'तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हारा नाम रावण और दुर्योधन क्यों नहीं रख दिया?': प्रयागराज रखे जाने पर योगी आदित्यनाथ

UP CM Yogi Adityanathउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने को उचित ठहराया। उन्होंने नवम्बर 4 को कहा कि लोग कह रहे हैं क्यों नाम बदल दिया। नाम से क्या होता है? मैंने कहा तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हारा नाम रावण और दुर्योधन क्यों नहीं रख दिया? साथ ही उन्होंने कहा, नाम का बड़ा महत्व होता है। इस देश के अंदर सबसे अधिक नाम राम से जुड़ते हैं। और मैं मानता हूं कि अनुसूचित समाज के लोगों नाम से सबसे अधिक कोई जुड़ा है तो राम से जुड़ा है। हर व्यक्ति अपने साथ राम जोड़ता है। नाम का ही महत्व है। वह नाम हम सबको गौरवमयी परंपरा के साथ जोड़ता है। इसलिए प्रयागराज नाम क्यों नहीं होगा। क्यों नाम नहीं हो सकता प्रयागराज।
Allahabadइस साल अक्टूबर में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। अब इस शहर का नाम प्रयागराज हो गया है। नाम बदलने की मंजूरी के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर निशाना साधा था और कहा था कि इसमें योगी सरकार की सांप्रदायिक सोच नजर आ रही है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा था कि मौजूदा सरकार सभी मुद्दों पर नाकाम साबित हो रही है। जनता से किए गए वादों को योगी सरकार पूरा नहीं कर पा रही है। लिहाजा इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। 

करीब 450 साल बाद एक बार फिर मैं प्रयागराज

साधु संतों ने कहा था कि इलाहाबाद तो मध्ययुगीन दास्तां की निशानी है। मुगल आक्रांताओं में से एक अकबर ने हिंदू समुदाय की भावनाओं को दरकिनार कर दिया। गुलामी का वो नाम जिसे हम पिछले 450 साल से ढो रहे हैं उसे बदलने की जरूरत है। यह नाम भारत की संस्कृति और इतिहास पर धब्बे की तरह है लेकिन अब इस मुद्दे पर सियासत शुरु हो गई है।
इलाहाबाद शहर--अब यह शहर प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा-- का अपना एक इतिहास, संस्कृति एवं विरासत रही है। यह शहर जितना आधुनिक है उतना ही प्राचीन भी। इस शहर में नए और पुराने का अद्भुत संगम है। लोग इस शहर का नाम बदले और न बदले जाने को लेकर अपना-अपना तर्क भी देंगे लेकिन इससे इस शहर का प्राचीन इतिहास नहीं बदलेगा। 
इस शहर का सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह शहर हजारों साल पुराना है। समय के कालखंड में इसने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस शहर के धार्मिक महत्व को देखते हुए सालों से इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की मांग उठती आ रही थी। अब सूबे की योगी सरकार इस शहर को उसका 444 साल पुराना नाम देने जा रही है। आइए जानते हैं कि इतिहास के पन्नों में कैसा रहा है यह शहर- 
ऐसे पड़ा प्रयागराज से इलाहाबाद नाम
'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा और 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। यानि कि वह स्थान जहां पर बहुत सारे यज्ञ हुए हों। इस तरह इस शहर का नाम प्रयाग हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद यहीं पर अपना पहला यज्ञ किया था। प्रयाग को ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा का कर्मक्षेत्र भी माना जाता है। रामचरित मानस में इस शहर का नाम प्रयागराज पाया जाता है। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक इस शहर का प्राचीन नाम प्रयागराज ही है। बताया जाता है कि मुगल सम्राट अकबर ने 1575 में इलाहाबास के नाम से शहर की स्थापना की जिसका अर्थ है-'अल्लाह का शहर'। बाद में इलाहाबास का नाम धीरे-धीरे इलाहाबाद हो गया। अकबर ने यहां किले का भी निर्माण कराया। 
शहर ने पैदा की हैं दिग्गज हस्तियां 
इलाहाबाद शहर ने देश को दिग्गज हस्तियां दी हैं। यह शहर नेहरू परिवार से जुड़ा रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का इस शहर से विशेष जुड़ाव रहा। इंदिरा गांधी इसी शहर में पैदा हुईं। आरएसएस के सरसंघचालक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया प्रचारक बनने से पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे। 1990 के दशक की शुरुआत में एक समय आरएसएस और उसके दो प्रमुख संगठनों भाजपा एवं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रमुख मुरली मनोहर जोशी व अशोक सिंहल इलाहाबाद से थे। जोशी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे और वह अब भी इस शहर में रहते हैं। जवाहर लाल नेहरू ने इलाहाबाद जिले का हिस्सा रहे फूलपुर से 1952 में पहला आम चुनाव लड़ा।
फूलपुर सीट से नेहरू 1957 और 1962 में विजयी हुए और उनकी बहन विजयालक्ष्मी पंडित ने इस सीट का उपचुनाव 1964 में और 1967 में आम चुनाव जीता। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी इलाहाबाद से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे। अमिताभ ने 1984 के आम चुनाव में राजनीति के दिग्गज हस्ती हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया। अमिताभ ने 1988 में इस सीट से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद इस सीट पर हुए उपुचनाव में वीपी सिंह विजयी हुए।
इलाहाबाद सीट से कांग्रेस की नुमाइंदगी करने वाले अमिताभ अंतिम सांसद थे। इसके बाद से यह सीट समाजवादियों के पास चली गई। 1962 में राम मनोहर लोहिया जब पंडित नेहरू के खिलाफ लड़े तो नेहरू को व्यक्तिगत रूप से वोट मांगना पड़ा। इस प्रतिष्ठित सीट से 1989 और 1991 में समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र, सरोज दुबे सांसद बने। इस सीट पर लोहिया की विरासत को श्याम कृष्ण पांडे, चुन्नन गुरु, शालिग्राम जायसवाल, रूपनाथ सिंह यादव ने आगे बढ़ाया। समाजवादी पार्टी के रेवती रमण सिंह ने यह सीट 2004 और 2009 में जीती।
इस शहर ने प्रवासियों को अपनाया
इलाहाबाद शहर अपनी सामूहिक संस्कृति के लिए जाना जाता है। बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों को लिए यह शहर काफी अजनबी नहीं रहा। जो भी यहां आया, इस शहर ने उसे अपना लिया। इस शहर में पढ़ने के लिए बड़ी संख्या में कश्मीरी और बंगाली समुदाय के लोग आए और सरकारी नौकरी करते हुए यहां की संस्कृति में रच बस गए। नेहरू, काटजू एवं सप्रु कश्मीरी परिवार हैं जिन्होंने राजनीति एवं न्यायपालिका में दशकों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय यूनियन ने एनडी तिवारी, वीपी सिंह, मदन लाल खुराना जैसे यशस्वी राजनेताओं को पैदा किया। इसके अलावा विज्ञान के क्षेत्र में देश का नाम रौशन करने वाले मेघनाद साहा, दौलत सिंह कोठारी एवं नील लतन ढार इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े रहे। जबकि पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, पूर्व एचआरडी मंत्री अर्जुन सिंह एवं पुरुषोत्तम दास टंडन इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे।
साहित्यकारों का बसेरा रहा है यह शहर
साहित्यकारों के लिए यह पसंदीदा शहर रहा है। फिराक गोरखपुरी, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, धर्मवीर भारती, डॉक्टर रघुवंश और राम स्वरूप चतुर्वेदी यहां रहते हुए हिंदी संसार को बेहतरीन रचनाएं दीं। यह शहर गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक रहा है। इलाहाबाद अपने कई धर्मों की संस्कृतियों को समेटा रहा है और यह शहर सह-अस्तित्व की मिसाल पेश करता आया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिए हैं ऐतिहासिक फैसले
अंग्रेजों ने 1866 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना की। इलाहाबाद हाई कोर्ट अंग्रेजों की तरफ से मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता के बाद स्थापित होने वाला चौथा हाई कोर्ट था। इलाहाबाद हाई कोर्ट देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट है। इस कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं जिसने भारत के राजनीतिक भविष्य को बदलने का काम किया। इनमें से एक 1975 का जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा का फैसला था। सिन्हा ने रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले ने देश में आपातकाल लगाने की पृष्ठभूमि तैयार की।

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