
मजबूरन जल्द सोकर उठना पड़ता है
दरअसल, स्कूलों की टाइमिंग के कारण बच्चों को जल्द से जल्द सोकर उठना पड़ता है. इससे उनकी नींद पर गहरा असर पड़ रहा है. ऐसे बच्चों का औसत नींद का स्तर सामान्य नींद के स्तर से अधिक हो गया है. जिस वजह से बच्चे करीब एक घंटे तक की कम नींद ले पा रहे है.
नींद पूरी न होने से बीमारियों का खतरा
नींद पूरी नहीं होने से बच्चों में तनाव, अनिंद्रा, एकाग्रता की कमी और मोटापा का खतरा मंडरा रहा है. जबकि दिन के शिफ्ट वाले स्कूलों में बच्चों की निंद्रा ठीक हो रही है, यानी वे अपनी नींद पूरी ले पा रहे हैं और स्वस्थ भी है.
विषेशज्ञों की रिपोर्टस
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विवि के लाइफ साइंस विभाग के रिसर्च गाइड डॉ. आरके प्रधान एवं स्कॉलर निहारिका सिन्हा के मुताबिक अध्ययन में अनिंद्रा के कारण सुबह शिफ्ट वाले स्कूलों के बच्चों में अनिंद्रा व अन्य जोखिम के संकेत मिले हैं. इस अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय जनरल रिसर्चगेट पर इम्पैक्ट ऑफ कम्युनिकेटिंग डिस्टेंस एंड स्कूल टाइमिंग ऑन स्लीप ऑफ स्कूल स्टूडेंट्स शीर्षक के साथ प्रकाशित किया गया है.
3 से 10 किमी दूरी तक स्कूल
इस अध्ययन के लिए करीब 14 साल के स्कूली बच्चों को चुना गया. इनमें सुबह शिफ्ट में यानी सुबह 7:30 बजे लगने वाले स्कूलों और सुबह 11 बजे लगने वाले रायपुर के स्कूलों से 84-84 बच्चों पर अध्ययन किया गया. इन बच्चों के वजन, ऊंचाई आदि को मापा गया. साथ ही, इनके बेड टाइम और वेक अप टाइम को मापा गया. जो बच्चे सुबह के स्कूल में जाते हैं, उनमें अनिंद्रा की अधिक शिकायत मिली. इससे उनमें भारी तनाव, अत्यधिक निंद्रा, बच्चों में मोटापा भी देखा गया.
स्कूलों की दूरी के मापदंड शहर में फेल
शहर के आउटर में लगने वाले ज्यादातर स्कूलों में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत तय किए गए स्कूलों की दूरी के मापदंड को फेल कर दिया गया है. यहां रसूखदार विद्यालयों में पढ़ाने के लिए बच्चों के पेरेंटस बच्चों को 10 से 15 किलोमीटर की दूर भेज रहे हैं. जबकि प्राइमरी स्तर पर अधिकतम दूरी 3 किमी, अपर प्राइमरी स्तर पर 5 किमी और हाई स्तर पर 7 किमी से अधिक दूरी के विद्यालय नहीं होने चाहिए.
No comments:
Post a Comment