सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी में दखल देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद एक्टिविस्ट्स की नजरबंदी 4 सप्ताह और रहेगी। शीर्ष अदालत ने मामले की जांच एसआईटी से कराने की अपील भी ठुकरा दी है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया माओवादियों से संपर्क रखने के साक्ष्य मिले हैं।
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पांच एक्टिविस्ट्स- वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजालविस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। इतिहासकार रोमिला थापर ने पहले उनकी गिरफ्तारी और फिर उन्हें उनके घरों में नजरबंद किए जाने को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें:
*कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी दुर्भावनापूर्ण नहीं दिखती
*शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी जांच एजेंसी का चयन नहीं कर सकते
*सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसआईटी जांच की अपील खारिज करते हुए पुणे पुलिस को मामले की जांच जारी रखने को कहा है
*शीर्ष अदालत ने हालांकि एक्टिविस्ट्स को राहत के लिए निचली अदालत में अपील करने की अनुमति दी
*चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमतियों की वजह से नहीं हुईं, बल्कि प्रथम दृष्टया ऐसे साक्ष्य मिलते हैं, जिससे माओवादियों के साथ उनके संबंधों के बारे में पता चलता है
*जस्टिस चंद्रचूड़ का फैसला हालांकि अलग रहा। उन्होंने इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस की जांच के तरीकों पर पर सवाल उठाए और एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी को उनकी 'आवाज दबाने का प्रयास' बताया
*जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए बिल्कुल उपयुक्त मामला है। उन्होंने पुणे पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठाए और कहा कि मामले में कोर्ट में होने के बाद भी पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और 'पब्लिक ओपिनियन' बनाने का प्रयास किया
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार रोमिला थापर के अतिरिक्त अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक व देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले माजा दारुवाला भी शामिल हैं। उन्होंने एक्टिविस्ट्स की तत्काल रिहाई के साथ-साथ इस मामले की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग भी की थी।
इतिहासकार सहित अन्य बुद्धिजीवियों ने इनके खिलाफ आरोपों को मनगढ़ंत बताया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि आरोपियों और माओवादियों के बीच संंपर्क के प्रथम दृष्टया साक्ष्य मिलते हैं। इससे पहले कोर्ट ने 20 सितंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। महाराष्ट्र पुलिस ने एक्टिविस्ट्स को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था और वे 29 अगस्त से ही अपने घरों में नजरबंद हैं।
सितम्बर 28 को सुप्रीम कोर्ट ने पांचों एक्टिविस्ट्स की तुरंत रिहाई और इस प्रकरण की एसआईटी जांच के गठन की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इस फैसले के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर हमला बोला। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'हम फैसले का स्वागत करते हैं। जांच के आधार पर पुणे पुलिस को जो सबूत मिले हैं उसे स्वीकार किया गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले में दखल नहीं दे सकता है।
उन्होंने आगे कहा 'वे देश में गृहयुद्ध छेड़ने का प्रयास कर रहे थे। वे नक्सलियों का बचाव करते थे और पीएम मोदी को मारना चाहते थे। अब सबकुछ सामने आ गया है।'
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए फडणवीस ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि इसमें किसी तरह की राजनीतिक दखंलदाजी नहीं थी और यह विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास नहीं था। यह पुणे पुलिस और देश की जीत है। वे (एक्टिविस्ट्स) ऐसा कई वर्षों से कर रहे थे लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था, इसलिए जांच पूरी नहीं हो सकी।'
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पांच एक्टिविस्ट्स- वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजालविस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। इतिहासकार रोमिला थापर ने पहले उनकी गिरफ्तारी और फिर उन्हें उनके घरों में नजरबंद किए जाने को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें:
*कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी दुर्भावनापूर्ण नहीं दिखती
*शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी जांच एजेंसी का चयन नहीं कर सकते
*सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसआईटी जांच की अपील खारिज करते हुए पुणे पुलिस को मामले की जांच जारी रखने को कहा है
*शीर्ष अदालत ने हालांकि एक्टिविस्ट्स को राहत के लिए निचली अदालत में अपील करने की अनुमति दी
*चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमतियों की वजह से नहीं हुईं, बल्कि प्रथम दृष्टया ऐसे साक्ष्य मिलते हैं, जिससे माओवादियों के साथ उनके संबंधों के बारे में पता चलता है
*जस्टिस चंद्रचूड़ का फैसला हालांकि अलग रहा। उन्होंने इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस की जांच के तरीकों पर पर सवाल उठाए और एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी को उनकी 'आवाज दबाने का प्रयास' बताया
*जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए बिल्कुल उपयुक्त मामला है। उन्होंने पुणे पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठाए और कहा कि मामले में कोर्ट में होने के बाद भी पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और 'पब्लिक ओपिनियन' बनाने का प्रयास किया
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
इतिहासकार सहित अन्य बुद्धिजीवियों ने इनके खिलाफ आरोपों को मनगढ़ंत बताया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि आरोपियों और माओवादियों के बीच संंपर्क के प्रथम दृष्टया साक्ष्य मिलते हैं। इससे पहले कोर्ट ने 20 सितंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। महाराष्ट्र पुलिस ने एक्टिविस्ट्स को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था और वे 29 अगस्त से ही अपने घरों में नजरबंद हैं।
देश में गृहयुद्ध छेड़ने के अलावा PM मोदी को मारने की साजिश रच रहे थे गिरफ्तार बुद्धिजीवी: देवेंद्र फडणवीस
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नक्सल कनेक्शन के आरोप में गिरफ्तारी के बाद नजरबंद किए गए एक्टिविस्ट्स को लेकर लगातार आलोचना झेल रही भाजपा शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फ्रंटफुट पर आ गई है। कांग्रेस इन गिरफ्तारियों के लेकर सरकार पर लगातार हमले कर रही थी। इसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधते रहे हैं।सितम्बर 28 को सुप्रीम कोर्ट ने पांचों एक्टिविस्ट्स की तुरंत रिहाई और इस प्रकरण की एसआईटी जांच के गठन की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इस फैसले के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर हमला बोला। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'हम फैसले का स्वागत करते हैं। जांच के आधार पर पुणे पुलिस को जो सबूत मिले हैं उसे स्वीकार किया गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले में दखल नहीं दे सकता है।
We welcome the decision. On basis of investigation conducted & evidence collected by Pune Police, it has been considered valid & SC has said it'll not interfere in the investigation: Maharashtra CM Devendra Fadnavis on SC upholds arrests of 5 activists in #BhimaKoregaon matter
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए फडणवीस ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि इसमें किसी तरह की राजनीतिक दखंलदाजी नहीं थी और यह विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास नहीं था। यह पुणे पुलिस और देश की जीत है। वे (एक्टिविस्ट्स) ऐसा कई वर्षों से कर रहे थे लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था, इसलिए जांच पूरी नहीं हो सकी।'
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए फडणवीस ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि इसमें किसी तरह की राजनीतिक दखंलदाजी नहीं थी और यह विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास नहीं था। यह पुणे पुलिस और देश की जीत है। वे (एक्टिविस्ट्स) ऐसा कई वर्षों से कर रहे थे लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था, इसलिए जांच पूरी नहीं हो सकी।'
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