आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
विपक्षी दलों के कई नेता 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी गठबंधन की ओर से किसी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किये जाने के खिलाफ लगते हैं। विपक्षी खेमे के सूत्रों ने यह जानकारी दी। विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘विपक्ष के कई नेता प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में किसी का नाम घोषित किये जाने के खिलाफ हैं। सपा, बसपा, तृणमूल और राकांपा स्टालिन की घोषणा से सहमत नहीं है। उनके अनुसार यह जल्दीबाजी है। लोकसभा परिणामों के बाद ही प्रधानमंत्री का निर्णय होगा।’
विपक्षी खेमे की प्रतिक्रिया ऐसे समय में सामने आई है जब द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष के प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी होना चाहिए, क्योंकि उनमें भाजपा को शिकस्त देने की क्षमता है। द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन ने दिसम्बर 16 को राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए उनका पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि गांधी वंशज में ‘फासीवादी’ नरेन्द्र मोदी सरकार को हराने की क्षमता है।
वीडियो देखिए:--
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वैसे भी प्रधानमन्त्री के मुद्दे पर किसी भी दल का प्रधानमंत्री पद पर राहुल गाँधी के नाम अपना समर्थन देने पर राहुल गाँधी भी कई बार कह चुके हैं कि जिस पार्टी की सबसे ज्यादा सीटें होंगी, उसी पार्टी से प्रधानमन्त्री होगा।लेकिन हर पार्टी प्रमुख प्रधानमन्त्री की दौड़ में अपने आपको आगे रखने में व्यस्त है।
अवलोकन करें:--
हालांकि डीएमके द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए सीपीआई के डी राजा ने स्टालिन की घोषणा से पूरी तरह सहमति नहीं जताई। उन्होंने कहा, अभी सारी पार्टियों को इस पर विचार करने की जरूरत है। आने वाले दिनों में इस पर और तस्वीर साफ हो सकती है।
एक चेहरा घोषित करने के पक्ष में नहीं
हालांकि इतना तय है कि महागठबंधन में अब भी सभी दल किसी एक नाम पर सहमत नहीं हैं। कुछ दिन पहले फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं की ओर से कहा गया था कि महागठबंधन में कोई एक चेहरा नहीं है। हम अपना चेहरा चुनावों के बाद तय कर लेंगे। इसके अलावा शरद यादव भी कह चुके हैं कि महागठबंधन में अभी चेहरे की कोई लड़ाई नहीं है। लेकिन ममता बनर्जी और मायावती जैसी दिग्गज नेता कांग्रेस की सरपरस्ती स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
फारूख अब्दुल्ला की बात मानी जाए तो जनता यह भी जानना चाहेगी कि जब गठबंधन में प्रधानमन्त्री योग्य कोई नेता नहीं, फिर किस आधार पर गठबंधन को वोट देकर पुनः मतदान प्रक्रिया में जाकर देश का धन व्यर्थ करने से क्या लाभ? गंभीरता से मन्थन करने पर फारूख की बात में बहुत वजन हैं, जिसे नज़रअंदाज़ करना देश के साथ अन्याय करना होगा। यानि जनता किसी ऐसे-वैसे को वोट देकर अपना समय और वोट ख़राब नहीं करना चाहेगी।
कांग्रेस के लिए इन तीनों हिन्दी भाषी राज्यों में सरकार बनाना 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले काफी अच्छे संकेत के रूप में आए हैं। इसलिए पार्टी ने तीनों ही जगहों पर होने वाले शपथ ग्रहण के लिए सभी विपक्षी दलों को न्योता भी भेजा है। लेकिन अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए समाजवादी और बहुजन समाजवादी द्वारा सम्मिलित न होना महागठबंधन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। दूसरे अर्थों में यह भी कहा जा सकता है कि शहर बसने से पहले ही लुटेरे, चील, कौए और गिद्ध विराजमान हो गए हैं।
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