएम मोदी से मुलाकात कर प्रमोशन में आरक्षण की मांग करूंगा। संविधान पीठ इस बात को तय करना था कि करीब 12 साल पुराने नागराग के फैसले पर पुर्नविचार की जरूरत है या नहीं।
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वहीं बीएसपी सुप्रीमों मायावती की प्रतिक्रिया आई हैं। बहन मायावती ने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक एससी/एसटी के प्रमोशन के मामले में कुछ नहीं किया हैं, लेकिन अब सरकार को इस ओर कदम उठाना चाहिए। मायावती ने कहा कि सरकार चाहे तो एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है। इसलिए हर राज्य की सरकार को इस ओर सोचने और विचार कर कदम उठाने की जरूरत हैं।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 के अपने फैसले में SC/ST के कर्मचारियों की नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कुछ शर्ते लगाई थी। जानकारी के लिए आपको बता दे, सरकारी नौकरियों में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई का फैसला 30 अगस्त को सुरक्षित कर दिया है. इस दौरान केंद्र और राज्य की सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण की वकालत करते हुए कहा कि, ‘1000 साल से झेल रहा है यह तबका’ , इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हुई पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 2006 के नागराज जजमेंट के चलते SC-ST के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है।
केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से झेल रहा है। उन्होंने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा की जरूरत है। वहीं दूसरी तरफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल किए।
शीर्ष अदालत ने पूछा कि यदि एक आदमी रिजर्व कैटिगरी से आता है और राज्य का सेक्रटरी है, तो क्या ऐसे में यह तार्किक होगा कि उसके परिजन को रिजर्वेशन के लिए बैकवर्ड माना जाए? दरअसल, सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस बात का आंकलन कर रही है कि क्या क्रीमीलेयर के सिद्धांत को एससी-एसटी के लिए लागू किया जाए, जो फिलहाल सिर्फ ओबीसी के लिए लागू हो रहा है।
प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आखिर देश में कब तक आरक्षण चलता रहेगा? विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ दलगत और आरक्षण की राजनीती आधारित पार्टियों का अम्बार है। पार्टी बनाने वालों की जाति का भला हो या न हो, पार्टी के कर्णधारों और पदाधिकारियों की तिजोरियों का जरूर भला हो रहा है और होता भी रहेगा।   

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