मप्र भाजपा में बढ़ रही असंतुष्टों की संख्या

मप्र भाजपा में बढ़ रही असंतुष्टों की संख्या, टिकट के लिए आम सहमति बनाना होगा मुश्किलमध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर हो रही उठापटक ने भारतीय जनता पार्टी नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी के सर्वे, खुफिया रिपोर्ट और संघ के आकलन ने मौजूदा विधायकों की जो स्थिति बताई है, उसके मुताबिक पार्टी को 70-75 टिकट बदलना पड़ सकता है।
करीब 17 मंत्रियों की हालत भी खस्ता बताई जा रही है। कुछ महीनों पहले नगरीय निकाय चुनाव में टिकट नहीं पाने वाले नेताओं ने जिस तरह बागी होकर चुनाव लड़ा और नुकसान पहुंचाया, उससे पार्टी के नेता हैरत में हैं।
इस परिस्थिति को देख पार्टी ऐसे बागी नेताओं को रोकने का फार्मूला तैयार कर रही है ताकि ऐन चुनाव के वक्त बागी बनकर ये नेता पार्टी के लिए मुसीबत न खड़ी करें। पार्टी के भोपाल स्थित प्रदेश कार्यालय में भी रोजाना टिकट पाने और कटवाने को लेकर नारेबाजी और शक्ति प्रदर्शन हो रहे हैं। पार्टी के ही नेता मान रहे हैं कि इससे आम सहमति बनाने में मुश्किल होगा।
रोजाना हो रहा विरोध प्रदर्शन
नवंबर में होने वाले चुनावी दंगल की तारीख नजदीक आते ही भाजपा मुख्यालय में नारेबाजी और हंगामों का दौर शुरू हो गया है। कई विधानसभा क्षेत्रों के नेता भारी भीड़ लाकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं तो कई विधायकों की टिकट कटवाने के लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ नारेबाजी और हंगामा कर रही है।
अक्टूबर 23 को जब पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल चुनाव प्रबंधन को लेकर दीनदयाल परिसर में दिग्गज नेताओं के साथ मीटिंग कर रहे थे, तभी टिकट की दावेदारी और टिकट कटवाने के लिए बाहर नारेबाजी हो रही थी। वरिष्ठ नेता विजेंद्र सिंह सिसोदिया के बेटे ने हजारों समर्थकों के साथ भाजपा दफ्तर पहुंचकर शक्ति प्रदर्शन किया। विधायक हेमंत खंडेलवाल और हजारीलाल दांगी का विरोध करने आए लोगों ने पार्टी कार्यालय में नारेबाजी और प्रदर्शन किया।
आम सहमति बनाना मुश्किल हो रहा
भाजपा कार्यालय में टिकट को लेकर धरने प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। पहले भी इस तरह का विरोध होता रहा है। पर खास बात ये है कि इस बार चुनाव में हर सीट से टिकट के दावेदारों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि पार्टी को एक प्रत्याशी के नाम पर सहमति बना पाना मुश्किल हो रहा है।
विधायक को दे रहे विकल्प 
पार्टी को ये भय भी सता रहा है कि जिन विधायकों के टिकट काटे तो वे बागी न बन जाएं वरना चुनाव में नुकसान पहुंचा सकते हैं। पार्टी पदाधिकारियों की मानें तो इससे निपटने के लिए बी प्लान तैयार किया है। इसमें पार्टी टिकट से वंचित विधायक को ही विकल्प दिया है कि वह बेहतर और जीतने वाला प्रत्याशी बताए। उसके सुझाव पर परिवार में कोई बेहतर प्रत्याशी हुआ तो पार्टी उस पर भी विचार करेगी। ऐसी स्थिति न होने पर ही पार्टी किसी नए चेहरे को टिकट देगी। इस कवायद के पीछे पार्टी का मकसद ये है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी हर हाल में बागियों का सामना नहीं करना चाहती है।
टिकट मांगना सभी का अधिकार
किसी भी कार्यकर्ता को पार्टी के समक्ष अपनी बात रखने की मनाही नहीं है। टिकट मांगना भी सभी कार्यकताओं का अधिकार है। अभी तक ऐसा कोई वाक्या नहीं हुआ है जिससे पार्टी की मर्यादा भंग हुई हो। भाजपा में प्रत्याशी चयन का काम आसानी से पूरा हो जाएगा। अभी न तो देरी हुई है और न ही पार्टी जल्दी में है। उचित समय पर प्रत्याशी घोषित होंगे और तब सभी काम में लग जाएंगे। 

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