आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
राजस्थान की राजनीति पांच साल में कितना बदल गई, ये विधानसभा चुनाव के रुझानों से समझा जा सकता है। राजस्थान में बीजेपी ने 2013 में 200 में 163 सीट जीती थीं। इस बार कांग्रेस ने लगातार बढ़त बना रखी है। यानी बीजेपी को राज्य में भारी नुकसान हो रहा है। राजस्थान में बीते दिनों हुए दो लोकसभा सीट और एक विधानसभा सीट के उप चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इससे हवा का रुख बदलने का संकेत मिल गया था। जानें कि वो कौन से कारण हैं, जो बीजेपी की हार का कारण बनें :--
1. राजपूत फैक्टर
माना जा रहा है कि इस बार राजपूत वसुंधरा सरकार ने नाराज थे। इसका नुकसान चुनाव में बीजेपी को उठाना पड़ा। चुनाव के दौरान राजपूत समाज के कई नेताओं ने बीजेपी के विरोध का ऐलान किया। गैंगस्टर आनंदपाल सिंह रावणा राजपूत समाज से था और उसके गैंग के 70 प्रतिशत लोग राजपूत है। मुठभेड़ में उसकी हत्या के बाद राजपूत समाज की नाराजगी बढ़ गई। राजपूत बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक है। उसके नाराज होने से बीजेपी परसेप्शन की लड़ाई चुनाव से पहले ही हार गई।
2. सचिन पायलट और अशोक गहलोत की जोड़ी
राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने कांग्रेस में नया जोश भरने का काम किया। उन्होंने युवाओं को अपने साथ जोड़ा, जबकि दूसरी ओर अनुभवी अशोक गहलोत ने राज्य में जातीय समीकरणों को साधा। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं में भरोसा जगाया कि कांग्रेस में सभी के लिए जगह होगी। राजपूतों की बीजेपी से नाराजगी और माली तथा गुर्जर वोट कांग्रेस के पक्ष में आने से राज्य के चुनावी समीकरण बदल गए।
3 वसुंधरा राजे की छवि
वसुंधरा राजे की छवि भी बीजेपी की हार की एक वजह रही। राज्य में उनकी महारानी वाली छवि है। आम धारणा है कि वो अपने खास लोगों की कोटरी में रहना पसंद करती हैं और आम जनता के साथ उनका जुड़ाव उतना नहीं है। आम बीजेपी कार्यकर्ताओं और संगठन के लोगों के साथ भी उनका भावनात्मक जुड़ाव कम है। यही बात पार्टी के अन्य नेताओं पर भी लागू होती है। केवल अपने मनपसंद यानि चमचों के इर्दगिर्द रहकर, दूसरे कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करना, भी हार का मुख्य कारण है।
4. बगावत
राजस्थान में बीजेपी पिछले कई चुनावों से बगावत और भीतरघात का सामना कर रही थी। इस बार घनश्याम तिवाड़ी और मानवेंद्र सिंह के रूप में दो बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। घनश्याम तिवारी ने अपनी अलग पार्टी बनाई, जबकि मानवेंद्र में शामिल हो गए। टिकट कटने से नाराज जिला स्तर के कई नेताओं की बगावत ने हालात को बीजेपी के लिए और बिगाड़ दिया। राज्य में पार्टी के नेताओं की बगावत बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण है।
5. पद्मावत का विरोध
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत का राजपूत समाज ने पूरे देश में विरोध किया। हालांकि ये विरोध राजस्थान में सबसे तेज था. राजपूत समाज की वसुंधरा राजे से शिकायत थी कि इस फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया और बीजेपी पर राजपूतों की उपेक्षा का आरोप लगाया।
6. अयोग्य प्रत्याशी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस ने बाजी मारी. कांग्रेस ने स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखकर कहीं बेहतर टिकट दिए। जबकि बीजेपी के प्रत्याशियों का जनता के साथ उतना अधिक जुड़ाव नहीं था।
अवलोकन करिए:--
मध्य प्रदेश की वे सीटें जहां जीत और हार का अंतर 2000 वोटों से भी रहा कम
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद राज्य में कांग्रेस का 15 सालों का वनवास खत्म हुआ है। 15 सालों के लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी करने जा रही है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से 114 पर जीत हासिल की, हालांकि ये बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों की संख्या से 2 कम था लेकिन सपा और बसपा के समर्थन के अलावा कांग्रेस ने अन्य 4 विधायकों के समर्थन का दावा भी किया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश में चुनौतियां आसान नहीं थीं। शिवराज सिंह चौहान के सामने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न देने के बाद कांग्रेस ने पूरे चुनाव में सत्ता-विरोधी लहर पर अपना ध्यान लगाए रखा।
इस चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस ने कड़ी टक्कर देते हुए आखिरकार सत्ता में वापसी कर ली लेकिन ये इतना आसान नहीं रहा जितना नतीजे आने के बाद आसान समझा जा रहा है। ऐसी कई सीटें थी जहां पर जीत-हार में मामूली अंतर था और वोटों की गिनती के दौरान कई बार बीजेपी इन सीटों पर कांग्रेस से आगे रही थी। बार-बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच आगे-पीछे की रेस चलती रही। इनमें से कुछ सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई तो अंत में कुछ सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी घोषित हुए और पार्टी का आंकड़ा 114 सीटों तक जा पहुंचा।
क्रम विधानसभा सीट विजेता पार्टी दूसरे स्थान पर पार्टी वोटों का अंतर 1 ग्वालियर प्रवीण पाठक कांग्रेस नारायण सिंह कुशवाहा बीजेपी 121
2 सुवासरा हरदीप सिंह कांग्रेस राधेश्याम नंदलाल पाटीदार बीजेपी 350
3 जावरा राजेंद्र पांडेय बीजेपी केके सिंह कलुखेड़ा कांग्रेस 511
4 जबलपुर नॉर्थ विनय सक्सेना कांग्रेस शरद जैन बीजेपी 578
5 बीना महेश राय बीजेपी शशि कठोरिया कांग्रेस 632
6 कोलारस बीरेंद्र रधुवंशी बीजेपी महेंद्र रामसिंह कांंग्रेस 720
7 दमोह राहुल सिंह कांग्रेस जयंत मलैया बीजेपी 798
8 बिओरा गोवर्धन डांगी कांग्रेस नारायण सिंह पनवार बीजेपी 826
9 देव तालाब गिरीश गौतम बीजेपी सीमा जयवीर सिंह सेंगर बसपा 1080
10 इंदौर-5 महेंद्र हरदिया बीजेपी सत्यनारायण पटेल कांग्रेस 1133
11 चंदला राजेश कुमार प्रजापति बीजेपी अनुरागी हरप्रसाद कांग्रेस 1177
12 नागौर नगेंद्र सिंह बीजेपी यादवेंद्र सिंह कांग्रेस 1234
13 नेपानगर सुमित्रा देवी कांग्रेस मंजू राजेंद्र दादू बीजेपी 1264
14 ग्वालियर रुरल भरत सिंह कुशवाहा बीजेपी साहब सिंह गुर्जर बसपा 1517
15 गुन्नौर शिवदयाल बागरी कांग्रेस राजेश कुमार वर्मा बीजेपी 1984
'नोटा' के चलते यहां बदल गई तस्वीर
ब्यावरा में कांग्रेस प्रत्याशी 826 वोट से जीता, जबकि नोटा में 1481 मत गिरे। दमोह में वित्तमंत्री जयंत मलैया 798 मतों से हारे और नोटा में 1299 वोट निकले। गुन्नाोर में जीत हार का अंतर 1984 मतों का रहा, जबकि नोटा में 3734 वोट चले गए। ग्वालियर दक्षिण का फैसला 121 वोटों से हुआ, लेकिन 1550 मतदाताओं ने नोटा दबा दिया। जबलपुर उत्तर में राज्यमंत्री शरद जैन 578 मतों से हारे और 1209 नोटा को अपना मत दे दिया।
जोबट में 2056 मतों से फैसला हुआ, लेकिन नोटा में सबसे ज्यादा 5139 वोट चले गए। मंधाता में भले ही जीत-हार का फैसला 1236 वोट से हुआ हो पर 1575 मतदाताओं ने नोटा को चुना। नेपानगर में भाजपा प्रत्याशी को जीतने के लिए 732 वोट चाहिए थे पर 2551 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प अपनाया।
सुर्खियों में रही सीट राजनगर में राजपरिवार के विक्रम सिंह नातीराजा 732 वोट से जीते और 2485 वोट नोटा में चले गए उधर राजपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी को जीत के लिए 932 वोट चाहिए थे, लेकिन 3358 मतदाताओं ने उनके बजाय नोटा का बटन दबा दिया। सुवासरा में भी भाजपा प्रत्याशी को जीतने के लिए मात्र 350 वोट चाहिए थे, लेकिन 2976 मतदाताओं ने उन्हें अथवा किसी अन्य प्रत्याशी को चुनने के बजाय नोटा का विकल्प चुन लिया।
दूसरे, दिल्ली से कश्मीर और कश्मीर से कन्याकुमारी तक पार्टी त्रिमूर्ति मोदी-योगी-अमित पर ही निर्भर है। पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर, दूसरी पार्टी से आये दलबदलुओं को सिर पर बैठाया जा रहा हैं। भाजपा किसी भी आंदोलन पर आक्रामक होने की बजाए बचाव में व्यस्त रही। विपक्ष भाजपा की इस मजबूरी को अच्छी तरह से समझ चुकी है, उपचुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में भी उनका हथियार काम आ गया, अब 2019 लोकसभा चुनावों में भी यही हत्कन्डे अपनाये जाएंगे।
2013 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव हुए थे जबकि 2014 में आंध्र प्रदेश का चुनाव हुआ था जिससे तेलंगाना बना था। 2013 और 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को सभी 5 राज्यों में मिली सीटें देखे तो कुल 382 सीटें मिली थी जिसमें सबसे अधिक मध्य प्रदेश में 165, राजस्थना में 163 और छत्तीसगढ़ में 49 सीटें आईं थी। वहीं उस समय कांग्रेस को इन सभी राज्यों में कुल 165 ही सीटें मिल पायीं थी।
लेकिन इस बार के चुनावों में कांग्रेस ने BJP पर बढ़त ली है और अपनी कुल सीटों के आंकड़े को 303 तक पहुंचा दिया है, वहीं दूसरी ओर BJP की पाचों राज्यों में सीटें 382 से घटकर अब 192 रह गई हैं। यानि BJP को लगभग 50 प्रतिशत नुकसान हुआ है और कांग्रेस को 83 प्रतिशत का फायदा हुआ है।
राजस्थान की राजनीति पांच साल में कितना बदल गई, ये विधानसभा चुनाव के रुझानों से समझा जा सकता है। राजस्थान में बीजेपी ने 2013 में 200 में 163 सीट जीती थीं। इस बार कांग्रेस ने लगातार बढ़त बना रखी है। यानी बीजेपी को राज्य में भारी नुकसान हो रहा है। राजस्थान में बीते दिनों हुए दो लोकसभा सीट और एक विधानसभा सीट के उप चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इससे हवा का रुख बदलने का संकेत मिल गया था। जानें कि वो कौन से कारण हैं, जो बीजेपी की हार का कारण बनें :--
1. राजपूत फैक्टर
माना जा रहा है कि इस बार राजपूत वसुंधरा सरकार ने नाराज थे। इसका नुकसान चुनाव में बीजेपी को उठाना पड़ा। चुनाव के दौरान राजपूत समाज के कई नेताओं ने बीजेपी के विरोध का ऐलान किया। गैंगस्टर आनंदपाल सिंह रावणा राजपूत समाज से था और उसके गैंग के 70 प्रतिशत लोग राजपूत है। मुठभेड़ में उसकी हत्या के बाद राजपूत समाज की नाराजगी बढ़ गई। राजपूत बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक है। उसके नाराज होने से बीजेपी परसेप्शन की लड़ाई चुनाव से पहले ही हार गई।
2. सचिन पायलट और अशोक गहलोत की जोड़ी
राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने कांग्रेस में नया जोश भरने का काम किया। उन्होंने युवाओं को अपने साथ जोड़ा, जबकि दूसरी ओर अनुभवी अशोक गहलोत ने राज्य में जातीय समीकरणों को साधा। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं में भरोसा जगाया कि कांग्रेस में सभी के लिए जगह होगी। राजपूतों की बीजेपी से नाराजगी और माली तथा गुर्जर वोट कांग्रेस के पक्ष में आने से राज्य के चुनावी समीकरण बदल गए।
3 वसुंधरा राजे की छवि
वसुंधरा राजे की छवि भी बीजेपी की हार की एक वजह रही। राज्य में उनकी महारानी वाली छवि है। आम धारणा है कि वो अपने खास लोगों की कोटरी में रहना पसंद करती हैं और आम जनता के साथ उनका जुड़ाव उतना नहीं है। आम बीजेपी कार्यकर्ताओं और संगठन के लोगों के साथ भी उनका भावनात्मक जुड़ाव कम है। यही बात पार्टी के अन्य नेताओं पर भी लागू होती है। केवल अपने मनपसंद यानि चमचों के इर्दगिर्द रहकर, दूसरे कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करना, भी हार का मुख्य कारण है।
4. बगावत
राजस्थान में बीजेपी पिछले कई चुनावों से बगावत और भीतरघात का सामना कर रही थी। इस बार घनश्याम तिवाड़ी और मानवेंद्र सिंह के रूप में दो बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। घनश्याम तिवारी ने अपनी अलग पार्टी बनाई, जबकि मानवेंद्र में शामिल हो गए। टिकट कटने से नाराज जिला स्तर के कई नेताओं की बगावत ने हालात को बीजेपी के लिए और बिगाड़ दिया। राज्य में पार्टी के नेताओं की बगावत बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण है।
5. पद्मावत का विरोध
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत का राजपूत समाज ने पूरे देश में विरोध किया। हालांकि ये विरोध राजस्थान में सबसे तेज था. राजपूत समाज की वसुंधरा राजे से शिकायत थी कि इस फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया और बीजेपी पर राजपूतों की उपेक्षा का आरोप लगाया।
6. अयोग्य प्रत्याशी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस ने बाजी मारी. कांग्रेस ने स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखकर कहीं बेहतर टिकट दिए। जबकि बीजेपी के प्रत्याशियों का जनता के साथ उतना अधिक जुड़ाव नहीं था।
अवलोकन करिए:--
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद राज्य में कांग्रेस का 15 सालों का वनवास खत्म हुआ है। 15 सालों के लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी करने जा रही है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से 114 पर जीत हासिल की, हालांकि ये बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों की संख्या से 2 कम था लेकिन सपा और बसपा के समर्थन के अलावा कांग्रेस ने अन्य 4 विधायकों के समर्थन का दावा भी किया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश में चुनौतियां आसान नहीं थीं। शिवराज सिंह चौहान के सामने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न देने के बाद कांग्रेस ने पूरे चुनाव में सत्ता-विरोधी लहर पर अपना ध्यान लगाए रखा।
इस चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस ने कड़ी टक्कर देते हुए आखिरकार सत्ता में वापसी कर ली लेकिन ये इतना आसान नहीं रहा जितना नतीजे आने के बाद आसान समझा जा रहा है। ऐसी कई सीटें थी जहां पर जीत-हार में मामूली अंतर था और वोटों की गिनती के दौरान कई बार बीजेपी इन सीटों पर कांग्रेस से आगे रही थी। बार-बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच आगे-पीछे की रेस चलती रही। इनमें से कुछ सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई तो अंत में कुछ सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी घोषित हुए और पार्टी का आंकड़ा 114 सीटों तक जा पहुंचा।
क्रम विधानसभा सीट विजेता पार्टी दूसरे स्थान पर पार्टी वोटों का अंतर 1 ग्वालियर प्रवीण पाठक कांग्रेस नारायण सिंह कुशवाहा बीजेपी 121
2 सुवासरा हरदीप सिंह कांग्रेस राधेश्याम नंदलाल पाटीदार बीजेपी 350
3 जावरा राजेंद्र पांडेय बीजेपी केके सिंह कलुखेड़ा कांग्रेस 511
4 जबलपुर नॉर्थ विनय सक्सेना कांग्रेस शरद जैन बीजेपी 578
5 बीना महेश राय बीजेपी शशि कठोरिया कांग्रेस 632
6 कोलारस बीरेंद्र रधुवंशी बीजेपी महेंद्र रामसिंह कांंग्रेस 720
7 दमोह राहुल सिंह कांग्रेस जयंत मलैया बीजेपी 798
8 बिओरा गोवर्धन डांगी कांग्रेस नारायण सिंह पनवार बीजेपी 826
9 देव तालाब गिरीश गौतम बीजेपी सीमा जयवीर सिंह सेंगर बसपा 1080
10 इंदौर-5 महेंद्र हरदिया बीजेपी सत्यनारायण पटेल कांग्रेस 1133
11 चंदला राजेश कुमार प्रजापति बीजेपी अनुरागी हरप्रसाद कांग्रेस 1177
12 नागौर नगेंद्र सिंह बीजेपी यादवेंद्र सिंह कांग्रेस 1234
13 नेपानगर सुमित्रा देवी कांग्रेस मंजू राजेंद्र दादू बीजेपी 1264
14 ग्वालियर रुरल भरत सिंह कुशवाहा बीजेपी साहब सिंह गुर्जर बसपा 1517
15 गुन्नौर शिवदयाल बागरी कांग्रेस राजेश कुमार वर्मा बीजेपी 1984
'नोटा' के चलते यहां बदल गई तस्वीर
ब्यावरा में कांग्रेस प्रत्याशी 826 वोट से जीता, जबकि नोटा में 1481 मत गिरे। दमोह में वित्तमंत्री जयंत मलैया 798 मतों से हारे और नोटा में 1299 वोट निकले। गुन्नाोर में जीत हार का अंतर 1984 मतों का रहा, जबकि नोटा में 3734 वोट चले गए। ग्वालियर दक्षिण का फैसला 121 वोटों से हुआ, लेकिन 1550 मतदाताओं ने नोटा दबा दिया। जबलपुर उत्तर में राज्यमंत्री शरद जैन 578 मतों से हारे और 1209 नोटा को अपना मत दे दिया।
जोबट में 2056 मतों से फैसला हुआ, लेकिन नोटा में सबसे ज्यादा 5139 वोट चले गए। मंधाता में भले ही जीत-हार का फैसला 1236 वोट से हुआ हो पर 1575 मतदाताओं ने नोटा को चुना। नेपानगर में भाजपा प्रत्याशी को जीतने के लिए 732 वोट चाहिए थे पर 2551 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प अपनाया।
सुर्खियों में रही सीट राजनगर में राजपरिवार के विक्रम सिंह नातीराजा 732 वोट से जीते और 2485 वोट नोटा में चले गए उधर राजपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी को जीत के लिए 932 वोट चाहिए थे, लेकिन 3358 मतदाताओं ने उनके बजाय नोटा का बटन दबा दिया। सुवासरा में भी भाजपा प्रत्याशी को जीतने के लिए मात्र 350 वोट चाहिए थे, लेकिन 2976 मतदाताओं ने उन्हें अथवा किसी अन्य प्रत्याशी को चुनने के बजाय नोटा का विकल्प चुन लिया।
दूसरे, दिल्ली से कश्मीर और कश्मीर से कन्याकुमारी तक पार्टी त्रिमूर्ति मोदी-योगी-अमित पर ही निर्भर है। पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर, दूसरी पार्टी से आये दलबदलुओं को सिर पर बैठाया जा रहा हैं। भाजपा किसी भी आंदोलन पर आक्रामक होने की बजाए बचाव में व्यस्त रही। विपक्ष भाजपा की इस मजबूरी को अच्छी तरह से समझ चुकी है, उपचुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में भी उनका हथियार काम आ गया, अब 2019 लोकसभा चुनावों में भी यही हत्कन्डे अपनाये जाएंगे।
5 राज्यों में कांग्रेस को लाभ 83%,
भाजपा को 50% नुकसान
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस को हुए लाभ या हानि को देखें तो पिछली बार के मुकाबले इस बार भाजपा को लगभग 50 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा है जबकि कांग्रेस को 83 प्रतिशत का लाभ हुआ है।2013 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव हुए थे जबकि 2014 में आंध्र प्रदेश का चुनाव हुआ था जिससे तेलंगाना बना था। 2013 और 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को सभी 5 राज्यों में मिली सीटें देखे तो कुल 382 सीटें मिली थी जिसमें सबसे अधिक मध्य प्रदेश में 165, राजस्थना में 163 और छत्तीसगढ़ में 49 सीटें आईं थी। वहीं उस समय कांग्रेस को इन सभी राज्यों में कुल 165 ही सीटें मिल पायीं थी।
लेकिन इस बार के चुनावों में कांग्रेस ने BJP पर बढ़त ली है और अपनी कुल सीटों के आंकड़े को 303 तक पहुंचा दिया है, वहीं दूसरी ओर BJP की पाचों राज्यों में सीटें 382 से घटकर अब 192 रह गई हैं। यानि BJP को लगभग 50 प्रतिशत नुकसान हुआ है और कांग्रेस को 83 प्रतिशत का फायदा हुआ है।
राज्य | कांग्रेस | भाजपा | ||||
2013 सीट | 2018 सीट | % बदलाव | 2013 सीट | 2018 सीट | % बदलाव | |
छत्तीसगढ़ | 39 | 62 | 58.97 | 49 | 13 | -73.46 |
मध्य प्रदेश | 58 | 114 | 96.55 | 165 | 106 | -35.75 |
राजस्थान | 21 | 102 | 385.71 | 163 | 71 | -56.44 |
मिजोरम | 34 | 5 | -58.29 | 0 | 1 | 100 |
तेलंगाना (2014) | 13 | 20 | 53.84 | 5 | 1 | -80 |
कुल | 165 | 303 | 83.6 | 382 | 192 | -49.6 |
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