मध्य प्रदेश में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भाजपा को एक ऐसी सलाह दे दी है, जिसने पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है। सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस ने भाजपा के 78 मौजूदा विधायकों को चुनाव में न उतारने का सुझाव दिया है।
आरएसएस ने यह भी सुझाव दिया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुधनी की जगह भोपाल की गोविंदपुरा सीट से चुनाव लड़ाया जाए। बता दें कि गोविंदपुरा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर यहां से रिकॉर्ड आठ बार चुनाव जीते हैं।
हालांकि इस संबंध में भाजपा की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, संघ परिवार ने सत्तारूढ़ दल से उसके 78 उम्मीदवारों को उनके खराब प्रदर्शन के कारण बदलने का आग्रह किया है।
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की राज्य चुनाव प्रबंधन समिति की एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा भी हुई थी, जिसमें पार्टी के शीर्ष पदाधिकारी इस बात पर सहमत हुए थे कि केवल संभावित विजेताओं का ही चयन किया जाएगा। इसके अलावा किसी अन्य कारक (फैक्टर) पर ध्यान नहीं दिया जाएगा।
पार्टी हाई कमान ने यह भी कहा कि किसी भी उम्मीदवार को तब तक ‘दागी’ नहीं कहा जा सकता है, जब तक वो अदालत द्वारा दोषी न सिद्ध हो जाए। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, राज्य प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और सुहास भगत ने टिकट वितरण के लिए मानदंडों और जिन नामों को हटाया जा सकता है, उसपर चर्चा की।
बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में राकेश सिंह ने कहा, ‘पार्टी सिर्फ जीत के मानदंडों के आधार पर ही उम्मीदवारों को टिकट देगी। यहां कोई भ्रष्ट उम्मीदवार नहीं है, जब तक कि किसी के खिलाफ अदालत का फैसला नहीं आ जाता है।’
चुनाव में ‘दिग्गी राजा’ के दरकिनार होने से भाजपा की बढ़ी मुश्किलें
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के चुनावी दंगल में क्या पार्टी से दरकिनार कर दिए गए हैं? हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है। इसमें दिग्विजय पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं, ‘काम नहीं करोगे तो ख्वाब पूरा नहीं होगा। नहीं बनेगी सरकार। दुश्मन को भी टिकट मिले तो काम करो, उसे ही जिताओ। मेरे बोलने से तो कांग्रेस के वोट कम होते हैं।’
सूबे में वोटिंग के लिए छह हफ्ते भी नहीं बचे हैं। लिहाजा ऐन चुनाव के वक्त दिग्विजय ने ऐसा क्यों कहा…? क्या वह सचमुच दरकिनार किए जा रहे हैं या इस बार एक ‘रणनीति’ के तहत ऐसा किया जा रहा है…? यह रणनीति है तो किसकी है, राहुल गांधी की या फिर खुद दिग्विजय की…? ये सवाल आम चर्चाओं में हैं। वही भाजपा कांग्रेस में दिग्विजय को दरकिनार किए जाने से चिंतित नजर आ रही है। भाजपा लोगों से कह रही है कि कांग्रेस के पास एक चेहरा ही नहीं है. जनता उसे वोट दे तो किसको देखकर…?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों ने ही राहुल गांधी के साथ अगर किसी को टारगेट पर रखा है तो वे राघोगढ़ के राजा ही हैं। भाजपा नेताओं के भाषण ‘मिस्टर बंटाधार’ (बीजेपी ने 2003 में दिग्विजय को नाम दिया था) के जिक्र के बिना खत्म नहीं होते। लोगों को दस साल के उनके राज में सड़क, बिजली, पानी के हाल की याद दिलाई जाती है।
मुख्यमंत्री चौहान कहते हैं, दिग्विजय पोस्टरों से गायब हैं, न ही उनकी आम सभाएं हो रही हैं। किसी ने नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस अपने एक वरिष्ठ नेता के साथ ऐसा व्यवहार करेगी। कम से कम उनकी प्रतिष्ठा का तो ख्याल रखना चाहिए। भाजपा दिग्विजय को हर हाल में भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं। ताकि वे कुछ बोलें, करें। लेकिन दिग्विजय ‘बैकरूम बॉय’ बने हुए हैं। यही भाजपा की बेचैनी की वजह है।
आरएसएस ने यह भी सुझाव दिया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुधनी की जगह भोपाल की गोविंदपुरा सीट से चुनाव लड़ाया जाए। बता दें कि गोविंदपुरा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर यहां से रिकॉर्ड आठ बार चुनाव जीते हैं।
हालांकि इस संबंध में भाजपा की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, संघ परिवार ने सत्तारूढ़ दल से उसके 78 उम्मीदवारों को उनके खराब प्रदर्शन के कारण बदलने का आग्रह किया है।
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की राज्य चुनाव प्रबंधन समिति की एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा भी हुई थी, जिसमें पार्टी के शीर्ष पदाधिकारी इस बात पर सहमत हुए थे कि केवल संभावित विजेताओं का ही चयन किया जाएगा। इसके अलावा किसी अन्य कारक (फैक्टर) पर ध्यान नहीं दिया जाएगा।
पार्टी हाई कमान ने यह भी कहा कि किसी भी उम्मीदवार को तब तक ‘दागी’ नहीं कहा जा सकता है, जब तक वो अदालत द्वारा दोषी न सिद्ध हो जाए। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, राज्य प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और सुहास भगत ने टिकट वितरण के लिए मानदंडों और जिन नामों को हटाया जा सकता है, उसपर चर्चा की।
बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में राकेश सिंह ने कहा, ‘पार्टी सिर्फ जीत के मानदंडों के आधार पर ही उम्मीदवारों को टिकट देगी। यहां कोई भ्रष्ट उम्मीदवार नहीं है, जब तक कि किसी के खिलाफ अदालत का फैसला नहीं आ जाता है।’
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के चुनावी दंगल में क्या पार्टी से दरकिनार कर दिए गए हैं? हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है। इसमें दिग्विजय पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं, ‘काम नहीं करोगे तो ख्वाब पूरा नहीं होगा। नहीं बनेगी सरकार। दुश्मन को भी टिकट मिले तो काम करो, उसे ही जिताओ। मेरे बोलने से तो कांग्रेस के वोट कम होते हैं।’
सूबे में वोटिंग के लिए छह हफ्ते भी नहीं बचे हैं। लिहाजा ऐन चुनाव के वक्त दिग्विजय ने ऐसा क्यों कहा…? क्या वह सचमुच दरकिनार किए जा रहे हैं या इस बार एक ‘रणनीति’ के तहत ऐसा किया जा रहा है…? यह रणनीति है तो किसकी है, राहुल गांधी की या फिर खुद दिग्विजय की…? ये सवाल आम चर्चाओं में हैं। वही भाजपा कांग्रेस में दिग्विजय को दरकिनार किए जाने से चिंतित नजर आ रही है। भाजपा लोगों से कह रही है कि कांग्रेस के पास एक चेहरा ही नहीं है. जनता उसे वोट दे तो किसको देखकर…?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों ने ही राहुल गांधी के साथ अगर किसी को टारगेट पर रखा है तो वे राघोगढ़ के राजा ही हैं। भाजपा नेताओं के भाषण ‘मिस्टर बंटाधार’ (बीजेपी ने 2003 में दिग्विजय को नाम दिया था) के जिक्र के बिना खत्म नहीं होते। लोगों को दस साल के उनके राज में सड़क, बिजली, पानी के हाल की याद दिलाई जाती है।
मुख्यमंत्री चौहान कहते हैं, दिग्विजय पोस्टरों से गायब हैं, न ही उनकी आम सभाएं हो रही हैं। किसी ने नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस अपने एक वरिष्ठ नेता के साथ ऐसा व्यवहार करेगी। कम से कम उनकी प्रतिष्ठा का तो ख्याल रखना चाहिए। भाजपा दिग्विजय को हर हाल में भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं। ताकि वे कुछ बोलें, करें। लेकिन दिग्विजय ‘बैकरूम बॉय’ बने हुए हैं। यही भाजपा की बेचैनी की वजह है।
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