राहुल गाँधी के झूठ की प्रकाष्ठा : खुद को कौल ब्राह्मण और गोत्र दत्‍तात्रेय बताया

राहुल गांधी ने खुद को कौल ब्राह्मण और गोत्र दत्‍तात्रेय बताया, क्‍या उनका दावा सही है?
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
राजनीती में झूठ और जनता को किस तरह गुमराह किया जाता है, वह कांग्रेस से सीखा  सकता है। जिसका दादा फ़िरोज़ गाँधी पारसी मुस्लिम हो, और कभी हिन्दू न बना हो, उसका पोता ब्राह्मण कैसे हो सकता है?
Related image
राहुल गाँधी क्या थी बलात्कार में बापू को फंसाने की साज़िश?

देश में तथाकथित बुद्घिजीवियों का एक ऐसा वर्ग है जो यह मानता है कि इस देश में राष्ट्रीय एकता कभी नही रही और आज हम जिस देश को भारत के नाम से जानते हैं वह विभिन्न राष्ट्रीयताओं से मिलकर बना है। ऐसे लोगों की मान्यता को जे.एन.यू. बलवती करता आ रहा है। इसके कई प्रोफेसर ऐसे हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से भारत में विभिन्न राष्ट्रीयताओं की बात करते हुए कश्मीर पर भारत के अधिकार को भी अनुचित और साम्राज्यवादी माना है। इस प्रकार के विचारों को इस विश्वविद्यालय में प्रो. निवेदिता जब अपने विद्यार्थियों के सामने परोसती हैं तो हमारे विद्यार्थी इस पर तालियां बताते हैं।
इस प्रकार की मान्यता रखने वाले लोगों का या बुद्घिजीवियों का मानना यह भी है कि भारत में विदेशी घुसपैठ की समस्या कुछ भी नही है और हिंदू धर्म विश्व का एक क्रूर धर्म है। स्पष्ट है कि इस धर्म को मिटा देना ही इनकी दृष्टि में उचित है। अपनी इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए इन लोगों ने पूर्वोत्तर भारत का धर्मांतरण कराने में तथा बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ कराके आसाम का जनसांख्यिकीय आंकड़ा बिगाडऩे में देश घातक सहायता की है। जिससे देश के कई भागों में विखण्डनकारी शक्तियां बलवती होती जा रही हैं।
1962 ई. में पंडित नेहरू ने लोकसभा में चिंता प्रकट करते हुए कहा था कि-‘असम क्षेत्र में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भारी संख्या में मुसलमानों का अवैध प्रवेश देश के लिए घातक है।’ पंडित नेहरू जानते थे कि देश का बंटवारा किस आधार पर हुआ था? और अब यदि फिर बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ को जारी रहने दिया गया तो उसके परिणाम क्या होंगे? दुर्भाग्य रहा इस देश का कि जैसी चिंता नेहरू जी ने इस बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ को लेकर संसद में 1962 में की थी वैसी ही चिंता श्रीमती गांधी भी अपने शासनकाल में करती रहीं, पर उनके ही उत्तराधिकारियों राजीव, सोनिया, राहुल के आते-आते पूर्वोत्तर की समस्या की ओर से कांग्रेस ने पूरी तरह आंखें बंद कर लीं। आज वहां की अधिकांश हिंदू जनसंख्या का धर्मांतरण करके ईसाईकरण कर दिया गया है। सोनिया ने ईसाईकरण की इस प्रक्रिया को समस्या का एक समाधान माना है, यह अलग बात है कि इससे समस्या और भी अधिक विकराल हो गयी है।
Related image

राजस्‍थान चुनाव प्रचार के दौरान पुष्‍कर के मंदिर में राहुल गांधी ने खुद को कौल ब्राह्मण बताते हुए अपना गोत्र दत्‍तात्रेय बताया. उनके इस दावे के साथ ही सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा हो गया है. कई लोगों ने सवालिया लहजे में पूछा कि क्‍या दत्‍तात्रेय वाकई कोई गोत्र होता है? ऐसा इसलिए क्‍योंकि हिंदू वंशावली परंपरा में दत्‍तात्रेय गोत्र का उल्‍लेख प्रत्‍यक्ष तौर पर नहीं मिलता. इस संदर्भ में आइए गोत्र, भगवान दत्‍तात्रेय और कौल ब्राह्मण की उत्‍पत्ति पर एक नजर डालते हैं:
rahul gandhi
गोत्र
गोत्र संस्‍कृत भाषा का शब्‍द है और इसका अर्थ है-वंशावली (Lineage). हिंदू धर्म में पिता के आधार पर पुत्र को गोत्र मिलता है. हिंदू धर्म में वंशावली सप्‍तऋषि परंपरा से जुड़ी हुई है. मोटेतौर पर सप्‍तऋषियों के आधार पर हिंदुओं की वंशावली प्रारंभ हुई. जैमिनीय ब्राह्मण के अनुसार मूल रूप से सात नाम हैं- अगस्‍त्‍य, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदाग्नि, वशिष्‍ठ और विश्‍वामित्र.
समाज के विकास के साथ गोत्र की संख्‍या में भी बढ़ोतरी हुई. चूंकि राहुल गांधी ने खुद को ब्राह्मण कहा है. इस लिहाज से देखें तो ब्राह्मणों के मूल रूप से आठ गोत्र माने जाते हैं- अंगिरा, गौतम, भारद्वाज, विश्‍वामित्र, वशिष्‍ठ, कश्‍यप, अत्रि, अगस्‍त्‍य. इन गोत्रों के अलावा 49 अन्‍य गोत्र भी हैं जिन्‍हें प्रवर कहा जाता है. इनमें दत्‍तात्रेय गोत्र का कोई जिक्र नहीं है.
प्रख्‍यात इतिहासकार अल-बाशम के अनुसार गोत्र शब्‍द की उत्‍पत्ति गोष्‍ठ (गोशाला) से हुई है और पहली बार अर्थववेद में इसका उल्‍लेख मिलता है. बाशम ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'द वंडर दैट वाज इंडिया' में लिखा है, ''सभी ब्राह्मण इनमें से किसी एक ऋषि के ही वंशज माने जाते हैं. इन्‍हीं ऋषियों के नाम पर गोत्र का नाम पड़ा.'' बाशम लिखते हैं कि इसी कारण समान गोत्र में विवाह को निषिद्ध माना गया क्‍योंकि ये माना गया कि समान गोत्र के लोग एक ही ऋषि के वंशज हैं.
हिंदू धर्म में परंपरागत रूप से गोत्र व्‍यवस्‍था ब्राह्मणीय प्रकृति और पितृसत्‍तात्‍मक परंपरा को मान्‍यता देती है. इस कारण किसी भी व्‍यक्ति के गोत्र का निर्धारण पिता के आधार पर होता है.
भगवान दत्‍तात्रेय
भगवान दत्‍तात्रेय हिंदू देवता हैं और त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश का प्रतिनिधित्‍व करते हैं. दत्‍तात्रेय शब्‍द संस्‍कृत के दो शब्‍दों से मिलकर बनता है- 'दत्‍त' यानी देना और 'अत्रि'. अत्रि सप्‍तऋषियों में शुमार हैं और भगवान दत्‍तात्रेय के जैविक पिता माने जाते हैं. इस कारण भगवान दत्‍तात्रेय का गोत्र अत्रि हुआ. हिंदू धर्म की नाथ परंपरा में भगवान दत्‍तात्रेय को शिव का अवतार माना जाता है. भगवान दत्‍तात्रेय को सबसे बड़े और पुराने जूना अखाड़े के आचार्य का इष्‍टदेव माना जाता है.
अवलोकन करें:--
NIGAMRAJENDRA.BLOGSPOT.COM
SOMETIME back I used to receive a pamphlet titled “ SHAKTI SANDESH ”…

फरवरी 2006 में इसी ब्लॉग पर शीर्षक "The story of two Lals --Motilal and Jawaharlal"(नीचे लिंक में देखें) लिखा था, कि नेहरू परिवार कोई ब्राह्मण नहीं, वास्तव में ब्रिटिश पुलिस के डर से मुस्लिम से परिवर्तित हिन्दू हैं। इन्दिरा गाँधी फ़िरोज़ से निकाह कर मैमुना बेगम बन गयी, परन्तु मोती लाल से लेकर राजीव गाँधी तक सभी का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज़ से ही हुआ। इनमें से किसी एक मुस्लिम रीति-रिवाज से दफनाया जाने पर जनता इनके ढोंग को समझ जाती। कई बार सोशल मीडिया पर भी इस परिवार की वंश श्रृंखला प्रकाशित होती रहती है, जिसे वास्तविकता से अज्ञान अफवाह समझ लेते हैं, लेकिन है कटु सच्चाई। यही कारण है कि जवाहरलाल से लेकर वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी तक सभी हिन्दू मन्दिरों और त्योहारों में कोई न कोई अवरोध खड़ा करते रहे हैं। और इतिहास की वास्तविकता बताने एवं लिखने वालों को कांग्रेस और इनके समर्थक देश तोड़ने वाले साम्प्रदायिक बताकर देश की जनता को गुमराह करते हैं।
NIGAMRAJENDRA.BLOGSPOT.COM
आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार फरवरी 2006 में इसी ब्लॉग पर शीर्षक "The story of…

कौल ब्राह्मण
संस्‍कृत में कौल शब्‍द की उत्‍पत्ति कुल से हुई है. कश्‍मीरी ब्राह्मण इसको अपने सरनेम के रूप में इस्‍तेमाल करते हैं. इनका संबंध शैव संप्रदाय से जोड़ा जाता है. पंडित जवाहरलाल नेहरू कौल ब्राह्मण थे. उनका सरनेम नेहरू इसलिए पड़ा क्‍योंकि उनका घर नहर किनारे था. इसलिए उनका परिवार नेहरू सरनेम से प्रसिद्ध हुआ. हिंदू वंशावली परंपरा में पिता के आधार पर पुत्र के गोत्र का निर्धारण होता है. इस लिहाज से देखें तो राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी पारसी थे. इस कारण उनका दत्‍तात्रेय गोत्र से जुड़ा दावा सही प्रतीत नहीं होता।
1962 ई. में पंडित नेहरू ने लोकसभा में चिंता प्रकट करते हुए कहा था कि-‘असम क्षेत्र में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भारी संख्या में मुसलमानों का अवैध प्रवेश देश के लिए घातक है।’ पंडित नेहरू जानते थे कि देश का बंटवारा किस आधार पर हुआ था? और अब यदि फिर बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ को जारी रहने दिया गया तो उसके परिणाम क्या होंगे? दुर्भाग्य रहा इस देश का कि जैसी चिंता नेहरू जी ने इस बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ को लेकर संसद में 1962 में की थी वैसी ही चिंता श्रीमती गांधी भी अपने शासनकाल में करती रहीं, पर उनके ही उत्तराधिकारियों राजीव, सोनिया, राहुल के आते-आते पूर्वोत्तर की समस्या की ओर से कांग्रेस ने पूरी तरह आंखें बंद कर लीं। आज वहां की अधिकांश हिंदू जनसंख्या का धर्मांतरण करके ईसाईकरण कर दिया गया है। सोनिया ने ईसाईकरण की इस प्रक्रिया को समस्या का एक समाधान माना है, यह अलग बात है कि इससे समस्या और भी अधिक विकराल हो गयी है।
आज कांग्रेस की गलतियों से जहां-जहां ईसाईकरण की प्रक्रिया बलवती हुई है, वहीं-वहीं पृथकतावाद की बातें की जा रही हैं। कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी का इस पृथकतावाद को बढ़ावा देने में योगदान रहा है, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस को ईसाई मिशनरियों के कार्यों को कभी राष्ट्र विरोधी नही मानने दिया और ‘नियोगी समिति’ के प्रतिवदेन के आधार पर भारत में ईसाईकरण की प्रक्रिया को बाधित न होने देकर उसे राजीव गांधी के शासनकाल में तो सरकार की ओर से लगभग पूर्णत: संरक्षित करा दिया। यद्यपि कई ईसाई विद्वानों ने बाहरी ईसाई मिशनरियों के भारत में अवैध कार्यों की और राष्ट्रद्रोही आचरण की निंदा करते हुए उसे देश के हितों के प्रतिकूल बताने में भी संकोच नही किया है, पर सोनिया ने या उनके पति राजीव गांधी ने इस ओर ध्यान नही दिया। कई दूरदर्शी व राष्ट्रवादी ईसाई पादरियों ने बदली हुई परिस्थितियों में ईसाई समाज को भारत की सांस्कृतिक मूलधारा में समाहित करने के लिए गिरजाघरों आदि के भारतीयकरण का सुझाव दिया है। केरल के प्रसिद्घ ईसाई पत्रकार श्री के.जे. जोसेफ ने कहा था-‘‘अब समय आ गया है कि स्वतंत्र भारत में ईसाई अपने अल्पसंख्यक चरित्र को छोडक़र भारत की मूलधारा के साथ एकात्म होकर इस देश में समरसता स्थापित करें।’’ बंगलौर के युक्यूमेक्सियम क्रिश्चियन सेंटर के डायरेक्टर एम.ए. टामस ने भी लिखा है-‘‘यह खेद की बात है कि दूसरे देश की संस्कृति का भारत में अभी तक आयात किया जा रहा है। मेरा स्पष्ट मत है कि अब विदेशी पादरियों की इस देश में आवश्यकता नही है। उनकी जगह भारतीय पादरी ही सच्चे अर्थों में ईसा की सेवा के आदर्शों को क्रियान्वित कर सकते हैं।’’
पर क्या करें? जे.एन.यू. के प्रोफेसर इन बातों को मानने को तैयार नही हैं, और उनमें से कई आज भी अपने छात्रों को यही बताये जा रहे हैं कि भारत का धर्म बर्बर है और यहां जितना हो सके उतना वैचारिक भोजन बाहर से आयातित कर लोगों को परोसा जाए। राख में दवा मिलाने का यह गोरखधंधा जे.एन.यू. कर रहा है। देश के मौलिक स्वरूप को और इसकी संस्कृति को मिटा देने का फासीवादी कार्य इस विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है और उसके उपरांत भी उन लोगों को ‘फासीवादी’ कहा जा रहा है जो इस देश के मौलिक चिंतन में जीते हैं और इसको ‘विश्वगुरू’ बनाना चाहते हैं। षडय़ंत्र की परतें जैसे-जैसे सामने आने लगीं या जैसे ही इस षडय़ंत्र पर शिकंजा कसने की तैयारी मोदी सरकार की ओर से की गयी वैसे ही देश में नया बवंडर खड़ा हो गया। देश के लोग समझें कि षडय़ंत्र क्या है, उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं, और हमें उन्हें उखाडऩे के लिए क्या करना है?

No comments: