'बिग बॉस चाहते हैं मनोज तिवारी कंफ़ेशन रूम में आएं. मनोज बताइए आपकी डॉली बिंद्रा से क्यों लड़ाई हुई?'
'बिग बॉस हमको अंडा खाना था. डॉली हमको बनाने नहीं दे रही थी. हमने कहा- किचेन किसी के बाप का नहीं है. इतना सुनते ही डॉली चिल्लानी लगीं- ऐ...बाप पर जाना नहीं, ऐ बाप पर जाना नहीं..काट कर रख दूंगी. मैंने कहा- तू काटेगी हमको? डॉली बोलती रहीं- ऐ बाप पर जाना नहीं.'
साल 2010 में बिग बॉस के घर में 'डॉली बिंद्रा के बाप' पर जाने वाले मनोज तिवारी आठ साल में अपने बयानों के सफ़र में बाप से राहुल गांधी की मां तक आ गए हैं.
छत्तीसगढ़ के चुनावी प्रचार में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने 12 नवंबर को कहा, ''अभी एक पत्रकार हमको पूछ रहे थे कि राहुलजी क्या ये सब अटर-पटर बोलते रहते हैं. असल में समस्या ये है कि सोनिया जी ने कभी छठ नहीं किया. अगर सोनिया गांधी जी छठ की होतीं तो बड़ा बुद्धिमान...आता. छठ मां की बड़ी कृपा है.''
मनोज तिवारी के बयानों और हरकतों को अगर एक धागे में पिरोकर किसी काल्पनिक पर्दे पर देख जाए तो ज़्यादातर मौक़ों पर वो दर्शकों को 'हीही हँस देली रिंकिया के पापा' सीन देते नज़र आते हैं.
जय हो काशी विश्वनाथ की. जय हो नीलकंठवासी की. हर हर महादेव.'
इस गाने में जिस काशी का ज़िक्र है, मनोज तिवारी के लिए वो काशी जन्म से लेकर पढ़ाई और करियर के लिहाज से बेहद अहम रहा है.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले मनोज के पिता शास्त्रीय गायक थे. लेकिन मनोज आज कई रोल में नज़र आते हैं- सिंगर, एक्टर और नेता.
बिहार के भभुआ में रहते हुए मनोज क्या बनना चाहते थे? मनोज बताते हैं, ''बचपन से हमारा लक्ष्य पढ़-लिख कर कुछ बन जाने का था. ऐसा कोई ख़ास सपना नहीं देखा था. अच्छा इंसान बनाने की कोशिश थी. पिता का गायक होना भी मुझ पर कहीं न कहीं हावी रहा. हम लोग जैक ऑफ़ ऑल मास्टर ऑफ़ नन रहे. जो मिला करते गए. बस इंसानियत नहीं छोड़ी.''
मनोज के सिंगर बनने की कहानी पिता के पेट पर लेटने से शुरू होती है. दरअसल मनोज के पिता जब रियाज़ करते तो उन्हें पेट पर लिटाकर थपकी देते रहते थे.
मनोज सरगम का रियाज़ करते हुए कहते हैं, ''पिता ने एक बार मुझे सरगम सिखाने की कोशिश की थी. एक सरस्वती वंदना है. मुझे आज तक ये वंदना याद है. शायद वो बाबूजी की शिक्षा थी.''
मनोज के किसान परिवार में चार भाई और दो बहन हैं. भाई इंजीनियर और शिक्षक हैं. चुनावी हलफनामे में मनोज तिवारी ने अपनी कुल संपत्ति 19 करोड़ रुपये बताई थी.
बीते कुछ वक़्त में मनोज तिवारी कुछ बयानों की वजह से भले ही विरोधियों को मृदुलभाषी न लगते हों, लेकिन उनके नाम में 23 साल से मृदुल जुड़ा हुआ है.
मनोज तिवारी जब नेता होते हैं तो वो मृदुल नहीं रहते हैं. मनोज तिवारी बताते हैं, ''मेरे सिर्फ़ गायिकी से जुड़े कामों में मृदुल उपनाम का इस्तेमाल होता है.'' हालांकि फ़ेसबुक पर उनके नाम के साथ मृदुल लिखा हुआ है.
मनोज तिवारी के नाम में मृदुल जुड़ने की कहानी साल 1996 और गुलशन कुमार से जुड़ी है.
मनोज तिवारी ने कहा, ''मेरा पहला एल्बम 'बाड़ी शेर पर सवार' और 'मैया की महिमा' 1996 में आया था. ये भजनों का संग्रह था. तब गुलशन कुमार ने मुझे ये नाम दिया था. तब से मेरी एल्बम में मनोज तिवारी 'मृदुल' लिखा जाने लगा.''
सफेद रंग की सैंडो बनियान. माथे पर लाल गमछा. आस-पास तबले और संगीत साज़.
चट देनी मार देली खींच के तमाचा...हीही-हीही-हीही हँस देले रिंकिया के पापा'
मनोज तिवारी अपने गानों की वजह से भी चर्चा में रहे हैं. इनमें से एक गाना है रिंकिया के पापा. लेकिन असल में रिंकिया के पापा कौन हैं?
मनोज तिवारी हँसते हुए बताते हैं, ''मुझे नहीं मालूम कि रिंकिया के पापा कौन हैं. ये गाना मैंने कल्पना में ही लिखा था. आजकल परंपरा है कि लोग रिंकी, मुन्नी, पिंकी जैसे नाम रख लेते हैं, ऐसे ही कहने में अच्छा लग रहा था तो मैंने रख लिया. किसी को सोचकर ये गाना नहीं लिखा था.''
मनोज तिवारी बतौर लेखक किन बातों का ध्यान रखते हैं? वो कहते हैं, ''जो बोलचाल की भाषा है. मैं उसे ही गीतों में लगाने की कोशिश करता हूं. समाज में जो चल रहा होता है, उसे ही गानों में पिरोने की कोशिश करता हूं.''
मनोज तिवारी के गीतों पर एक नज़र
मनोज तिवारी ने अपने करियर की शुरुआत से लेकर अब तक कई धार्मिक गाने गाए हैं. इनमें देवी भजन प्रमुख हैं. लेकिन उनके कुछ गानों में विचारधारा के स्तर पर पितृसत्तात्मक सोच नज़र आती है.
साल 2009 के लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी. तभी एक रोज़ मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी अपने गोरखपुर से उम्मीदवार का एलान करती है- मनोज तिवारी.
'बिग बॉस हमको अंडा खाना था. डॉली हमको बनाने नहीं दे रही थी. हमने कहा- किचेन किसी के बाप का नहीं है. इतना सुनते ही डॉली चिल्लानी लगीं- ऐ...बाप पर जाना नहीं, ऐ बाप पर जाना नहीं..काट कर रख दूंगी. मैंने कहा- तू काटेगी हमको? डॉली बोलती रहीं- ऐ बाप पर जाना नहीं.'
साल 2010 में बिग बॉस के घर में 'डॉली बिंद्रा के बाप' पर जाने वाले मनोज तिवारी आठ साल में अपने बयानों के सफ़र में बाप से राहुल गांधी की मां तक आ गए हैं.
छत्तीसगढ़ के चुनावी प्रचार में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने 12 नवंबर को कहा, ''अभी एक पत्रकार हमको पूछ रहे थे कि राहुलजी क्या ये सब अटर-पटर बोलते रहते हैं. असल में समस्या ये है कि सोनिया जी ने कभी छठ नहीं किया. अगर सोनिया गांधी जी छठ की होतीं तो बड़ा बुद्धिमान...आता. छठ मां की बड़ी कृपा है.''
मनोज तिवारी के बयानों और हरकतों को अगर एक धागे में पिरोकर किसी काल्पनिक पर्दे पर देख जाए तो ज़्यादातर मौक़ों पर वो दर्शकों को 'हीही हँस देली रिंकिया के पापा' सीन देते नज़र आते हैं.
जय हो काशी विश्वनाथ की. जय हो नीलकंठवासी की. हर हर महादेव.'
इस गाने में जिस काशी का ज़िक्र है, मनोज तिवारी के लिए वो काशी जन्म से लेकर पढ़ाई और करियर के लिहाज से बेहद अहम रहा है.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले मनोज के पिता शास्त्रीय गायक थे. लेकिन मनोज आज कई रोल में नज़र आते हैं- सिंगर, एक्टर और नेता.
बिहार के भभुआ में रहते हुए मनोज क्या बनना चाहते थे? मनोज बताते हैं, ''बचपन से हमारा लक्ष्य पढ़-लिख कर कुछ बन जाने का था. ऐसा कोई ख़ास सपना नहीं देखा था. अच्छा इंसान बनाने की कोशिश थी. पिता का गायक होना भी मुझ पर कहीं न कहीं हावी रहा. हम लोग जैक ऑफ़ ऑल मास्टर ऑफ़ नन रहे. जो मिला करते गए. बस इंसानियत नहीं छोड़ी.''
मनोज के सिंगर बनने की कहानी पिता के पेट पर लेटने से शुरू होती है. दरअसल मनोज के पिता जब रियाज़ करते तो उन्हें पेट पर लिटाकर थपकी देते रहते थे.
मनोज सरगम का रियाज़ करते हुए कहते हैं, ''पिता ने एक बार मुझे सरगम सिखाने की कोशिश की थी. एक सरस्वती वंदना है. मुझे आज तक ये वंदना याद है. शायद वो बाबूजी की शिक्षा थी.''
मनोज के किसान परिवार में चार भाई और दो बहन हैं. भाई इंजीनियर और शिक्षक हैं. चुनावी हलफनामे में मनोज तिवारी ने अपनी कुल संपत्ति 19 करोड़ रुपये बताई थी.
बीते कुछ वक़्त में मनोज तिवारी कुछ बयानों की वजह से भले ही विरोधियों को मृदुलभाषी न लगते हों, लेकिन उनके नाम में 23 साल से मृदुल जुड़ा हुआ है.
मनोज तिवारी जब नेता होते हैं तो वो मृदुल नहीं रहते हैं. मनोज तिवारी बताते हैं, ''मेरे सिर्फ़ गायिकी से जुड़े कामों में मृदुल उपनाम का इस्तेमाल होता है.'' हालांकि फ़ेसबुक पर उनके नाम के साथ मृदुल लिखा हुआ है.
मनोज तिवारी के नाम में मृदुल जुड़ने की कहानी साल 1996 और गुलशन कुमार से जुड़ी है.
मनोज तिवारी ने कहा, ''मेरा पहला एल्बम 'बाड़ी शेर पर सवार' और 'मैया की महिमा' 1996 में आया था. ये भजनों का संग्रह था. तब गुलशन कुमार ने मुझे ये नाम दिया था. तब से मेरी एल्बम में मनोज तिवारी 'मृदुल' लिखा जाने लगा.''
सफेद रंग की सैंडो बनियान. माथे पर लाल गमछा. आस-पास तबले और संगीत साज़.
चट देनी मार देली खींच के तमाचा...हीही-हीही-हीही हँस देले रिंकिया के पापा'
मनोज तिवारी अपने गानों की वजह से भी चर्चा में रहे हैं. इनमें से एक गाना है रिंकिया के पापा. लेकिन असल में रिंकिया के पापा कौन हैं?
मनोज तिवारी हँसते हुए बताते हैं, ''मुझे नहीं मालूम कि रिंकिया के पापा कौन हैं. ये गाना मैंने कल्पना में ही लिखा था. आजकल परंपरा है कि लोग रिंकी, मुन्नी, पिंकी जैसे नाम रख लेते हैं, ऐसे ही कहने में अच्छा लग रहा था तो मैंने रख लिया. किसी को सोचकर ये गाना नहीं लिखा था.''
मनोज तिवारी बतौर लेखक किन बातों का ध्यान रखते हैं? वो कहते हैं, ''जो बोलचाल की भाषा है. मैं उसे ही गीतों में लगाने की कोशिश करता हूं. समाज में जो चल रहा होता है, उसे ही गानों में पिरोने की कोशिश करता हूं.''
मनोज तिवारी के गीतों पर एक नज़र
- जिय हो बिहार के लाला, जिय तू हजार साला...जिय हो तू भोर-बवाला
- जूड़ा पर लगाके जाली बगल वाली जान मारेली
- हमरे दिलवा के मोबइलिया में लाइफ टाइम ले पलान हो गइल, ई दिलवा तोहरे जबरदस्त अब त फैन हो गइल (शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म फै़न का भोजपुरी गाना)
- बेबी बीयर पीके नाचे धमक धमक धम्म
- मस्ती में कट जाई उमिरिया पहाड़ न लागी, तू जिहसे बियाह करबू ओकरा के जाड़ न लागी
- मेहरी आई तो रौब चलाई मानी नाही आसानी से

एक सच ये भी है कि बॉलीवुड की तरह ही भोजपुरी सिनेमा पर भी अश्लीलता को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं. 'लहंगा उठाय द रिमोट से' जैसे गाने इसके उदाहरण हैं.
हालांकि मनोज के खाते में 'औरत खिलौना नहीं' जैसी फ़िल्में भी हैं.
मनोज के राजनीति में आने के बाद फ़िल्मों और गानों के चुनाव में फ़र्क़ आया है.
साल 2010 में मनोज तिवारी ने बिग बॉस में अपनी पत्नी रानी के बारे में बात की थी.
इसके क़रीब दो साल बाद मनोज तिवारी का 2012 में अपनी पत्नी के साथ तलाक हो जाता है. मनोज और रानी की शादी क़रीब 13 साल ही चल पाती है.
मनोज तिवारी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में इस बारे में बात की थी.
मनोज ने कहा था, ''मैं दोबारा शादी की तैयारी कर रहा हूं. मेरे लिए अकेले रहना कुछ मुश्किल है. मैं कभी अपनी पत्नी को तलाक न देता. मैं अब भी उन्हें प्यार करता हूं और अपनी बेटी और उन्हें ज़िंदगी में वापस चाहता हूं. सब कुछ होते हुए ज़िंदगी तन्हा हो तो थोड़ी तकलीफ तो देती है.''
मनोज तिवारी और रानी की एक बेटी भी है. रानी का फ़िल्मों से कोई ताल्लुक नहीं था. मनोज बताते हैं, ''वो एक सामान्य परिवार की कामकाजी महिला थीं.''
बीबीसी हिंदी से मनोज तिवारी ने कहा, ''ये एक ऐसी चीज़ है, जिसे मैं अब याद नहीं करना चाहता हूं. अलग होने का फैसला उनका था. मेरी बिटिया पत्नी के साथ रहती है. महीने में एक या दो बार मुलाकात हो जाती है. हमारी बेटी की खुशी में हम सबकी खुशी है. रानी भी खुश रहे, यही मेरी दुआ है.''
वो कहते हैं, ''अब तो मैं पूरा ध्यान 2019 में मोदी जी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने पर लगा रहा हूं. ये सब जीवन है. कुछ भी हो सकता है.''
मनोज तिवारी कहते हैं, ''मोदी भ्रष्ट और बेईमान लोगों को सही रास्ते पर लाने की बात करते हैं. लेकिन मैं चाहता हूं कि ऐसे लोगों को कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए. ये एक ऐसी चीज़ है, जिस पर हमारा मतभेद है.''

मनोज तिवारी गोरखपुर में सपा की टिकट पर बीजेपी के योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ चुनावी लड़ाई लड़े थे. इस लड़ाई में योगी आदित्यनाथ के सामने मनोज तिवारी हार गए थे.
ये वही मनोज तिवारी हैं, जो जब से बीजेपी में आए हैं योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ और बधाइयां देते नहीं थकते हैं. योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में मनोज तिवारी का सम्मान किया था.
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