
आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार
आम चुनाव 2019 के लिए भारत का राजनीतिक स्टेज सज चुका है। सभी राजनीतिक दलों की निगाह है कि किसी भी सूरत में केंद्र की सत्ता पर उनका कब्जा हो। इस संबंध में दांव और प्रतिदांव का खेल खेला जा रहा है। राजनीति, संभावनाओं की जमीन है और उन संभावनाओं को बेहतर परिणाम में बदलने की कवायद सभी राजनीतिक दल करते हैं। कांग्रेस पार्टी भी उसी कड़ी में एक कदम आगे बढ़ी जब महासचिव पद के जरिए प्रियंका गांधी की राजनीति में औपचारिक एंट्री हुई और उन्हें पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी दी गई।


जनता कांग्रेस से यह जानना चाहती है कि इतने वर्ष सत्ता में रहने पर किसानों की दुर्दशा क्यों? क्यों किसान कर्ज़े में डूबा? देश से गरीबी क्यों नहीं दूर हुई, जबकि तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने एक चुनाव केवल "गरीबी हटाओ" के नारे पर ही जीता था? कांग्रेस पार्टी हमेशा कहती है कि जवाहर लाल नेहरु ने देश में अच्छा काम करते हुए अभूतपूर्व योगदान दिया, इसी मामले पर आतिफ रशीद ने कटाक्ष कर दिया। लोकतन्त्र की निर्मम हत्या तो कांग्रेस ने भारत के पहले ही चुनाव में कर दी थी, जब उत्तर प्रदेश के रामपुर में हिन्दू महासभा के उम्मीदवार विशन सेठ ने कांग्रेस उम्मीदवार मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को लगभग 6000 मतों से हरा दिया था। जो जवाहर लाल नेहरू को बर्दाश्त नहीं हुई और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोबिन्द बल्लब पन्त को हारे हुए उम्मीदवार आज़ाद को किसी भी कीमत पर जितवाने को कहा,और पंत ने तुरन्त जिला अधिकारी को नेहरू जी की बात पूरी करने को कहा।
अगर नेहरू ने अच्छा काम किया था तो इंदिरा गांधी को "गरीबी हटाओ" का नारा क्यूँ देना पड़ा ?
अगर इंदिरा गांधी ने ईमानदारी से काम किया था तो राजीव गांधी को ये क्यों कहना पड़ा कि "केंद्र से एक रुपया भेजते हैं तो गरीब के पास 15 पैसे ही पहुँचते हैं"??#कांग्रेसी_भांड
Cont.... 1/2
अगर इंदिरा गांधी ने ईमानदारी से काम किया था तो राजीव गांधी को ये क्यों कहना पड़ा कि "केंद्र से एक रुपया भेजते हैं तो गरीब के पास 15 पैसे ही पहुँचते हैं"??#कांग्रेसी_भांड
Cont.... 1/2
परिणामस्वरुप, विजयी सेठ को उनके विजयी जुलुस से अगवा कर मतदान गणना केंद्र ले जाकर उनकी वोटों को पराजित आज़ाद की वोटों में सम्मिलित कर, पराजित उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया गया था। फिर किस मुँह से कांग्रेस लोकतन्त्र और संविधान की बात बोलती है?
उल्लेखनीय है कि प्रियंका को कांग्रेस महासचिव नियुक्त करने के साथ साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया है जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है । राहुल गांधी ने कहा कि हम कहीं भी बैकफुट पर नहीं खेलेंगे । हम राजनीति जनता के लिए, विकास के लिए करते हैं । जहां मौका मिलेगा, हम फ्रंटफुट पर खेलेंगे ।

राहुल गांधी ने क्या कहा
- हम बैकफुट पर नहीं खेलेंगे।
- प्रियंका गांधी खेलेंगी लंबी पारी।
- बीजेपी वाले घबरा चुके हैं।
- कांग्रेस, अखिलेश यादव और मायावती का सम्मान करती है और उनसे सहयोग के करने के लिए तैयार हैं।
- प्रियंका, ज्योतिरादित्य को मिशन के लिए भेजा है। प्रियंका गांधी सिर्फ दो महीने तक जिम्मेदारी नहीं संभालेंगी।
- कांग्रेस को 2014 के आम चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली।
- राहुल गांधी ने कहा कि उनकी बहन कर्मठ है और उन्हें खुशी है कि वो सक्रिय राजनीति में आ रही है।
- हमारी पूरी लड़ाई का मकसद सिर्फ बीजेपी को हराना है।
- अवलोकन करें:--
-
पूर्वी उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 130 सीटें हैं और कांग्रेस को किसी भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली है। कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और वोट शेयर 10 फीसद के नीचे था जो कि 2009 के चुनाव परिणामों से अलग था। 2009 के चुनाव में कांग्रेस को पूरे प्रदेश से 22 सांसद मिले थे। पूर्वी यूपी के डुमरियागंज, महाराजगंज और कुशीनगर से कांग्रेस उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी। लेकिन 2014 के चुनाव में कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी सीट से संतोष करना पड़ा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका।
अगर राहुल गांधी के बयानों को आधार बनाएं तो प्रियंका गांधी के तूफानी प्रचार से कहीं न कहीं बीजेपी विरोधी मतों में बिखराव होगा। खासतौर से मुस्लिम तबकों में भ्रम की स्थिति बन सकती है। अगर जमीनी तौर पर यह आंकड़ों में तब्दील हुआ तो सपा-बसपा गठबंधन के साथ साथ कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा।
Rajeev Shukla, Congress on #PriyankaGandhiVadra being appointed as Congress General Secretary for Eastern UP: This will help in revival of Congress not only in Uttar Pradesh but the entire country. She will take charge after Feb 1 once she returns from abroad.
देखना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया उत्तर प्रदेश में किस तरह का करिश्मा दिखा पाएंगे? लेकिन इससे पहले उन वजहों को भी जानना जरूरी है कि क्यों ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश से हटाकर नई जिम्मेदारी दी गई।
- सिंधिया को एमपी से हटाकर कांग्रेस ने एक तीर से दो निशाना साधा है।
- ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर किया गया है।
- हाल में खबरें आई थीं कि सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान से मिले थे।
- सिंधिया के दूर होने से एमपी में कमलनाथ और दिग्विजय लोकसभा चुनावों की तैयारी देखेंगे।
- एमपी की राजनीति से सिंधिया को दूर रखना चाहती है कांग्रेस।
- सिंधिया की कांग्रेस कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ है और लोकप्रिय हैं।
- सिंधिया की सांगठनिक क्षमता मजबूत मानी जाती है।
- युवा वोटरों पर कांग्रेस की नजर।
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत, जाट वोटरों पर नजर।
- जो पार्टी में उठ रही अंतर्कलह को भी जगजाहिर कर रही है।
No comments:
Post a Comment